Maharashtra Assembly polls: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार को महाराष्ट्र में एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में देखा जाता है. वह अपने अनुभवों के आधार पर ही कोई बयान देते हैं. मगर शनिवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के चुनावों में धांधली को दिखाने के लिए कुछ तथ्यों को उजागर किए जाने के बाद से कुछ शंकाएं जन्म ले रही हैं. पवार ने राहुल गांधी के आरोपों का समर्थन किया है. आश्चर्यजनक यह है कि बीते वर्ष चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पवार ने आरोपों से अधिक आत्मअवलोकन पर बल दिया था.
उनकी सुपुत्री सुप्रिया सुले ने मत-पत्र और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दोनों से चुनाव जीतने और हारने के मामलों का जिक्र कर चर्चा को विराम दिया था. मगर इतने दिनों बाद पवार का दावा कि विधानसभा चुनाव से पहले दो लोग 160 सीटों की गारंटी दे रहे थे, आश्चर्यजनक मालूम पड़ रहा है. यदि ऐसी कोई बात सामने थी तो उसे तत्काल उजागर क्यों नहीं किया गया?
उस समय उन्होंने पराजय स्वीकार कर ली थी. अब चुनाव आयोग को निशाना बनाना आरंभ किया है. वह भी तब जब कांग्रेस के नेता अपनी जांच रिपोर्ट को दिखा रहे हैं. दरअसल ‘इंडिया’ में दरार की बात हमेशा उठी है. राहुल गांधी की बैठक उसे कम करने की कोशिश मानी जा सकती है. महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव होने जा रहे हैं.
उसके साथ ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है. इस स्थिति में गठबंधन के साथ सुर में सुर मिलाना एक राजनीतिक मजबूरी हो सकती है. भारत में चुनाव अनेक स्तर से स्वतंत्र और पारदर्शी होते हैं, जिसके कई प्रमाण उपलब्ध हैं. शक और सवालों पर चुनाव आयोग सुनवाई करता है और समाधान नहीं होने की स्थिति में अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.
किंतु इसकी प्रक्रिया है. फिर भी यह मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि वृहद स्तर पर होने वाले चुनावों में कई प्रकार की त्रुटियां मिल सकती हैं. किंतु उनका हल निकाला जा सकता है. महाराष्ट्र में अक्सर ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव कुछ माह के अंतराल से होते हैं. हर चुनाव के पहले आयोग मतदाता सूचियों में संशोधन करता है और अंतिम सूची पर मतदान होता है, जो सार्वजनिक होती है.
मतदान केंद्रों पर मौजूद दलों के प्रतिनिधि उन्हीं से मतदान की अनुमति देते हैं. बावजूद इसके कोई गड़बड़ी होती है तो तत्काल प्रकाश में लाई जा सकती है. कुछ स्थानों में देर तक मतदान होता है, लेकिन वह भी अज्ञात रूप से नहीं होता है. ईवीएम को सील लगाने से लेकर मतगणना के लिए खोलने तक सभी काम सार्वजनिक होते हैं. ऐसे में भी यदि कहीं कोई गड़बड़ी होती है तो आवाज उठाई जा सकती है.
परिणामों के आठ माह बाद आशंका जताने से संवैधानिक संस्थाओं पर अविश्वास पैदा करने की कोशिश की जा सकती है, किंतु उससे चुनाव नहीं जीता जा सकता. प्रयास गड़बड़ी न दोहराने की दिशा में होने चाहिए. न कि सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटते रहने के किए जाने चाहिए.