अवधेश कुमार का ब्लॉग: विकास दर लुढ़कने के मायने
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 3, 2019 12:43 PM2019-12-03T12:43:06+5:302019-12-03T12:43:06+5:30
इसके बाद कोई नहीं मानेगा कि अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. यह समय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौतियों का है. अर्थव्यवस्था को गति देने का एक नुस्खा ब्याज दर में कटौती है
वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण आश्वस्त कर रही हैं कि विकास दर में गिरावट अवश्य है लेकिन मंदी की न स्थिति है न हो सकती है. यह बात सही है कि हम अभी तक नकारात्मक विकास दर की अवस्था में नहीं पहुंचे हैं. लेकिन राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही का आंकड़ा निस्संदेह, अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर पहले से व्याप्त चिंता को और बढ़ाने वाला है. जुलाई से सितंबर 2019 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रह गई है
. पिछली 26 तिमाहियों यानी साढ़े 6 साल में यह अर्थव्यवस्था की सबसे धीमी विकास दर है. इससे पहले जनवरी-मार्च 2012-13 की तिमाही में 4.3 प्रतिशत विकास दर दर्ज की गई थी. अगर छमाही आधार पर देखें तो अप्रैल से सितंबर की अवधि में विकास दर 4.8 प्रतिशत रही है. यह पिछले वर्ष 7.5 प्रतिशत थी. लगातार सात तिमाही से विकास दर में गिरावट है. पहली तिमाही में 5 प्रतिशत विकास दर आते ही भारत से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा छिना था.
अगर बुनियादी क्षेत्न, जिन्हें कोर सेक्टर कहा जाता है, को देखें तो उसमें भी बड़ी गिरावट है. मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता राजकोषीय घाटे को नियंत्नण में रखना था. 7 महीनों यानी अप्रैल से अक्तूबर के बीच ही राजकोषीय घाटा 7.2 ट्रिलियन रुपए (100.32 अरब डॉलर) रहा जो बजट लक्ष्य का 102.4 प्रतिशत है. अप्रैल से अक्तूबर की अवधि में सरकार को 6.83 खरब रु पए का राजस्व प्राप्त हुआ जबकि खर्च 16.55 खरब रु पए रहा.
इसके बाद कोई नहीं मानेगा कि अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. यह समय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौतियों का है. अर्थव्यवस्था को गति देने का एक नुस्खा ब्याज दर में कटौती है. रिजर्व बैंक लगातार पांच बार रेपो दर में कटौती कर चुका है. इसका असर अभी तक नहीं हुआ है.
कृषि का योगदान भले विकास दर में कम है लेकिन 57 प्रतिशत लोगों का जीवनयापन इसी या इससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर है. इस दिशा में केंद्र सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं राज्य ही उनको लागू कर सकते हैं. केंद्र सरकार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं कृषि मंत्रियों का सम्मेलन कृषि विकास को लेकर बुलाया जाना उचित होगा. यह बहुत बड़ा संकट है जो अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है. भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई के कारण छोटे-बड़े कारोबारियों में लंबे समय से यह भय बैठा हुआ है कि पता नहीं अपने कारोबार में पूंजी लगाने के बाद कौन विभाग धमक जाएगा. इस डर को कैसे दूर किया जाए यह महत्वपूर्ण प्रश्न है