जयंती विशेष: क्यों घर से दूर दफनाए गए थे मिर्जा गालिब ?
By विवेक शुक्ला | Published: December 27, 2022 10:13 AM2022-12-27T10:13:33+5:302022-12-27T10:16:07+5:30
कुछ जानकार बताते हैं कि गालिब साहब की हजरत निजामुद्दीन के प्रति आस्था थी, इसलिए परिवार वाले उन्हें दफनाने के लिए बस्ती निजामुद्दीन ले गए होंगे. कई लोग एक दूसरी वजह भी बताते हैं.
‘हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यूं न गर्क़-ए-दरिया/ न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता.’
मिर्जा असदुल्लाह खां गालिब ने इस बेहतरीन शेर को लिखते हुए सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें प्राण त्यागने के बाद अपने पुरानी दिल्ली के बल्लीमारां वाले घर के आसपास स्थित किसी कब्रिस्तान में जगह नहीं मिलेगी. वे तो यहां की गलियों की ही खाक छानते थे. उनकी इधर ही दोस्तों-यारों के बीच महफिलें सजतीं. वे कभी-कभार ही इन गलियों से बाहर निकलते. फिर ये बात भी है कि उनके दौर में दिल्ली कमोबेश उधर ही बसी थी, जिसे हम अब दिल्ली-6 कहते हैं.
हां, महरौली, निजामुद्दीन औलिया और गांवों में आबादी की बसावट थी. पर सवाल ये है कि सदियों में पैदा होने वाले गालिब साहब को 15 फरवरी, 1869 को मृत्यु के बाद उनके अपने घर से इतनी दूर बस्ती निजामुद्दीन में क्यों दफनाया गया? गालिब को दफनाने के लिए लेकर जाया गया उनके बल्लीमारां स्थित घर से करीब आठ-नौ मील दूर बस्ती निजामुद्दीन में. उनके घर के करीब तीन कब्रिस्तान थे. वे इन तीनों में से किसी में भी दफन हो सकते थे.
कुछ जानकार दावा करते हैं कि चूंकि गालिब साहब की हजरत निजामुद्दीन के प्रति आस्था थी, इसलिए उनके परिवार वाले उन्हें दफनाने के लिए बस्ती निजामुद्दीन ले गए होंगे. एक राय ये भी है कि उस दौर में नामवर- असरदार लोगों के अपने निजी कब्रिस्तान होते थे.
चूंकि गालिब साहब तो मूल रूप से आगरा से थे, इसलिए उनके परिवार का यहां पर कोई कब्रिस्तान होने का सवाल ही नहीं था. वे तो किराए के घर में रहते थे. पर बस्ती निजामुद्दीन में उनके ससुराल वालों का कब्रिस्तान था.
गालिब साहब की आरजू थी कि उसी में उन्हें दफन कर दिया जाए. दरअसल उन्हें निजामुद्दीन में दफनाने की यही वजह थी.