आलोक मेहता का ब्लॉग: पीएम मोदी की 77 की सेना और 7 पहाड़ लांघने की चुनौतियां
By आलोक मेहता | Published: July 10, 2021 09:08 AM2021-07-10T09:08:10+5:302021-07-10T09:08:10+5:30
नरेंद्र मोदी कैबिनेट में बदलाव के बाद सरकार के सामने कई और चुनौतियां भी हैं। सरकार के सामने कोरोना से निपटने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने चुनौती है।
सत्ता के 7 साल बाद 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़े झटके के साथ मंत्रिमंडल में क्रांतिकारी बदलाव किए. राजनीतिक, सामाजिक-जातीय, क्षेत्रीय समीकरणों तथा अब तक की कमियों और विफलताओं पर दो दिनों से बहुत कुछ बोला, दिखाया, लिखा गया है. अब तक रही कमियों और गड़बड़ियों की चीरफाड़ के बजाय हमेशा की तरह आगे दिख रही सात पहाड़ों जैसी चुनौतियों की चर्चा करना उचित लगता है.
सचमुच लक्ष्य तय करना, पहाड़ पर झंडे फहराने के संकल्प, खुशियों के फूलों की घाटी बना देने के वायदे अथवा घोषणाओं के नगाड़े बजाना आसान है. मोदी सरकार के 77 पर्वतारोही मंत्रियों के लिए समस्याओं के पहाड़ों के रास्तों पर नुकीले पत्थर, कहीं तूफानी हवा, बर्फीली बारिश और भटकाव के खतरे भी हैं.
पहाड़-1 : पूरी दुनिया के साथ भारत पर कोरोना के एक और तूफान की आशंका के सायरन अब भी बज रहे हैं. मंत्री बदलने के अगले दिन ही कोरोना संकट से निपटने की आपात व्यवस्था के लिए एक प्रारूप को कैबिनेट की बैठक में स्वीकृति दी गई है.
दूसरे दौर की देरी इस बार नहीं होगी. लेकिन कोरोना महामारी से लोगों की जान बचाने की तैयारियों के साथ संपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था को बड़े पैमाने पर सुधारने की महत्वपूर्ण चुनौती है. अस्पतालों, दवाइयों, टीकों (वैक्सीन), उपकरणों, मेडिकल कालेजों आदि की महत्वाकांक्षी योजना के साथ भारी बजट का इंतजाम करना है.
वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए देश के पूरे बजट का पंद्रह-बीस प्रतिशत हिस्सा देने के लिए नए संसाधनों, व्यापक समर्थन की आवश्यकता होगी.
पहाड़-2 : कृषि आय के नाम पर केवल बड़े किसान ही नहीं नेता, अफसर, अभिनेता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और व्यापारी भी आय कर बचा रहे हैं. पचास लाख-एक करोड़ की कृषि आय वालों से टैक्स वसूली कर देश भर के छोटे, मध्यम आय वर्ग वाले किसानों को अधिकाधिक लाभ और सुविधाएं दी जा सकती हैं.
पहाड़-3 : तीसरा पहाड़ देश में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए तात्कालिक और दूरगामी योजना, कार्यक्रम, बजट के प्रावधान का है. बेरोजगारी की समस्या तो लगातार रही है, लेकिन कोरोना महामारी ने उद्योग-धंधों के साथ विभिन्न क्षेत्नों में बेरोजगारों की समस्या को विकराल कर दिया है. यही नहीं, आधुनिक टेक्नोलॉजी ने काम करने वाले लोगों की आवश्यकता कम कर दी.
इस दृष्टि से कौशल विकास योजना का अधिकाधिक क्रियान्वयन कर स्वरोजगार की व्यवस्था, ब्रिटिश राज से चली आ रही सरकारी नौकरियों की मानसिकता को बदलने के लिए व्यापक अभियान, लघु मध्यम श्रेणी के उद्योगों और ग्रामोद्योग के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता होगी.
पहाड़-4 : अर्थव्यवस्था का पहाड़ तो सबसे ऊंचा है. भारतीय पूंजीपतियों की कंपनियां हों या विदेशी कंपनियां- देश में अनुकूल वातावरण, शांति व्यवस्था, स्थायी सरकार और स्थायी लगने वाले नियम-कानून होने पर विकसित देशों की तरह उत्तर भारत में भारी पूंजी लगाए जाने की आवश्यकता है.
उत्तर प्रदेश में रक्षा क्षेत्र के औद्योगिक कॉरिडोर बनाए जाने की योजना है. अब चुनाव सिर पर हैं. फिर भी काम शुरू करवाया जा सकता है. लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदि प्रदेशों में भी इसी तरह विदेशी पूंजी लगाए जाने के लिए रास्ते बनाए जा सकते हैं. आर्थिक प्रगति के लिए केंद्र या राज्य सरकारों के राजनीतिक मतभेद रुकावट नहीं बनने चाहिए.
पहाड़- 5 : शिक्षा व्यवस्था दशकों से उलट-पलट होती रही है. नई शिक्षा नीति बन गई, लेकिन उसका क्रियान्वयन अटका हुआ है. शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधारों के साथ नई पीढ़ी को अधिकारों, अनुशासन और कर्तव्य के संस्कार और भारतीयता के गौरव की भावनाओं का संचार करना होगा.
पहाड़-6 : सीमाओं पर सैन्य अथवा आतंकवादी गतिविधियों से कई बार चिंता की स्थिति बनती है. इसलिए सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करते हुए जनता के बीच यह विश्वास बनाया जाना जरूरी है कि भारतीय सीमाएं हमारी सेना के बल पर पूरी तरह सुरक्षित हैं और भारतीय भूमि पर कोई अतिक्रमण नहीं हो सकता है.
पहाड़-7 : और एक पहाड़ सफलताओं अथवा भविष्य में सबके साथ सबके विकास और आत्मनिर्भरता के लिए सरकार की छवि को अच्छी बनाए रखने का है. केवल चुनाव और सत्ता के समीकरणों से जनता का समर्थन मिलने की धारणा कुछ हद तक ही ठीक है.
सरकार को अपनी और भारत की छवि निरंतर अच्छी रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास करते रहना होगा. देश में शांति व्यवस्था हो या आर्थिक विकास, छवि का बेहतर होना जरूरी है. समाज में भविष्य के अनुकूल होने की आशा विश्वास बनाए रखे बिना दुनिया से मुकाबला संभव नहीं है.