Nationalist Congress Party 2024: महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव, राकांपा की कलह में असली निर्णायक तो जनता रहेगी
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 8, 2024 12:45 PM2024-02-08T12:45:35+5:302024-02-08T12:47:00+5:30
Nationalist Congress Party 2024: शरद पवार की जबर्दस्त संगठन क्षमता तथा मराठा समाज में उनकी तगड़ी पैठ के कारण राकांपा महाराष्ट्र में निर्णायक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गई तथा उसने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया.
Nationalist Congress Party 2024: महाराष्ट्र में निकट भविष्य में होने वाले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के पहले उपमुख्यमंत्री अजत पवार को जबर्दस्त ताकत मिली है. यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग के फैसले से मिली इस ताकत को वह लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए जीत में तब्दील कर पाते हैं या नहीं. निर्वाचन आयोग ने संख्या बल के आधार पर अजित पवार के नेतृत्व वाले धड़े को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी माना. राकांपा की स्थापना 25 साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री तथा मराठा दिग्गज शरद पवार ने कांग्रेस छोड़कर की थी. यह बात अलग है कि पवार की पार्टी राष्ट्रव्यापी जड़ें नहीं जमा सकी लेकिन महाराष्ट्र में मराठा दिग्गज ने अपने जनाधार का लोहा मनवाया. पवार की जबर्दस्त संगठन क्षमता तथा मराठा समाज में उनकी तगड़ी पैठ के कारण राकांपा महाराष्ट्र में निर्णायक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो गई तथा उसने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया.
भतीजे अजित पवार की बगावत के कारण पार्टी दो टुकड़ों में विभाजित हो गई और जीवन की सांध्य बेला में उन्हें अपने राजनीतिक वजूद को फिर से साबित करने की कठिन चुनौती मिली. गत वर्ष राकांपा में दो-फाड़ होने के बाद से शरद पवार तथा अजित पवार अपने-अपने धड़े को असली राकांपा साबित करने की जद्दोजहद में जुटे थे.
अधिकांश विधायक अजित पवार के साथ चले गए लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक यह साबित नहीं हो पाया है कि पार्टी का आम कार्यकर्ता एवं उसका परंपरागत वोट बैंक किसके साथ में है. निर्वाचन आयोग के फैसले से ही असली-नकली राकांपा का मसला हल नहीं हो जाएगा. अब लड़ाई अदालत में होगी और उसके बाद असली शक्तिपरीक्षण आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में होगा.
शरद पवार छह दशक से राजनीति में हैं. उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है और महाराष्ट्र की राजनीति पर वर्चस्व रखनेवाले शक्तिशाली मराठा समाज के वे सबसे कद्दावर एवं लोकप्रिय नेता हैं. उनकी संगठन क्षमता भी विलक्षण है. सन् 1978 में उन्होंने वसंतदादा पाटिल जैसे दिग्गज नेता के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार का तख्ता पलटने का कारनामा कर दिखाया था.
तब से लेकर पिछले 45 वर्षों में शरद पवार ने कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे. कांग्रेस में वापसी की और फिर 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल पर उससे अलग होकर राकांपा बनाई. आज राकांपा में शरद पवार के साथ जितने भी ताकतवर नेता दिखाई दे रहे हैं और पवार से अलग होकर दूसरे दलों में जाकर राजनीति कर रहे हैं, वे सब मराठा दिग्गज की छात्रछाया में ही अपना वजूद बना पाए हैं.
शरद पवार को निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद कमजोर मान लेना राजनीति के पंडितों या उनके प्रतिद्वंद्वियों की गलतफहमी होगी. अजित पवार ने संगठन तथा प्रशासन चलाने का कौशल अपने चाचा से ही सीखा है. वह भी संगठन क्षमता के धनी हैं. पार्टी को तोड़ने के बाद अजित पवार ने अपने गुट को जमीनी स्तर पर जिस मजबूती के साथ खड़ा करने का प्रयास किया है, वह उनकी संगठन क्षमता का परिचायक है. पांच साल पहले भी उन्होंने भाजपा के साथ हाथ मिलाया और अल्पजीवी सरकार बनाई थी लेकिन शरद पवार के राजनीतिक कौशल के आगे उनकी एक नहीं चली तथा राकांपा को वह तोड़ नहीं सके.
लेकिन दूसरी बार उन्होंने पूरी तैयारी तथा ठोस रणनीति के साथ कदम उठाया और राकांपा को तोड़ने में सफल हुए. इस वक्त राकांपा के अधिकांश विधायक तथा कई बड़े नेता उनके साथ हैं लेकिन इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि अजित पवार के पास अपने चाचा की तरह मजबूत जनाधार नहीं है. अगले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में उन्हें सीटों को लेकर भाजपा के साथ तालमेल करने में आसानी नहीं होगी. अपने राजनीतिक अस्तित्व को मजबूती से टिकाए रखने के लिए अजित पवार को अगले चुनावों में भाजपा का सहारा लेना ही पड़ेगा.
क्योंकि अकेले के दम पर वह शायद ही महाराष्ट्र की राजनीति में कोई करिश्मा दिखा सकें. अगले चुनाव में शरद पवार भावनात्मक अपील के साथ मैदान में उतरेंगे और दूसरी ओर अजित पवार के लिए यह साबित करना आसान नहीं होगा कि वह सत्ता की खातिर नहीं बल्कि राज्य के विकास के लिए भाजपा के साथ आए हैं.
भारतीय राजनीति में अक्सर भावनात्मक अपील असली मुद्दों पर भारी पड़ जाती है. उम्र के इस पड़ाव पर शरद पवार संभवत: अपने जीवन की सबसे कठिन राजनीतिक अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं. दूसरी ओर अजित पवार को मराठा राजनीति में खुद को अपने चाचा का उत्तराधिकारी साबित करने की चुनौती से जूझना पड़ेगा. सारा दारोमदार अगले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव पर है.
मतदाता अगर शरद पवार का साथ देंगे तो महाराष्ट्र की राजनीति में उनका कद आसमान छूने लगेगा और अजित पवार अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाए तो उनके सामने दो ही विकल्प रहेंगे, पहला भाजपा के सहारे टिके रहने का प्रयास करना या ‘घर वापसी’ कर लेना. निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद चाचा-भतीचा के बीच राजनीतिक युद्ध निश्चित रूप से थमेगा नहीं बल्कि और तेज होगा तथा असली निर्णायक राज्य की जनता रहेगी.