ब्लॉग: रूस सहित चीन, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों से सीखने की जरूरत, महाशक्ति बनने के लिए अपनी भाषा को महत्व देना जरूरी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: March 3, 2023 03:45 PM2023-03-03T15:45:38+5:302023-03-03T15:45:38+5:30
जो देश पिछले दो-तीन सौ साल में महाशक्ति और महासंपन्न बने हैं, वे अपनी भाषाओं के जरिए ही बने हैं. भाषा को खत्म करके आप अपनी संस्कृति और परंपरा को बचा ही नहीं सकते.

अपनी भाषा को महत्व देना जरूरी (फाइल फोटो)
हमारे राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की बाढ़ आ रही है लेकिन जरा रूस की तरफ देखें. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कल एक राजाज्ञा पर दस्तखत किए हैं, जिसके अनुसार अब रूस के सरकारी कामकाज में कोई भी रूसी अफसर अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेगा.
इस राजाज्ञा में यह भी कहा गया है कि अंग्रेजी मुहावरों का प्रयोग भी वर्जित है. लेकिन जिन विदेशी भाषा के शब्दों का कोई रूसी पर्याय ही उपलब्ध नहीं है, उनका मजबूरन उपयोग किया जा सकता है. रूस ही नहीं, चीन, जर्मनी, फ्रांस, और जापान जैसे देशों में स्वभाषाओं की रक्षा के कई बड़े अभियान चल पड़े हैं.
आजकल दुनिया काफी सिकुड़ गई है. सभी देशों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति, आवागमन आदि काफी बढ़ गया है. इसीलिए इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को विदेशी भाषाओं का ज्ञान जरूरी है लेकिन भारत-जैसे अंग्रेजों के पूर्व गुलाम राष्ट्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि स्वभाषाएं अब दिवंगत होती जा रही हैं. भाषा को खत्म करके आप अपनी संस्कृति और परंपरा को बचा ही नहीं सकते.
भाषा बदलने से आदमी की सोच बदलने लगती है, रिश्ते बदलने लगते हैं, मौलिकता समाप्त हो जाती है. जो देश पिछले दो-तीन सौ साल में महाशक्ति और महासंपन्न बने हैं, वे अपनी भाषाओं के जरिए ही बने हैं. मैं दुनिया के पांचों महाशक्ति राष्ट्रों में रहकर उनकी भाषा नीति को निकट से देख चुका हूं. उनमें से किसी भी राष्ट्र की पाठशालाओं में विदेशी भाषा अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ाई जाती है.
हमारे बच्चों पर अंग्रेजी नहीं लादी जाए. उन्हें बड़े होकर कई विदेशी भाषाएं सीखने की छूट हो लेकिन यदि प्राथमिक कक्षाओं में उन पर अंग्रेजी थोपी गई तो यह हिरण पर घास लादनेवाली बात हो गई. इसे सीखने में वे रट्टू तोते बन जाते हैं और उनमें हीनता ग्रंथि पनपने लगती है.