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Maharashtra Politics: सदाचार का ताबीज बांध चलेगी महाराष्ट्र सरकार?, प्रधानमंत्री के सुझाव और चिंताएं...

By Amitabh Shrivastava | Updated: January 18, 2025 06:37 IST

Maharashtra Politics: सरकार में यदि मुख्यमंत्री के बदले चेहरे को छोड़ दिया जाए तो एक उपमुख्यमंत्री समेत अनेक मंत्री ऐसे हैं, जो दोबारा अपने स्थान पर विराजमान हुए हैं.

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ठळक मुद्देदूसरी ओर बड़ी संख्या में पुराने विधायकों की वापसी हुई है. पहली बार विधानमंडल की चौखट पर पहुंचने वाले भी कम नहीं हैं.कोरोना महामारी के बीच आघाड़ी को अनेक संकटों से गुजरना पड़ा.

Maharashtra Politics: बीते गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए मुंबई आए थे. एक आयोजन बंद दरवाजे के भीतर हुआ, जो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीतने वाले सत्ताधारी पाले के विधायकों के लिए था. हालांकि इसकी आवाज के निकलने पर रोक लगी थी, लेकिन उपस्थिति से लेकर प्रधानमंत्री के सुझाव और चिंताएं सभी बाहर तक सुनाई दे गईं. राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार और उनकी ही पार्टी के नाराज चल रहे नेता छगन भुजबल की अनुपस्थिति खबरें बनने का अवसर दे गई. आम तौर पर प्रधानमंत्री मोदी अपनी मंत्रिपरिषद और नए सांसदों के साथ हमेशा ही संवाद करते आए हैं, किंतु इस बार महाराष्ट्र के सत्ताधारी दलों के विधायकों से उन्होंने अपने मन की बात करने की कोशिश की.

राज्य की नई सरकार में यदि मुख्यमंत्री के बदले चेहरे को छोड़ दिया जाए तो एक उपमुख्यमंत्री समेत अनेक मंत्री ऐसे हैं, जो दोबारा अपने स्थान पर विराजमान हुए हैं. वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में पुराने विधायकों की वापसी हुई है. फिर भी पहली बार विधानमंडल की चौखट पर पहुंचने वाले भी कम नहीं हैं.

ऐसे में इतिहास और वर्तमान के कार्यकलापों के बहाने समझने और समझाने की कहीं अवश्य ही आवश्यकता अनुभव हुई होगी. वर्ष 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलने पर शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा के साथ महाविकास आघाड़ी की सरकार का गठन किया. कोरोना महामारी के बीच आघाड़ी को अनेक संकटों से गुजरना पड़ा.

राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा. मंत्री संजय राठौड़ को एक युवती के आरोपों के चलते अपने पद का त्याग करना पड़ा. इन्हीं के साथ माफिया गिरोह से जमीन का सौदा करने के आरोप में मंत्री नवाब मलिक को जेल की हवा खानी पड़ी. इनके अलावा तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजित पवार और मंत्री छगन भुजबल निशाने पर रहे.

ढाई साल बाद शिवसेना के टूटने पर महागठबंधन की सरकार बनी और संजय राठौड़ दोबारा मंत्री बन गए. बाद में राकांपा में फूट के बाद अजित पवार और छगन भुजबल भी महागठबंधन सरकार के पद पाकर दोबारा सत्तासीन हो गए. अब वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार के गठन पर पूर्व मंत्री भुजबल और अब्दुल सत्तार को छोड़कर लगभग सभी को दोबारा मंत्री बनने का अवसर मिल गया है. यहां तक कि कुछ को पुराने विभाग भी मिल गए हैं. इस स्थिति में स्वच्छ छवि के साथ पांच साल सरकार चलाना बड़ी चुनौती है.

महाविकास आघाड़ी ने सत्ता गंवाने के बाद अगले ढाई साल महागठबंधन के नेताओं पर भी भ्रष्टाचार के आरोपों को लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अब उनके समक्ष पांच साल का नया अवसर है. प्रधानमंत्री मोदी की सत्ताधारी मंत्रियों-विधायकों की चर्चा में आम जनता के प्रति संवेदनशीलता, सांकेतिक रूप में भ्रष्टाचार की आशंका वाले कामों से किनारा और स्वास्थ्य-परिवार की चिंता पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया. आम जन के बीच जनप्रतिनिधि का होना हर तरह से सरकार व संगठन दोनों को मजबूती प्रदान करता है. भ्रष्टाचार छवि खराब करता है और नाराजगी पैदा करता है.

वहीं स्वास्थ्य और परिवार का ध्यान  इसलिए भी आवश्यक है कि राज्य ने अनेक प्रमुख नेता जैसे विलासराव देशमुख, आरआर पाटील, जयदीप सातव, विमल मुंदड़ा आदि को गंवाया है. सार्वजनिक जीवन में स्वास्थ्य और परिवार की चिंता से दूरी बढ़ने से परेशानियां पैदा होती हैं, जिनके कई बार घातक परिणाम भी सामने आते हैं.

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रदीर्घ राजनीतिक अनुभव से नए राजनीतिज्ञों को सलाह-मशविरा दिया करते हैं. इस बार महाराष्ट्र में चूंकि बड़े बहुमत के साथ सरकार का गठन हुआ है, इसलिए कुछ चिंताओं और सावधानियों के नीचे रेखा खींचना आवश्यक हो चला था. राज्य में भाजपा ने भले ही 132 विधायकों की जीत के साथ सरकार बनाई हो, लेकिन उसके साथी शिवसेना(शिंदे गुट) 59 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(अजित पवार गुट) 41 सीटों के साथ उसके साथ सत्ता के भागीदार हैं.

यदि भाजपा अपने विधायकों और मंत्रियों पर नियंत्रण रख सकती है तो उसे दूसरे दलों के विधायकों और मंत्रियों की छवि पर ध्यान देना आवश्यक होगा. यह बात कहना राज्य के स्तर पर संभव नहीं थी तो केंद्र के स्तर पर प्रधानमंत्री के आगमन के बहाने बता दी गई. आरंभ में ही सरकार के साथ चलने और स्वच्छ छवि बनाए रखने के लिए सदाचार का ताबीज पहना दिया गया.

अब यह कितने दिन काम करेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा. किंतु मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर ताबीज के हाल पर नजर रखने की नैतिक जिम्मेदारी अवश्य ही होगी. तीसरी बार महाराष्ट्र सरकार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री फडणवीस के कंधों पर है. पहले पांच साल उनकी स्वच्छ छवि के प्रमाण हैं. बीच के तीन दिन की सरकार को छोड़ दिया जाए तो अगली चुनौती सामने है.

वर्ष 2014 में शिवसेना के गठबंधन में सरकार किसी गंभीर लांछन की शिकार नहीं हुई थी. हालांकि उस दौरान भाजपा के 122 विधायकों के मुकाबले शिवसेना के विधायक 63 ही थे. इस बार भाजपा के 132 विधायकों की तुलना में शिवसेना के शिंदे गुट और राकांपा(अजित पवार गुट) के मिलाकर सौ विधायक हैं.

सभी को साथ लेकर चलना संघर्षपूर्ण कार्य है. वह भी उस दौर में जब कुछ पार्टी के नेताओं को मंत्री नहीं बनाया गया है. दूसरी तरफ सत्ताधारियों का विधानसभा में बड़ा बहुमत सिर चढ़ कर बोल रहा है. फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच राज्य के विधायकों के लिए सही संदेश तो दे ही गए हैं, जो जनभावना-आवश्यकता से जुड़ा है.

चूंकि अतीत के अनुभव अच्छे नहीं हैं, इसलिए उचित समय में उचित संदेश का मिलना भविष्य के लिए अच्छा है. आगे मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे रेखांकित बातों पर कितना अमल करवा पाते हैं. मगर यह तय है कि आने वाले पांच सालों में कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी की भी इस बात पर नजर जरूर रहेगी कि महाराष्ट्र में उनका सदाचार का ताबीज कितना असरकारक रहा.

टॅग्स :देवेंद्र फड़नवीसमहाराष्ट्रनरेंद्र मोदीअजित पवारएकनाथ शिंदे
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