नंदिनी सिन्हा का ब्लॉग: बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मीडिया की यादगार भूमिका
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 16, 2019 09:50 AM2019-12-16T09:50:47+5:302019-12-16T09:50:47+5:30
सेना के कड़े नियमों का खौफ और जान का खतरा हर पत्नकार को था. लेकिन उसी भीड़ में एक ऐसा पाकिस्तानी पत्नकार भी शामिल था, जिसने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए सच को सामने लाने में सफलता पाई.
किसी भी देश की स्थिति और दशा बदलने में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संचार का बहुत महत्व होता है. बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में विदेशी मीडिया की भूमिका को देखकर कहा जा सकता है कि उसने अपने इन सारे दायित्वों का निर्वहन बखूबी किया.
विदेशी मीडिया में 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के कवरेज से जो तस्वीर उभरकर सामने आती है, वह पाकिस्तानी सरकार के दमन, उत्पीड़न और क्रूरता की पराकाष्ठा है. बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के आम नागरिकों का दमन अपनी चरम सीमा पर जा पहुंचा.
सेना के कड़े नियमों का खौफ और जान का खतरा हर पत्नकार को था. लेकिन उसी भीड़ में एक ऐसा पाकिस्तानी पत्नकार भी शामिल था, जिसने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए सच को सामने लाने में सफलता पाई. युद्ध काल में ऐसा अदम्य साहस कर सच लिखने की हिम्मत जुटा पाने की किसी पाकिस्तानी पत्नकार की यह इकलौती मिसाल है.
एंथनी मास्कारेन्हास एक पाकिस्तानी पत्नकार थे. उन्होंने खुद की और अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर इस चुनौती को स्वीकार किया. पाकिस्तान में रहकर ऐसा करना मुमकिन नहीं था, इसलिए वे देश से बाहर ब्रिटेन चले गए और अपनी आंखों देखी को शब्दों में उतारा. 13 जून 1971 को संडे टाइम्स में जेनोसाइड शीर्षक के साथ 16 कॉलम की रिपोर्ट ने उस पूरे खूनी खेल को उजागर किया, जिसे पाकिस्तान अपने क्रूर अभियान के तहत अंजाम दे रहा था.
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत के मीडिया की भूमिका पर दृष्टिपात करें तो कोलकाता से प्रकाशित अमृत बाजार पत्रिका ने 28 मार्च 1971 के अंक में ‘पूर्वी बंगाल में सेनावाहिनी के त्नास का राज’ शीर्षक से लंबे लेख में कहा, ‘‘दो दिनों के लगातार मृत्यु व ध्वंस में प्राय: एक लाख लोग हताहत हुए हैं. दस लाख लोगों की आबादी वाला शहर ढाका आग और धुएं में ढंक गया है.
पश्चिमी पाकिस्तान की सेना टैंक से लगातार संहार अभियान छेड़े हुए है.’’ ‘धर्मयुग’ के संपादक डॉ. धर्मवीर भारती 1971 में मुक्तिवाहिनी के संग्राम का विवरण देने के लिए खुद वहां पहुंच गए. पत्नकारिता में ऐसा अदम्य साहस दिखा कर उन्होंने युद्ध क्षेत्न में जाकर छह किस्तों में लेख लिखा. उनके साथ छायाकार बालकृष्ण भी थे.
ब्रह्मपुत्न के तट पर मोर्चेबंदी का सर्वेक्षण करने के दौरान जमालपुर से पाकिस्तानियों की गोलीबारी से बचते हुए अपनी रपट को लेकर तटस्थ रहे. जमालपुर में पाकिस्तान की 31 बलूच रेजिमेंट द्वारा की गई बर्बरता से दुनिया को परिचित कराकर उसकी हैवानियत की दास्तां सबको बताई.