एनके सिंह का ब्लॉग: बहुत गहराई तक फैली हैं भ्रष्टाचार की जड़ें

By एनके सिंह | Updated: May 11, 2019 09:07 IST2019-05-11T09:07:24+5:302019-05-11T09:07:24+5:30

वित्त मंत्नी अरुण जेटली ने भी विगत 9 मई को एक पुस्तक-विमोचन समारोह में कहा कि अदालत को डराने का कुचक्र चल रहा है. अगर देश की सबसे बड़ी पंचायत भी यही बात कहे और देश का शासक वर्ग भी, तो फिर इलाज क्या है?

N K Singh's Blog: Extremely Deepening Roots of Corruption | एनके सिंह का ब्लॉग: बहुत गहराई तक फैली हैं भ्रष्टाचार की जड़ें

सुप्रीम कोर्ट में हुई तीन घटनाओं ने भारत की न्याय-व्यवस्था को सदमे में डाल दिया

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में हुई तीन घटनाओं ने भारत की न्याय-व्यवस्था को सदमे में डाल दिया. यहां तक कि जाने-माने वकील और भारत के वित्त मंत्नी अरुण जेटली ने भी विगत 9 मई को एक पुस्तक-विमोचन समारोह में कहा कि अदालत को डराने का कुचक्र चल रहा है. अगर देश की सबसे बड़ी पंचायत भी यही बात कहे और देश का शासक वर्ग भी, तो फिर इलाज क्या है? क्या न्याय के लिए माफियाओं की दहलीज पर जाना होगा? इन तीन घटनाओं ने पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार पर शोध कर रहे विद्वानों के लिए एक नया सवाल खड़ा कर दिया है- क्या विकासशील देशों में (खासकर भारत सरीखे) प्रचलन में आया कोल्युसिव करप्शन (सहमति के आधार पर भ्रष्टाचार) से छुटकारा पाना असंभव है? 

इस किस्म का भ्रष्टाचार सन 1970 से शुरू हुआ जब विकास का पैसा बड़े परिमाण में सरकारी विभागों के माध्यम से भारत सहित तृतीय विश्व (अब विकासशील) में दिया जाने लगा. इसकी सबसे बड़ी खराबी यह है कि इसका खत्म होना तब तक संभव नहीं जब तक समाज के अंदर वैयक्तिक नैतिक विवेक को झकझोरा न जाए और साथ ही भ्रष्टाचार निरोधक कानून और संस्थाओं को इतना मजबूत न बना दिया जाए कि कोई उनकी अवहेलना करने की हिमाकत भी न करे. द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस संकट को ‘कोएर्सिव करप्शन’ (भयादोहन के जरिए किया जाने वाला भ्रष्टाचार) से भी खतरनाक बताया और दस साल पहले अपनी रिपोर्ट में पहले सिंगापुर और हांगकांग का उदाहरण देते हुए सलाह दी कि मजबूत संस्थाएं विकसित की जाएं और इसमें दोष-मुक्ति का जिम्मा (बर्डन ऑफ प्रूफ) भी आरोपी पर डाला जाए. 

क्या कोई सोच सकता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में बेंच आदेश कुछ देते हैं और जो ऑर्डर औपचारिक रूप से निर्गत होता है वह कुछ और होता है! किसी व्यक्ति के पास इससे ऊपर न्याय के लिए जाने का उपाय नहीं है क्योंकि यह अंतिम अदालत है. यानी आप इस पर मुतमईन न हों कि आपके पक्ष में वकील ने अच्छा तर्क दिया और बेंच ने फैसला आपके पक्ष में सुनाया. हाथ में जो आदेश आएगा वह शायद आपके खिलाफ हो. 

ताजा घटना में हुआ यूं कि पिछली 2 मई को जस्टिस अरुण मिश्र के नेतृत्व वाली बेंच ने आदेश दिया कि आम्रपाली बिल्डर द्वारा मकान खरीदने वाले हजारों लोगों के सैकड़ों करोड़ रुपए की हेराफेरी के मामले में माल सप्लाई करने वाली छह कंपनियों के डायरेक्टर फॉरेंसिक ऑडिटर (कोर्ट निर्धारित ऑडिटर) पवन अग्रवाल के समक्ष प्रस्तुत हों. पर जब 9 मई को बेंच फिर बैठी तो औपचारिक ऑर्डर में पवन अग्रवाल की जगह इन डायरेक्टरों को एक अन्य फॉरेंसिक ऑडिटर रविंद्र भाटिया के समक्ष प्रस्तुत होने को कहा गया था.    

हाल में तीन ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे बेंच के जजों के हाथ के तोते उड़ गए जब उन्होंने पाया कि जो ऑर्डर उन्होंने इन मामलों में दिया था उससे अलग ऑर्डर उनके स्टाफ ने जारी कर दिया है. यह पिछले एक हफ्ते में इस तरह की दूसरी घटना है जबकि कुछ सप्ताह पहले भी देश के एक बड़े उद्योगपति के अवमानना के मुकदमे में भी आदेश बदल दिया गया था. जब बेंच को पता चला तो कोर्ट के दो कर्मचारी तत्काल नौकरी से निकाले गए और उन पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए.   

ताजा घटना में कुपित होकर बेंच ने कहा, ‘कुछ प्रभावशाली कॉर्पोरेट घराने कोर्ट स्टाफ से मिल कर आदेश बदलवा देते हैं. वे न्यायप्रणाली में अंदर तक घुस गए हैं.’ उन्होंने याद दिलाया कि कुछ दिन पहले जस्टिस रोहिंगटन नरीमन के नेतृत्व वाली बेंच के आदेश को भी बदल दिया गया था, जिस पर अदालत के आदेश पर दो कर्मचारियों को निकाला गया.      

ध्यान रहे कि इसी अदालत की एक महिला कर्मचारी ने देश के प्रधान न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप लगा कर पूरे देश में तहलका मचा दिया और यहां तक कि वकीलों का एक वर्ग और कोर्ट के कर्मचारियों के संगठन ने भी धरना-प्रदर्शन किया उस महिला कर्मचारी के पक्ष में. उधर कुछ दिनों में ही वकीलों और कोर्ट कर्मचारियों के अन्य धड़ों ने भी प्रधान न्यायाधीश के पक्ष में प्रति-धरना शुरू कर दिया. यह सब राजनीतिक दलों और उनके आनुषंगिक संगठनों द्वारा तो किया जाता है लेकिन देश के प्रधान न्यायाधीश भी सही हैं कि गलत, यह सड़कों पर साबित होगा! 
जजों के ये उद्गार समाज के लिए एक दहशत पैदा करने वाले हैं. लगता है कि देश के सबसे बड़े न्याय के मंदिर में भी सब कुछ सही नहीं है? एक ही संस्था बची थी जिस पर भरोसा सबसे ज्यादा था, लेकिन प्रभुता संपन्न वर्ग उसे भी घसीट कर अपने स्तर पर ला खड़ा कर देना चाहता है. प्रधान न्यायाधीश ने इस मामले पर पहले दिन कहा था कि कुछ प्रमुख मामलों में यह अदालत सुनवाई करने जा रही है इसलिए यह सब किया जा रहा है.   

हम 70 साल में कहां आ गए हैं? शासक वर्ग के पास तो कानून की शक्ति है, पुलिस है, फिर वित्त मंत्नी असहाय क्यों? फिर देश के सुप्रीम कोर्ट के जज ही नहीं, उच्च न्यायालयों के जज भी संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के कवच से रक्षित हैं. उनको कौन डराने की जुर्रत कर रहा है? हमारा सिस्टम कितना असहाय हो चुका है इन सात दशकों में? 

Web Title: N K Singh's Blog: Extremely Deepening Roots of Corruption

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