ब्लॉग: समरसता के संदेशों को बढ़ावा देने की जरूरत

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: December 25, 2024 07:22 IST2024-12-25T07:20:58+5:302024-12-25T07:22:49+5:30

आज की स्थिति में जबकि गड़े मुर्दे उखाड़ने की एक होड़-सी मची है, इस तरह की बातें आश्वस्त करती हैं कि अभी सबकुछ हाथ से फिसला नहीं है.

Need to promote messages of harmony | ब्लॉग: समरसता के संदेशों को बढ़ावा देने की जरूरत

ब्लॉग: समरसता के संदेशों को बढ़ावा देने की जरूरत

‘‘अतीत के बोझ तले दब कर तीव्र घृणा, ईर्ष्या, शत्रुता, संदेह का शिकार हो जाना स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. आए दिन इस तरह के मुद्दे उठाना भी गलत है.’’ ये शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के हैं, जो उन्होंने हाल ही में पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहे. संदर्भ भारत के विश्व गुरु होने के दावे का था और बात संभल, अजमेर, कन्नौज आदि शहरों में चल रहे अभियानों की थी.

यह पहली बार नहीं है जब  भागवत ने राष्ट्र की एकता और समाज में समरसता का संदेश देते हुए अतीत की घटनाओं का शिकार होने से बचने का संदेश दिया. पिछले दो-तीन साल में वे अलग-अलग मौकों पर इस आशय की बात कह चुके हैं. पुणे का उनका भाषण इस संदेश की अब तक नवीनतम कड़ी है. अवसर ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ नाम से आयोजित कार्यक्रम का था. इस भाषण के दौरान उन्होंने इस बात को दुहराना जरूरी समझा कि ‘‘मंदिर-मस्जिद के रोज नये विवाद निकाल कर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए. हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं.’’

सरसंघचालक ने भाषण में यह भी कहा कि अपनी ही बात को सही मानने की जिद भी उचित नहीं है. हमारी वजह से दूसरों को तकलीफ न हो, हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा. फिर, रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस के अवसर पर बड़ा दिन मनाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘हम यह इसलिए कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं.’’
भागवत के ये शब्द भरोसा दिलाने वाले हैं.

आज की स्थिति में जबकि गड़े मुर्दे उखाड़ने की एक होड़-सी मची है, इस तरह की बातें आश्वस्त करती हैं कि अभी सबकुछ हाथ से फिसला नहीं है. आवश्यकता यह कार्य ईमानदारी से करने की है.  भागवत जिस पद पर हैं, और जिस आदर और श्रद्धा के साथ समाज का एक बड़ा तबका उनकी बात को सुनता है, उसे देखते हुए ऐसा लगना स्वाभाविक है कि उनकी बातों पर गौर किया जाएगा-समरसता के उनके संदेश को समझने का, उसके अनुरूप आचरण करने का ईमानदार प्रयास किया जाएगा. मैं भागवतजी की इस बात से भी सहमत हूं कि देश में कोई अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक नहीं है.

इस देश में हर एक को अपने तरीके से पूजा-अर्चना करने का अवसर मिलना चाहिए. वस्तुत: यह अवसर नहीं, अधिकार हैं जो हमारे संविधान ने हमें दिया है. नागरिक के इस संवैधानिक अधिकार की रक्षा होनी ही चाहिए.

Web Title: Need to promote messages of harmony

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