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ब्लॉग: सरकार बदलते ही महाराष्ट्र में जांच एजेंसियों की घट रही सक्रियता? बंगाल में तृणमूल-भाजपा के बीच पिघल रही बर्फ!

By हरीश गुप्ता | Updated: December 1, 2022 10:08 IST

महाराष्ट्र में हाल के दिनों में नजर आया है कि अचानक केंद्र सरकार से जुड़ी जांच एजेंसियों की सक्रियता कम हो गई है. कुछ कार्रवाई जरूर हो रही है लेकिन अतिसक्रियता नहीं दिख रही है. दूसरी ओर पश्चिम बंगाल से भी दिलचस्प बातें सामने आ रही हैं.

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महाराष्ट्र में अचानक केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों ने पॉज का बटन दबा दिया है. शायद, राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद एजेंसियां शांत हैं. प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो राज्य में उतने सक्रिय नहीं हैं जितने कुछ महीने पहले थे. हालांकि इन एजेंसियों द्वारा कुछ नेताओं को तलब किया जा सकता है, लेकिन कोई कठोर कार्रवाई या अतिसक्रियता नहीं दिखेगी. 

यहां तक कि आयकर की जांच शाखा भी अन्य राज्यों में सक्रिय है, लेकिन महाराष्ट्र में नहीं. ऐसा कहा जाता है कि भाजपा नेतृत्व इंतजार करना चाहता है क्योंकि राजनीतिक मंथन चल रहा है और पर्दे के पीछे काफी उथल-पुथल है. इसलिए शिवसेना (ठाकरे), राकांपा और कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ मामलों में तेजी लाने की कोई जरूरत नहीं है. 

भाजपा को लगता है कि प्रतिद्वंद्वियों को और दबाव में लाकर कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी मुंबई नगर निगम चुनावों का सामना करने के लिए बहुत आश्वस्त नहीं है और हिमाचल व गुजरात चुनावों के नतीजों तक इंतजार करेगी. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि हिंदुत्व की ताकतों को मजबूत करने के व्यापक हित में शिंदे और ठाकरे गुटों को हाथ मिलाने के लिए राजी किया जाना चाहिए. 

वीर सावरकर पर राहुल गांधी की टिप्पणी ऐसे समय में एक आत्मघात के अलावा और कुछ नहीं थी जब विपक्षी दल 2024 में भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की योजना बना रहे थे. लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने एमवीए गठबंधन को टूट के कगार पर ला दिया. अगर इस मुद्दे पर राहुल गांधी ने कोई और टिप्पणी की तो काम तमाम हो जाएगा. दूसरे, राकांपा के कई नेताओं को लगता है कि नवंबर 2019 में भाजपा के साथ हाथ नहीं मिलाना शरद पवार की ‘हिमालयी भूल’ थी. 

शायद, पवार 2024 में विपक्षी दलों का नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा पाल रहे हैं. जानकारों का मानना है कि यदि हिमाचल और गुजरात में भाजपा की सत्ता में वापसी होती है और आप एक नई ताकत के रूप में उभरती है तो महाराष्ट्र में कांग्रेस में उथल-पुथल हो सकती है. इसलिए निगरानी करने वाली जांच एजेंसियां महाराष्ट्र छोड़कर अन्य राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, तेलंगाना, दिल्ली आदि पर ध्यान दे रही हैं. हैरानी कीबात यह है कि झारखंड और पंजाब में भी शांति देखी जा रही है.

ममता-मोदी का सौहार्द्र

तीन नवंबर को इस कॉलम में मैंने लिखा था कि ‘ममता राहत की सांस ले रही हैं’. शिक्षक भर्ती घोटाले में 50 करोड़ रुपए की नगद वसूली में केंद्रीय एजेंसियों ने उनका नाम नहीं लिया. कुछ हफ्तों के भीतर, पश्चिम बंगाल में मोदी सरकार द्वारा एक नया राज्यपाल नियुक्त किया गया, जो शांत हैं. 

नियुक्ति के कुछ दिनों के भीतर, ममता बनर्जी ने घोषणा की कि वे पांच दिसंबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी. जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, ममता बनर्जी ने अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी और भाजपा के विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को चाय पर आमंत्रित किया और कुछ ही समय में बर्फ पिघल गई. 

अगर ममता भाजपा नेतृत्व के प्रति अनुकूल हो रही हैं, तो भगवा पार्टी को भी यह एहसास हो गया है कि लंबे समय तक कड़वाहट से कोई राजनीतिक उद्देश्य पूरा नहीं होगा. शायद, मोदी संसद में कुछ महत्वपूर्ण कानून पारित करने में ममता का सहयोग चाहते हैं क्योंकि टीएमसी तीसरा सबसे बड़ा समूह है.

सीबीआई के जायसवाल को मिलेगा सेवा विस्तार?

यह कोई रहस्य नहीं है कि सीबीआई अपनी शक्तियों के साथ खिलवाड़ नहीं कर रही है जैसा कि पहले हुआ करता था. सीबीआई के वर्तमान निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल, महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी, एक अलग ही मिजाज के हैं. वे नियमों का पालन करते हैं और उन्हें सख्त माना जाता है. 

चूंकि उन्हें मई 2021 में प्रधानमंत्री, सीजेआई और लोकसभा में कांग्रेस के नेता से बने एक पैनल द्वारा इस पद के लिए चुना गया था इसलिए सरकार को भी कुछ हिचकिचाहट है. सरकार ईडी के निदेशक संजय मिश्रा के साथ बेहद सहज है और उन्हें एक के बाद एक एक्सटेंशन देकर लगभग पांच साल का रिकॉर्ड कार्यकाल दिया है. लेकिन जायसवाल के अधीन सीबीआई का रिकॉर्ड भी कम नहीं है. 

चूंकि जायसवाल का कार्यकाल मई 2023 में समाप्त होगा इसलिए ऐसी खबरें हैं कि सरकार चुनावी साल में किसी नए व्यक्ति को लाने के बजाय उन्हें सेवा विस्तार देने पर विचार कर सकती है. सरकार ईडी और सीबीआई निदेशकों के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने के लिए कानून में पहले ही संशोधन कर चुकी है. लोकसभा चुनाव 2024 की शुरुआत में होंगे.

कांग्रेस और आप उम्मीदवारों की सौदेबाजी!

ऐसे में जबकि कांग्रेस और आप एक-दूसरे पर भाजपा के साथ ‘मौन सहमति’ रखने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं गुजरात से ऐसी खबरें आ रही हैं कि चुनिंदा निर्वाचन क्षेत्रों में अलग-अलग उम्मीदवार सौदेबाजी करने की कोशिश कर रहे हैं. आप ने महसूस किया है कि शहरी क्षेत्रों, सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों और आदिवासी इलाकों में उसका जनाधार है. 

ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कांग्रेस का पारंपरिक आधार है, वहां आप की बहुत अधिक उपस्थिति नहीं है. इसलिए आप के कुछ उम्मीदवार कांग्रेस की मदद के लिए ग्रामीण इलाकों में मिलकर काम कर रहे हैं. इसी तरह कुछ शहरी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी आप के अनुकूल हैं. भाजपा अब भी उन दर्जन भर सीटों को लेकर चिंतित है, जहां उसके बागियों ने झुकने से इनकार कर दिया है.

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