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Mohan Bhagwat: ‘सबका साथ, सबका विकास’ का भागवत मंत्र?, मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख!

By हरीश गुप्ता | Updated: January 9, 2025 05:57 IST

Mohan Bhagwat On Mandir Masjid Controversy: देश भर में बवाल मच गया और कई राजनीतिक दलों और समूहों ने भागवत की आलोचना की.

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ठळक मुद्देMohan Bhagwat On Mandir Masjid Controversy: मोहन भागवत ने अपने व्याख्यान में किसी का नाम नहीं लिया. Mohan Bhagwat On Mandir Masjid Controversy: लोग यह मानने लगे हैं कि ऐसे मुद्दे उठाकर वे हिंदुओं के नेता बन सकते हैं.Mohan Bhagwat On Mandir Masjid Controversy:  मस्जिदों के सर्वेक्षण की कई मांगें हाल के दिनों में अदालतों तक पहुंच गई हैं.

Mohan Bhagwat On Mandir Masjid Controversy: मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से हो सकता है संघ परिवार के कुछ कट्टरपंथियों समेत साधु-संत नाराज हों. भागवत ने कुछ दिन पहले कहा था, ‘हर दिन एक नया मामला (विवाद) उठाया जा रहा है. इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता. मंदिरों का पता लगाने के लिए मस्जिदों के सर्वेक्षण की कई मांगें हाल के दिनों में अदालतों तक पहुंच गई हैं.’ भागवत ने आगे कहा कि कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि ऐसे मुद्दे उठाकर वे हिंदुओं के नेता बन सकते हैं.

   

हालांकि भागवत ने अपने व्याख्यान में किसी का नाम नहीं लिया. लेकिन इस पर देश भर में बवाल मच गया और कई राजनीतिक दलों और समूहों ने भागवत की आलोचना की. दिलचस्प बात यह है कि भागवत के बयान पर अभी तक पार्टी समेत किसी भी भाजपा नेता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. यहां तक कि 2017 में आरएसएस के कहने पर यूपी के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने भी चुप रहना ही बेहतर समझा.

यह जानना दिलचस्प होगा कि योगी को भाजपा हाईकमान की इच्छा के विरुद्ध मुख्यमंत्री बनाया गया था, जो मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उत्सुक था, जो वर्तमान में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल हैं. लेकिन राज्य में हर दूसरे दिन मंदिर-मस्जिद से जुड़ा कोई नया विवाद देखने को मिल रहा है.

आरएसएस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भागवत के बयान का उद्देश्य मंदिर मुद्दे के कारण राजनीतिक जमीन खोने की भाजपा की चिंताओं के मद्देनजर धार्मिक गुस्से को शांत करना था. आखिरकार, भाजपा आम चुनावों से कुछ महीने पहले राम मंदिर का उद्‌घाटन करने के बावजूद ‘400 पार’ के  बजाय केवल 240 लोकसभा सीटें ही जीत सकी. सबसे बुरी बात यह रही कि भाजपा और सहयोगी दल यूपी में 80 में से सिर्फ 36 सीटें ही जीत सके, जबकि शेष 43 सीटें इंडिया गठबंधन और एक आजाद समाज पार्टी के खाते में गईं.

इसलिए भागवत ने भाजपा को ‘सबका साथ सबका विकास’ पर ध्यान केंद्रित करने का एक रास्ता दे दिया, जिसने 2014 और 2019 में भाजपा को अप्रत्याशित लाभ दिलाया था. भागवत का बयान भाजपा के उन सहयोगियों को भी संदेश देगा जो इनमें से कुछ मुद्दों से असहज हैं. आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक पत्र ऑर्गनाइजर ने यह कहकर एक नया आयाम दिया कि भागवत ने अपने भाषण में भारत को विश्वगुरु बनाने का लक्ष्य सामने रखा था.

सहयोगियों की बात सुन रहे हैं मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के सहयोगियों को खुश रखने के लिए जाने जाते हैं और उन्हें कभी भी एनडीए में जूनियर पार्टनर होने का एहसास नहीं होने देते. वे सहयोगी दलों के साथ होने वाले रोजमर्रा के मुद्दों को नहीं संभालते और उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा के हवाले कर देते हैं. कई बार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी इन मुद्दों को संभालने के लिए लगाया जाता है.

हाल के दिनों में, वे कृषि और किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से लगातार मिल रहे हैं, हालांकि अभी तक कुछ भी खुलकर सामने नहीं आया है. खबरों की मानें तो मोदी एनडीए के ज्यादातर नेताओं से एक-एक करके व्यक्तिगत रूप से मिल रहे हैं और उनकी बातें सुन रहे हैं. हाल के दिनों में सरकार द्वारा की गई कुछ प्रमुख नियुक्तियों को कुछ सहयोगी दलों की सिफारिशों के आधार पर भी माना जा रहा है.

उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी रामसुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वे सबसे पहले 2006 में मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने और फिर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे. हालांकि इस पद के लिए भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का नाम चर्चा में था, लेकिन वी रामसुब्रमण्यम का नाम सामने आया.

कहा जाता है कि उनकी नियुक्ति में एनडीए के एक सहयोगी का भी हाथ था. मोदी आंध्र के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की भी बात सुन रहे हैं. हाल ही में उन्होंने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से बहुत गर्मजोशी से मुलाकात की. खबरों की मानें तो शिंदे और उनके बेटे तथा बहू के साथ यह मुलाकात करीब एक घंटे तक चली.

मोदी ने साफ कर दिया है कि वे चाहते हैं कि एनडीए का दायरा उन राज्यों में भी बढ़े, जहां भाजपा मजबूत नहीं है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु इकाई ने संदेश दिया है कि एआईएडीएमके और अन्य के साथ तालमेल की संभावना तलाशी जानी चाहिए. इसी प्रकार, पार्टी उन राज्यों में अपनी कमजोरियों को दूर करना चाहती है जहां वह मजबूत है और उसने भाजपा नेताओं से दृढ़तापूर्वक कहा है कि वे अपनी ताकत का प्रदर्शन न करें.

मित शाह पर बसपा का कटाक्ष क्यों?

यह वास्तव में चौंकाने वाली बात थी जब बहुजन समाज पार्टी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर शाब्दिक हमला किया और उसके कार्यकर्ता डॉ. भीमराव आंबेडकर पर उनके बयान के विरोध में सड़कों पर उतर आए. यह पहली बार था जब सरकार के सबसे शक्तिशाली मंत्री पर बसपा हमला करती दिखी.

बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद उसे छोड़ दिया और अकेले आगे बढ़ने का फैसला किया. लेकिन जून 2024 के लोकसभा चुनावों में इसका सफाया हो गया. बसपा को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की थी कि लोकसभा चुनावों में चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी की जीत हो जाएगी.

जनवरी 2013 में जब से ईडी मायावती के भाई आनंद कुमार के खिलाफ जांच कर रही है, तब से बसपा भाजपा के लिए सहायक की भूमिका निभा रही है. हालांकि यह मामला कांग्रेस के शासनकाल में दर्ज किया गया था, लेकिन भाजपा इसका फायदा उठा रही है.

लेकिन शाह पर हाल ही में हुए शाब्दिक हमले से यह स्पष्ट हो गया है कि बसपा अपने राजनीतिक अस्तित्व के दांव पर लगने के कारण सुधार के मूड में है. राज्यों में इसकी लोकप्रियता लगातार कम होती जा रही है. इसलिए आनंद कुमार के बेटे आकाश आनंद को बसपा को पुनर्जीवित करने की रणनीति बनाने की अनुमति दी गई है.

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