ब्लॉग: नए संसद भवन के साथ इतिहास का निर्माण
By अवधेश कुमार | Published: May 26, 2023 03:17 PM2023-05-26T15:17:35+5:302023-05-26T15:22:55+5:30
नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विपक्ष लगातार केंद्र सरकार का विरोद कर रही है लेकिन नए संसद भवन के साथ इतिहास का भी निर्माण हो रहा है।

फाइल फोटो
नया संसद भवन उद्घाटन के लिए तैयार है। कोई भवन तात्कालिक स्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए निर्मित होता है। बदलती परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन की गुंजाइश एक सीमा तक ही रहती है।
पिछले तीन दशकों के अंदर सरकार व सरकार के बाहर सांसदों एवं वहां कार्यरत कर्मियों को पता है कि संसद भवन में अब वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए बहुत ज्यादा परिवर्तन की गुंजाइश नहीं रह गई है।
अंग्रेजों ने संसद भवन से लेकर उसके आसपास के इलाकों को, जिसे सेंट्रल विस्टा कहा जाता है, अपने अनुसार विकसित किया था। उनमें पिछले 75 वर्षों में परिवर्तन किए गए लेकिन ये सभी लंबे समय की दृष्टि से न थे न हो सकते हैं।
यह आवश्यक हो गया था कि कोई सरकार साहस कर भविष्य की चुनौतियों और आवश्यकताओं का आकलन करते हुए पूरे क्षेत्र का पुनर्निर्माण करे। यूपीए सरकार में भी इस पर चर्चा हुई तथा संसद भवन सहित कुछ निर्माण पर सहमति भी बनी।
यह पूरे देश के लिए आत्मसंतोष का विषय होना चाहिए कि हम इस स्थिति में हैं कि विश्व के श्रेष्ठ संसद भवन का निर्माण करा सकते हैं और उसके अनुरूप आसपास के सरकारी भवनों और स्थलों को भी उत्कृष्ट ढांचे में नए सिरे से खड़ा कर सकते हैं।
आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सहमत हों या असहमत हों, लेकिन इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि एक विजन के तहत उन्होंने समस्त परिवर्तन किए हैं। 1967 से इंडिया गेट के पास मूर्ति की खाली जगह पर सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति लगी।
जॉर्ज पंचम की मूर्ति हटाने के बाद किसी को शायद आज तक समझ नहीं आया कि वहां किसकी मूर्ति लगानी चाहिए। यह भी प्रश्न है कि 1947 के बाद 20 वर्षों तक वहां जॉर्ज पंचम की मूर्ति क्यों थी? उसके साथ वहां युद्ध स्मारक बनाया गया।
इंडिया गेट तक का राजपथ कर्तव्य पथ बना. तो इन सबके पीछे निश्चित रूप से देश के संदर्भ में यह सोच है कि इन स्थानों से क्या संदेश जाए और लोगों के अंदर कैसी मानसिकता पैदा हो। नये संसद भवन के साथ स्वतंत्र भारत में इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा गया है।