मिथकों की कहानियां और मानव उत्पत्ति का विज्ञान

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 18, 2025 07:13 IST2025-11-18T07:13:53+5:302025-11-18T07:13:59+5:30

इसलिए इसे विज्ञान से समझा जाए. थॉमस कुहन ‘द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवोल्यूशंस’ में आगाह करते हैं कि विज्ञान सीधी रेखा में नहीं चलता.

Myths and Science of Human Origins Narmada River in Hathnora Narsinghpur | मिथकों की कहानियां और मानव उत्पत्ति का विज्ञान

मिथकों की कहानियां और मानव उत्पत्ति का विज्ञान

सुनील सोनी

यह जानना बड़ा दिलचस्प है कि 1974 में नरसिंहपुर के हथनौरा में नर्मदा नदी के किनारे भूगर्भशास्त्री अरुण सोनकिया को खुदाई में एक खोपड़ी, कोहनी की दो हड्डियों और पसली के अवशेष मिले. अंदाजा लगा कि यह पिग्मी शरीर संरचना है और वह छह लाख से डेढ़ लाख साल पहले के मानव पुरखे की होगी. उसे नर्मदा होमिनिन कहा गया. एक मत है कि अफ्रीका से प्रवास के पहले से मानवीय पुरखे यहां मौजूद थे. होमिनिन उस संपूर्ण समूह का नाम है, जिसमें मौजूदा मानव और मानव के सभी निकट विलुप्त रिश्तेदार शामिल हैं.

नर्मदा घाटी में कई पुरापाषाण (पेलियोलिथिक) औजार मिले हैं, जो बताते हैं कि यह क्षेत्र लाखों वर्षों से मानव गतिविधि का केंद्र रहा है. तमिलनाडु के अत्तिरमपक्कम में 3.85 लाख वर्ष पुराने औजार मिले हैं. भीमबेटका तथा सोहन घाटी भी पुरापाषाणकालीन हैं.

65 हजार साल पहले अफ्रीका से मानवीय पुरखों के प्रवास की कथा यहां नया रूप ले लेती है. यह यूरोप और एशिया के होमिनिन विकास के बीच पुल साबित हो सकती है. लेकिन यह मिथक नहीं है, विज्ञान है.
मशहूर वैज्ञानिक गौहर रजा की ‘नज्म’ कहती है...

‘‘सुना है रात के परदे में सुब्ह सोती है...
सवेरा उठ के दबे पांव आएगा हम तक...’’

दरअसल यह नज्म उसी सवेरे पर यकीन की बात है, जो बहुत लंबी रात के बाद आएगा. उसका आना या होना लाजिमी है. उनकी किताब ‘मिथकों से विज्ञान तक’ का लब्बोलुआब है कि मिथक अचानक पैदा नहीं होते. सत्ता, संस्कृति, भय, सामाजिक संघर्षों से जन्म लेते हैं. यह प्रक्रिया समझना वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पहला सोपान है. वे मिथकों को नकारते नहीं; उनकी उत्पत्ति के ऐतिहासिक तथ्यों, तत्कालीन सामाजिक अवस्था एवं राजनीतिक इस्तेमाल को उजागर करते हैं.

वे आख्यानों की संरचना, उद्देश्य व प्रभाव की समाजशास्त्रीय एवं वैज्ञानिक जांच करते हैं. तर्क, प्रमाण, कारण-परिणाम जैसी वैज्ञानिक अवधारणाओं को मिथकीय कथाओं पर लागू करके बताते हैं कि सत्य की खोज का विधिवत तरीका क्या है. कोई शक नहीं कि भारतीय समाज में मिथक केवल कथाएं नहीं, बल्कि पहचान, परंपरा एवं सत्ता संरचना से बंधे हैं. उनके वैज्ञानिक विश्लेषण को वे मानवीय अनुभव, इतिहास, साहित्य से जोड़ते हैं.

वे सैकड़ों डॉक्युमेंटरी व लघु फिल्मों के जरिये विज्ञान को जीवन, संसाधनों, पर्यावरण, लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों से जोड़ते है, तो यह वैज्ञानिक विमर्श, सांस्कृतिक तथा बौद्धिक सफर बन जाता है.

भारतीय उपमहाद्वीप में विज्ञान को आमफहम जुबान में लोगों तक पहुंचाने की महारथ तो जयंत नारलीकर की भी रही है. उन्होंने खगोल विज्ञान को जनसुलभ बना दिया. पी.सी. महालनोबिस ने आंकड़ों और वैज्ञानिक विधि से यही काम किया, तो यशपाल ने किताबों, टीवी के जरिये सूर्य ग्रहण को समझना सरल बना दिया.

यही काम डॉ. मेघनाद साहा ने उसी तरह से किया, जैसे जवाहरलाल नेहरू ने इतिहास, संस्कृति एवं परंपरा को वैज्ञानिक तर्कों से सुबोध किया. अरविंद गुप्ता के काम का विशेष स्थान है, जिन्होंने बाल मन को वैज्ञानिक बनाने के लिए बहुआयामी काम किए.

इसलिए जब कार्ल सेगन ‘द डेमन : हाॅन्टेड वर्ल्ड’ लिखकर चेतावनी देते हैं या रिचर्ड डॉकिंस ‘द सेल्फिश’ जीन में दिखाते हैं कि जीव वैज्ञानिक प्रक्रियाएं कितनी कठोर हैं. उन्हें मिथक जब मुलायम, मानवीय कहानियों में बदलते हैं, तो तर्क कहीं खो-सा जाता है.

युवाल नूह हरारी ‘सेपियंस’ और ‘इमेजिन्ड ऑर्डर्स’ में जब राष्ट्र, धर्म, जाति, धन को सामूहिक मिथक करार देते हैं, तो बताते हैं कि कैसे मिथक सामाजिक नियमों को रूढ़ करते हुए विज्ञान के प्राकृतिक नियमों को दरकिनार कर देते हैं.
स्टीफन हॉकिंग ‘द ग्रैंड डिजाइन’ में कहते हैं कि ब्रह्मांड मिथकीय नहीं है, इसलिए इसे विज्ञान से समझा जाए. थॉमस कुहन ‘द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवोल्यूशंस’ में आगाह करते हैं कि विज्ञान सीधी रेखा में नहीं चलता. जब विज्ञान को मिथक बना लिया जाता है, तब वह विज्ञान नहीं होता, मिथक बनने की ओर चल देता है.

जैसे कि जैरेड डायमंड ‘गंस, जर्म्स एवं स्टील’ में बताते हैं कि कुछ नस्लों की श्रेष्ठता का भ्रम ऐतिहासिक व भौगोलिक मिथक हैं.

कोई शक नहीं कि इनसान उन प्राकृतिक रहस्यों को आसानी से समझना चाहता है, जो बेहद जटिल हैं. वह धरती की उत्पत्ति, मानव समेत सभी प्राणियों की भूमिका, कुदरत की ताकत और अज्ञात के भय के बारे में सोचता है, तो मिथक गढ़े जाते हैं. वे इनसान को कहानियों के मार्फत अर्थ देते हैं, पर प्रमाण नहीं. इससे मानव प्रजाति के विकास के जीवविज्ञान का तर्क ठहर जाता है.

Web Title: Myths and Science of Human Origins Narmada River in Hathnora Narsinghpur

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