अवधेश कुमार का ब्लॉगः जम्मू-कश्मीर में सामान्य होते हालात
By अवधेश कुमार | Published: October 18, 2019 07:27 AM2019-10-18T07:27:57+5:302019-10-18T07:27:57+5:30
अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 3 दिन पहले 2 अगस्त को एक सिक्योरिटी एडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी. इस एडवाइजरी को वापस लेना जम्मू-कश्मीर के अतीत और वर्तमान को देखते हुए बहुत बड़ी घोषणा है.
जम्मू-कश्मीर में पोस्टपेड मोबाइल सेवाएं चालू हो चुकी हैं. यह कदम साबित करता है कि सरकार की दृष्टि में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने तथा राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति काफी सुधर गई है. पिछले 8 अक्तूबर को राज्यपाल ने घोषणा की कि 10 अक्तूबर से सैलानी प्रदेश में आ सकते हैं. राज्य प्रशासन ने सैलानियों के घाटी छोड़ने और वहां न जाने संबंधी एडवाइजरी को करीब दो महीने बाद वापस ले लिया.
अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 3 दिन पहले 2 अगस्त को एक सिक्योरिटी एडवाइजरी जारी कर अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की सलाह दी थी. इस एडवाइजरी को वापस लेना जम्मू-कश्मीर के अतीत और वर्तमान को देखते हुए बहुत बड़ी घोषणा है. इसका मतलब यह भी हुआ कि सुरक्षा समीक्षा में भी सकारात्मक संकेत मिले हैं. ऐसा नहीं होता तो राज्य प्रशासन सैलानियों को बुलाने का रास्ता प्रशस्त नहीं करता. इसी तरह सारे विद्यालय खोले जा चुके हैं. 24 अक्तूबर को बीडीसी चुनाव कराने का फैसला भी महत्वपूर्ण है. तो क्या यह मान लिया जाए कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हालात अब सामान्य होने के करीब हैं?
ऐसा मान लेना जल्दबाजी होगी. मोबाइल सेवाएं बहाल होते ही शोपियां से सेब लेकर राजस्थान जा रहे ट्रक पर हमला एवं चालक का मारा जाना तथा श्रीनगर में हथगोला फेंकना इसका प्रमाण है कि आतंकवादी अशांति फैलाने के पूरे प्रयास करेंगे.
लद्दाख में तो कोई समस्या नहीं है किंतु जम्मू-कश्मीर वर्षो से असामान्य राज्य रहा है और सीमा पार से आतंकवाद जारी रहने तथा अलगाववादियों को समर्थन देने तक उसका पूरी तरह सामान्य होना कठिन है. प्रशासन नेताओं को कह रहा है कि ब्लॉक विकास परिषद की चुनाव प्रक्रिया में किसी रूप में भाग लेने के इच्छुक लोग मुक्त हैं.
इसके तहत भी काफी लोग मुक्त हुए हैं. हां, रिहा होने वालों से यह वचन लिया जा रहा है कि वो कोई भी ऐसी गतिविधि न करें, जिससे हालात बिगड़ने की आशंका हो. बड़े नेता शर्त मानने को तैयार नहीं हैं, इसलिए उनको रिहा नहीं किया जाएगा. अभी तक जो राजनीतिक व्यक्ति नजरबंद हैं या दूसरे राज्यों की जेलों में कैद हैं, उनसे दो बार पूछा गया है कि वे मुख्यधारा में लौटना चाहें तो सरकार उनकी पूरी मदद करेगी.