तृणमूल कांग्रेस की फायरब्रांड लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा को अपना ट्वीट पोस्ट करने के सात घंटे के भीतर उसे हटाने के लिए मजबूर किया गया. इसने अटकलों को जन्म दिया है कि ममता बनर्जी मोदी सरकार के साथ दो-दो हाथ करने के मूड में नहीं हैं.
टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने केवल भाजपा के मंत्रियों को बोलने की अनुमति दी, जबकि विपक्षी सदस्यों को अपनी बात कहने की अनुमति नहीं दी गई. ‘लोकतंत्र पर हमला हो रहा है और अध्यक्ष सामने से नेतृत्व कर रहे हैं. मैं इस ट्वीट के लिए जेल जाने को तैयार हूं.’ लेकिन जोरदार शब्दों वाला ट्वीट सात घंटे बाद गायब हो गया.
पता चला है कि ममता बनर्जी ने उन्हें इसे हटाने का निर्देश दिया था. दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी संसद में विपक्ष की संयुक्त बैठकों से भी दूर रहती है, जिससे भाजपा के साथ मौन सहमति के सिद्धांतों को बल मिलता है.
रहस्यमय घटनाओं का गवाह बना मार्च
मार्च का महीना ऐसे रहस्यों से भरा हुआ है जैसा पहले कभी नहीं देखा गया. चौबीसों घंटे निगरानी के बावजूद पंजाब के 30 वर्षीय स्वयंभू उपदेशक अमृतपाल सिंह के फरार होने से सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां तथा पंजाब सरकार सकते में है. रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), इंटेलिजेंस ब्यूरो और अन्य एजेंसियों द्वारा अमृतपाल सिंह के जॉर्जिया (यूएसए) में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और कनाडा, ब्रिटेन व अन्य जगहों पर सिख फॉर जस्टिस व अन्य खालिस्तान समर्थकों के साथ घनिष्ठ संबंधों के बारे में सतर्क किए जाने के बाद से मोदी सरकार और आप की अगुवाई वाली पंजाब सरकार मिलकर काम कर रही हैं.
दोनों सरकारों ने बैसाखी से पहले किसी भी समय ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह पर कड़ी कार्रवाई करने का फैसला किया, क्योंकि उसने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को खुले तौर पर यह कहते हुए धमकी दी थी कि उनका हश्र दिवंगत इंदिरा गांधी जैसा होगा. फिर भी उसने 2023 में गुप्त रूप से पलायन करके सभी को एक झटका दिया, जैसा कि बाबा रामदेव ने 2013 में किया था. बाबा रामदेव ने भी साड़ी पहनकर सैकड़ों गुप्तचरों को चकमा दिया था.
हालांकि, यह अभी भी एक रहस्य है कि अमृतपाल सिंह शक्तिशाली एजेंसियों और पंजाब पुलिस बल के 80,000 जवानों की नजरों के सामने से कैसे गायब हो गया. यह स्पष्ट है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 50 आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किए जाने के बावजूद अलगाववादी तत्वों को ताकत मिली है और वे पंजाब में एक बार फिर से खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं. सितंबर 2022 में सिंह के भारत आने के बाद से सीमा पार से ड्रोन घुसपैठ में तेजी आई और राज्य में ड्रग्स और हथियारों से संबंधित गतिविधियां तेजी सेबढ़ी हैं.
अमृतपाल सिंह की आनंदपुर खालसा फौज (एकेएफ) हथियार जमा कर रही है और स्वर्गीय भिंडरांवाले की भावना को पुनर्जीवित कर रही है व उसका उद्देश्य स्वर्ण मंदिर पर नियंत्रण करना है. उसके अनुयायियों ने पंजाब, दिल्ली और अन्य जगहों पर कई गुरुद्वारों पर कब्जा कर लिया है और उसके लापता होने से पता चलता है कि वह राज्य और केंद्र की पूरी मशीनरी से एक कदम आगे है.
एक विचार यह भी है कि अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है और एजेंसियां अपनी रणनीति के तहत इसे पूरी तरह से गुप्त रख रही हैं. दूसरी बात यह कि अमृतपाल सिंह अचानक से कैसे उभर आया, यह भी एक रहस्य है.
रहस्यमय महाठग
गुजरात के डॉ. किरण जे. पटेल, प्रधानमंत्री कार्यालय में कथित अतिरिक्त निदेशक (रणनीति और अभियान) का रहस्य जैसे-जैसे खुल रहा है, चौंकाने वाले विवरण सामने आ रहे हैं. उसे न केवल जम्मू-कश्मीर में जेड-प्लस सुरक्षा कवर प्रदान किया गया और पांच सितारा होटलों के आतिथ्य का उसने लाभ उठाया, बल्कि महीनों तक उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों तक पहुंच भी मिली.
रहस्यमय महाठग को 3 मार्च को गिरफ्तार किए जाने के बाद पीएमओ और जम्मू-कश्मीर प्रशासन इतना चौंक गया था कि इसका खुलासा एक पखवाड़े बाद किया गया. लेकिन उसने सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की खामियों को उजागर किया है.
पता चला है कि एक आईएएस अधिकारी ने उसे जम्मू-कश्मीर में एक पीएमओ अधिकारी के रूप में पेश किया और गुजरात के 5-6 शीर्ष अधिकारियों के एक समूह ने उसे केंद्र शासित प्रदेश में कुछ भूमि अनुबंधों का काम सौंपा था. किरण पटेल ने 27 अक्टूबर को पहली बार जम्मू-कश्मीर का दौरा किया और लगभग छह महीने तक काम किया. यह अभी भी चकित करने वाला है कि पीएमओ के एक अधिकारी को बिना किसी सत्यापन के जेड प्लस सुरक्षा कवर और फाइव स्टार होटल की सुविधा कैसे दी जा सकती है.
यह स्पष्ट है कि उक्त महाठग बिजनेस और ब्यूरोक्रेसी में कुछ निहित स्वार्थों का प्रतिनिधित्व कर रहा था और आने वाले दिनों में कड़ी कार्रवाई देखी जा सकती है.
मनीष सिसोदिया बनेंगे सरकारी गवाह?
आप के पूर्व मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी सहयोगी मनीष सिसोदिया पर ‘शराब-कांड’ में सरकारी गवाह बनने के लिए भारी दबाव होने की खबर है. जबसे सिसोदिया को सीबीआई ने 26 फरवरी को और बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया, तब से उन्हें अदालतों से कोई राहत नहीं मिली है. चूंकि वह मंत्रियों के समूह (जीओएम) के एक प्रमुख सदस्य थे, जिसने नई शराब नीति को मंजूरी दी थी, इसलिए एजेंसियों ने उन्हें प्रलोभन दिया.
पता चला है कि नई शराब नीति का ड्राफ्ट नोट केजरीवाल ने सिसोदिया को दिया था. यह नोट केजरीवाल के एक अन्य प्रमुख सहयोगी द्वारा तैयार किया गया था जो सलाखों के पीछे हैं. सिसोदिया से कहा जा रहा है कि अगर वह केस में केजरीवाल का नाम लेंगे तो उन्हें सरकारी गवाह बना दिया जाएगा.
यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है कि नई नीति के परिणामस्वरूप दिल्ली सरकार को भारी नुकसान हुआ और अंतत: उसे रद्द करना पड़ा. चूंकि केजरीवाल या सिसोदिया के परिसरों से कोई नगदी बरामद नहीं हुई है इसलिए एजेंसियों को आरोपियों के खिलाफ मजबूत मामला तैयार करने में मुश्किल हो रही है.