Manmohan Singh death: खुद कम बोलते थे परंतु डॉ. मनमोहन सिंह का काम बोलता था

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 28, 2024 05:23 IST2024-12-28T05:23:47+5:302024-12-28T05:23:47+5:30

Manmohan Singh death: देश में एक अरब डॉलर से भी कम का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिससे मात्र तीन हफ्तों के आयात बिल का भुगतान ही किया जा सकता था. ऐसे संकट के बीच मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति का ऐलान किया.

Manmohan Singh death live economy boom congress He himself spoke less but work of Dr Manmohan Singh spoke volumes | Manmohan Singh death: खुद कम बोलते थे परंतु डॉ. मनमोहन सिंह का काम बोलता था

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Highlights24 जुलाई 1991 को अपना पहला बजट पेश किया था.लाइसेंस व परमिट गुजरे जमाने की चीज हो गई थीं.दो वर्ष के भीतर ही आलोचकों के मुंह बंद हो गए थे.

Manmohan Singh death: विनम्र स्वभाव के धनी पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जितने अच्छे इंसान थे, उतने ही अच्छे राजनेता भी थे. यह सच है कि वे ज्यादा बोलते नहीं थे, लेकिन दशकों पहले किए गए उनके कामों की गूंज आज भी सुनाई देती है. 1990 के दशक में भारत जिस तरह से आर्थिक संकट में घिर चुका था, उससे मनमोहन सिंह ने ही देश को पूरी सूझबूझ के साथ बाहर निकाला था. हालांकि यह काम आसान नहीं था. वर्ष 1991 में नरसिंहाराव सरकार में जब वे वित्त मंत्री बने, तब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था. एक समय तो ऐसा आया कि देश में एक अरब डॉलर से भी कम का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिससे मात्र तीन हफ्तों के आयात बिल का भुगतान ही किया जा सकता था. ऐसे संकट के बीच मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति का ऐलान किया.

उन्होंने 24 जुलाई 1991 को अपना पहला बजट पेश किया था और नई आर्थिक रणनीति अपनाए जाने के बाद अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आया था. डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार के साथ जोड़ते हुए आयात और निर्यात को सरल बनाया एवं लाइसेंस व परमिट गुजरे जमाने की चीज हो गई थीं.

नई अर्थव्यवस्था के शैशव काल में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव को कटु आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा था, विपक्ष उन्हें आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था, लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा विश्वास रखा और मात्र दो वर्ष के भीतर ही आलोचकों के मुंह बंद हो गए थे. उदारीकरण के बेहतर परिणामों की बदौलत देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सका था.

इसके बाद जब 72 वर्ष की उम्र में मनमोहन सिंह ने वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल आरम्भ किया तो कई लोगों को लगता था कि गठबंधन सरकार कुछ ही दिनों या महीनों की मेहमान है. लेकिन अपने सौम्य स्वभाव के बल पर उन्होंने पूरे दस वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली.

2009की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला था लेकिन भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मजबूत होने के कारण उसे उतना नुकसान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा था. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में आरटीआई, मनरेगा, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और अन्य कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम हुए थे.

डॉ. सिंह मितभाषी जरूर थे लेकिन जो बोलते थे, उसके महत्व को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के इन शब्दों से समझा जा सकता है कि ‘जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है.’ निश्चित रूप से एक अच्छे मनुष्य के रूप में, एक अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को देश हमेशा याद रखेगा. 

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