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Manipur Violence: मणिपुर में बिहार के लोगों की हत्या से उठती चिंताएं?, डेढ़ साल से जातीय संघर्ष, 250 से ज्यादा लोग की मौत...

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 16, 2024 05:29 IST

Manipur Violence: इंफाल घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और आस-पास की पहाड़ियों में रहने वाले कुकी समुदाय के समूहों के बीच है.

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ठळक मुद्दे‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला, जिसके बाद जगह-जगह हिंसा भड़कने लगी. कुल मिलाकर देखा जाए तो यह मामला पूरी तौर से राज्य का अंदरूनी विषय है. समाधान वहां की सरकार और लोगों के मिल-बैठकर सहमति से हल ढूंढ़ना है.

Manipur Violence: जम्मू-कश्मीर के बाद अब मणिपुर में भी बिहार के लोगों के साथ हिंसा की खबरें आई हैं. जातीय हिंसा प्रभावित राज्य के काकचिंग जिले में शनिवार को दो अलग-अलग घटनाओं में बिहार के दो किशोरों सहित तीन की मौत हो गई. राज्य में पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से जातीय संघर्ष जारी है. जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं. दरअसल मणिपुर में लंबे समय से बहुसंख्यक मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा था. जिसके बाद 14 अप्रैल, 2023 को उच्च न्यायालय ने राज्य की एन बीरेन सिंह सरकार से मांग पर कार्रवाई करने को कहा और फिर अदालत के आदेश के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला, जिसके बाद जगह-जगह हिंसा भड़कने लगी. राज्य में तनाव मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय और आस-पास की पहाड़ियों में रहने वाले कुकी समुदाय के समूहों के बीच है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो यह मामला पूरी तौर से राज्य का अंदरूनी विषय है. जिसका समाधान वहां की सरकार और लोगों के मिल-बैठकर सहमति से हल ढूंढ़ना है. दुर्भाग्य से पहले हिंसा और अब बाहरी राज्य के लोगों पर हमले अनेक चिंताओं को जन्म देते हैं. यह सभी जानते हैं कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के लोग काम के सिलसिले में अनेक राज्यों में जाते हैं.

इनमें से उत्तर-पूर्व के राज्यों में उनकी संख्या काफी और पुरानी भी है. मगर वे कभी वहां की क्षेत्रीय राजनीति अथवा संघर्ष के शिकार नहीं हुए. जम्मू-कश्मीर की तरह उन्हें बार-बार आतंकवादियों ने निशाना नहीं बनाया. किंतु हाल की घटना चौंकाने वाली है. दो लोगों को मौत के घाट उतार देने के कारण भले ही सामने नहीं आए हों, लेकिन जिस तरह से वहां बिहारी लोग बसे हुए हैं.

यह परिदृश्य उनके लिए गंभीर चिंता खड़ी करता है. इसके साथ ही लंबे समय से वहां रहने के बाद हिंसा की ज्वाला उठना राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए चिंता का विषय तो है साथ ही आस-पास के राज्यों में भी रहने वालों के लिए चिंताजनक स्थिति है. बार-बार राज्य की हिंसक घटनाओं को जातीय संघर्ष अथवा क्षेत्रीय विवाद के रूप में देख कर उन्हें एक सीमा में ही मानना अब भूल साबित हो रही है.

राज्य सरकार को चाहिए कि वह आदिवासियों के मामलों को विस्तार देने वाली ताकतों को रोके. राज्य में विकास, क्षेत्रीय तथा निजी  आवश्यकताओं के अनुसार लोगों का आना-जाना स्वाभाविक स्थिति है. यदि उसे सामाजिक वैमनस्य में परिवर्तित किया जाएगा तो सभी समाज के समक्ष समस्याएं आ सकती हैं.

इस स्थिति पर केंद्र और राज्य सरकारों को गंभीर रूप से ध्यान देने की जरूरत है. इसमें देरी के परिणाम अच्छे नहीं हो सकते हैं. मणिपुर में प्रवासी मजदूरों के नाम पर हिंसा को अलग हवा मिल सकती है. यह आग सीमावर्ती राज्यों में भी संघर्ष को हवा दे सकती है, जो पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अच्छा नहीं होगा.

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