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Maharashtra Government Cabinet Expansion: अब नागपुर की तो सबको सुननी ही पड़ेगी?

By Amitabh Shrivastava | Updated: December 21, 2024 05:14 IST

Maharashtra Grand Alliance Government Cabinet Expansion: भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) नीत सरकार अपनी विचारधारा से पीछे नहीं हटेगी और उसका मार्गदर्शक भी वही होगा, जिसने चुनाव में उसकी सहायता की है.

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ठळक मुद्देमुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना महज एक संयोग नहीं, बल्कि एक संगठित प्रयास माना जा सकता है.सत्ता पक्ष में बैठे दलों के लिए भी भीतरी जवाबदेही भरी चेतावनी की तरह है. अमित शाह चुनाव के पहले राज्य में स्वतंत्र रूप से अपनी पार्टी की सरकार बनाने की घोषणा कर चुके हैं.

Maharashtra Grand Alliance Government Cabinet Expansion: पहले महाराष्ट्र की महागठबंधन सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार समारोह और उसके बाद विधानमंडल के शीतकालीन सत्र, फिर धीरे-धीरे सभी सत्ताधारियों की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय की दौड़ ने राज्य की राजनीति में अनेक बातें साफ कर दी हैं. अब विपक्ष के दल संघ के नाम पर चाहे जितने सवाल उठा लें, लेकिन भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) नीत सरकार अपनी विचारधारा से पीछे नहीं हटेगी और उसका मार्गदर्शक भी वही होगा, जिसने चुनाव में उसकी सहायता की है.

तभी संघ के सौ साल पूरे होने के अवसर पर एक स्वयंसेवक का तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना महज एक संयोग नहीं, बल्कि एक संगठित प्रयास माना जा सकता है. जिसके पीछे परिश्रम और रणनीति दोनों ही हैं. यद्यपि विपक्ष की भाषा में ‘राक्षसी बहुमत’ जहां महाविकास आघाड़ी के लिए चुनौती है, वहीं सत्ता पक्ष में बैठे दलों के लिए भी भीतरी जवाबदेही भरी चेतावनी की तरह है.

वह भी उस परिदृश्य में जब भाजपा के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह चुनाव के पहले राज्य में स्वतंत्र रूप से अपनी पार्टी की सरकार बनाने की घोषणा कर चुके हैं. एक नए घटनाक्रम में विधानमंडल के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान गुरुवार को राज्य के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नागपुर के रेशिमबाग स्थित संघ मुख्यालय पहुंचे.

उनके साथ विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोर्‌हे, मंत्री संजय राठौड़, संजय शिरसाट, दादा भुसे, गुलाबराव पाटील, उदय सामंत जैसे अनेक शिवसेना और दूसरे दलों से भाजपा में आए नेता भी थे. सभी का एक साथ वहां पहुंचना किसी आश्चर्य से कम नहीं समझा जा रहा था, लेकिन वहां पहुंचे उपमुख्यमंत्री शिंदे ने स्वयं को संघ की शाखा से तैयार हुआ बताया.

इसी प्रकार सभापति गोर्‌हे ने खुद का वहां पहुंचना मातृभूमि में जाने की तरह बताया. इसी प्रकार के विचार अनेक नेताओं ने व्यक्त किए. इस दौरे में चौंकाने वाली बात शिवसेना नेताओं का दूसरे उपमुख्यमंत्री अजित पवार के संघ मुख्यालय आने के संकेत देना रहा. भाजपा की नेता और पूर्व में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(राकांपा) की सदस्य चित्रा वाघ ने भी पवार का वहां जाना गलत ही नहीं, बल्कि चुनाव जीतने में संघ का श्रेय मानने की बात कही. ये बातें साफ करती हैं कि महागठबंधन केवल राजनीतिक तालमेल ही नहीं, वह विचारधारा में भी एक समान होकर आगे बढ़ेगा.

यह स्थिति लोकसभा चुनाव की पराजय के बाद नई दिशा की ओर संकेत होगी. इसे गंभीरता के साथ लेने के अतिरिक्त आवश्यकता से जोड़कर भी देखा जाएगा. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जो शिवसेना महाविकास आघाड़ी में संघ की आलोचना करने पर उतर आई थी, उसी से टूटे विधायक अब रेशिमबाग को अपनी मातृभूमि बताने से चूक नहीं रहे हैं.

वर्तमान स्थिति में यह भी सिद्ध हो चला है कि लोकसभा चुनाव में अति आत्मविश्वास के चलते 45 सीटें जीतने का लक्ष्य तो रखा ही, महागठबंधन में आरएसएस की जरूरत को भी नजरअंदाज किया गया. हालांकि उस समय महागठबंधन में विद्रोह के बाद बने दलों में एक नया जोश था. मगर वह टूट-फूट के नाम पर बनाई गई सहानुभूति की चाल के आगे मात खा गया.

वह भी इस तरह हुआ कि पराजय के मुहाने तक पहुंचने पर भी खतरे का अनुमान नहीं लग पाया. इसके बाद महाविकास आघाड़ी के बढ़े लक्ष्य ने चिंता की लकीरें मोटी कीं. यहीं संघ की महत्वपूर्ण भूमिका को समझा गया. इसीलिए चुनाव से पहले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस संघ मुख्यालय गए.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव के प्रचार के एक भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे को संघ की बैठक में सहमति मिली और यहां तक कि सबसे पहले उन्हें ही महाराष्ट्र में बुलाकर चुनाव प्रचार में उतारा गया. फिर उत्तर प्रदेश के नारे से प्रचार को धार दी गई. हालांकि उस समय यह आशंका भी व्यक्त की गई कि मतों का अत्यधिक ध्रुवीकरण नुकसान का कारण भी बन सकता है.

इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नारे को थोड़ा नरम बनाने की कोशिश की गई. मगर जो चुनाव की दिशा थी, वह मिल चुकी थी. उसके पीछे की रणनीति के रचनाकार स्पष्ट समझ में आ रहे थे. चरण-दर-चरण उनके प्रयास भी नजर आ रहे थे. यही कारण था कि जब चुनाव परिणाम सामने आए तो महागठबंधन के सहयोगियों को भी अपने अनुमान से अधिक सफलता मिलती दिखी.

विपक्ष की तो जमीन ही खिसक गई. उधर, नतीजों की घोषणा के तुरंत बाद तत्कालीन उपमुख्यमंत्री फडणवीस संघ मुख्यालय पहुंचे. वह मुलाकात भले ही कुछ मिनटों की रही हो, लेकिन कान मंत्र तो मिला ही. साथ ही साथी दलों को उनकी अप्रत्याशित सफलता के पीछे छिपा हाथ भी दिखाई दिया. अब चुनाव की सफलता और सरकार के गठन के बाद भविष्य की रणनीति पर विचार होना स्वाभाविक है.

जिस प्रकार विपक्ष संविधान, वीर सावरकर, धर्मनिरपेक्षता के मुद्दों को तेजी से उछालकर अपना आधार दोबारा मजबूत बनाने के प्रयास में लगा है, उसी प्रकार राज्य का सत्ता पक्ष अपनी चुनावी सोच को अधिक धारदार बनाने की कोशिश कर रहा है. इस कार्य में उसे आरएसएस की अधिक आवश्यकता होगी. इसलिए यदि सत्ता में साझेदारी है तो संघ मुख्यालय में सभी को सिर झुकाना होगा.

जिसकी केवल भाजपा की अकेली जिम्मेदारी नहीं होगी. भविष्य में स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे. बीच-बीच में विधान परिषद की सीटें भी रिक्त होंगी. हर समय एक रेखा पर चलने और सहायता के लिए संघ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा. इस स्थिति में विधानमंडल का शीत सत्र अच्छी शुरुआत का साक्षी बन चुका है.

अब रेशिमबाग आना-जाना महज एक औपचारिकता, परंपरा या संस्कार नहीं होगा. ये मिलने-जुलने के सिलसिले भविष्य की आवश्यकता को देखकर समझे तथा बनाए रखे जाएंगे. यह गठबंधन की राजनीति का नया रंग है, जिसमें केवल साझा सरकार और सीटों के तालमेल से ही नहीं, वैचारिक स्तर पर भी एकजुट और एकरूप दिखना होगा.

टॅग्स :महाराष्ट्रदेवेंद्र फड़नवीसआरएसएसBJPएकनाथ शिंदेअजित पवार
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