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Mumbai Mahanagar Flat: भ्रष्ट अधिकारियों को जेल क्यों नहीं भेजते?, कल्याण-डोंबिवली क्षेत्र की 65 बहुमंजिला इमारत...

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: February 21, 2025 05:52 IST

Mumbai Mahanagar Flat: कल्याण-डोंबिवली क्षेत्र की 65 बहुमंजिला इमारतों के रहवासियों के सामने इस वक्त इसी तरह की आफत की स्थिति है.

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ठळक मुद्देMumbai Mahanagar Flat: अवैध है तो इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती है?Mumbai Mahanagar Flat: कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता क्योंकि इमारतें अवैध हैं.Mumbai Mahanagar Flat:बिल्डर्स ने धोखाधड़ी की है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.

Mumbai Mahanagar Flat: आप एक आशियाने के लिए पाई-पाई जोड़ कर कुछ राशि इकट्ठा करें. फिर बैंक से लोन लें और एक फ्लैट के मालिक बन जाएं. मध्यम और निम्न-मध्यम  वर्ग के लिए इससे ज्यादा सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है? मुंबई महानगर और उसके आसपास फ्लैट खरीद लेना केवल सौभाग्य नहीं बल्कि महासौभाग्य की बात होती है. फिर किसी दिन अचानक नोटिस आ जाए कि आप जिस फ्लैट में रह रहे हैं वह किसी गार्डन, किसी स्कूल या सरकारी जमीन पर बना है इसलिए अवैध है तो इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती है?

कल्याण-डोंबिवली क्षेत्र की 65 बहुमंजिला इमारतों के रहवासियों के सामने इस वक्त इसी तरह की आफत की स्थिति है. मुंबई हाईकोर्ट ने इन बहुमंजिला इमारतों को अवैध माना है और इन्हें ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं. कानूनी तौर पर हाईकोर्ट के आदेश को लेकर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता क्योंकि इमारतें अवैध हैं.

सबसे पहले 2023 में एक नोटिस के बाद रहवासियों को पता चला था कि उन्होंने जो फ्लैट खरीदे हैं वे अवैध हैं. उसके बाद काफी दौड़धूप की लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली. प्रभावित परिवार अब राज्य सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनका आशियाना बचाया जाए. जिन बिल्डर्स ने धोखाधड़ी की है, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए.

अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बिल्डर्स के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं और आश्वासन दिया है कि नियमों में ढील देने पर विचार किया जा सकता है. उनका आशय नियमितीकरण से है लेकिन यहां कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं. जब भी किसी भवन का निर्माण होता है तो सबसे पहले एक नक्शा बनता है जिसे महानगर पालिका की स्वीकृति मिलने के बाद ही काम शुरू होता है.

नक्शे की स्वीकृति के लिए बहुत कठोर नियम हैं. यदि महानगर पालिका के अधिकारियों ने ध्यान दिया होता तो तभी पता चल जाता कि जिस जमीन पर इमारत बनने वाली है, उसका मालिक कौन है और वह किस उपयोग की है. जाहिर सी बात है कि ठेकेदारों के साथ वरिष्ठ अधिकारियों की भी मिलीभगत होगी.

अधिकारियों ने बिना रिश्वत के इतना बड़ा काम तो किया नहीं होगा! जब काम शुरू होता है तब इंजीनियर हर मुकाम पर जांच-पड़ताल करते हैं कि काम नियमानुसार हो रहा है या नहीं. इस लेवल पर भी मामला पकड़ में आ सकता था. सवाल यह भी है कि जब बैंक होम लोन देते हैं तो पिछले बीस साल के कागजात खंगाले जाते हैं कि यह जमीन पहले किसकी थी, इसका टाइटल क्लियर है या नहीं है?

मान लीजिए कि बिल्डर्स ने फर्जी कागजात तैयार कर लिए थे तो सवाल है कि बैंकों ने कागजात के फर्जी होने को क्यों नहीं पकड़ा? क्या बैंक अधिकारियों की भी मिलीभगत थी? और सबसे गंभीर सवाल कि जब ये 65 इमारतें बन रही थीं तो इन इलाकों के जनप्रतिनिधि क्या कर रहे थे? ये स्वीकार करना बहुत मुश्किल है कि उन्हें पता ही नहीं था कि इमारतें अवैध रूप से बन रही थीं!

निश्चित रूप से सबको सबकुछ पता था लेकिन भू-माफिया का मायाजाल इतना मजबूत होता है कि सब उस जाल का हिस्सा बनते चले जाते हैं. और खामियाजा अंतत: आम आदमी को भुगतना पड़ता है. यदि सरकार वाकई इस मामले में न्याय करना चाहती है तो परिवारों को राहत देने का रास्ता तलाशने के साथ ही बिल्डर्स और हर दोषी अधिकारी को जेल की हवा खिलाए!

टॅग्स :मुंबईमहाराष्ट्रदेवेंद्र फड़नवीस
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