LS polls 2024: खुले दरवाजे की नीति आखिर क्यों?, आखिर कैसे 400 सीटों का आंकड़ा, यहां पढ़िए लेखा-जोखा
By हरीश गुप्ता | Published: April 4, 2024 11:06 AM2024-04-04T11:06:43+5:302024-04-04T11:08:52+5:30
LS polls 2024: जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार यू-टर्न लेकर एनडीए में फिर से शामिल हो गए तो भाजपा के लिए यह एक उपलब्धि थी, जिससे इंडिया गठबंधन को करारा झटका लगा.
LS polls 2024: भाजपा नेतृत्व ने अपने लिए 370 और एनडीए के लिए 400 लोकसभा सीटों का आंकड़ा पार करने का लक्ष्य भले ही रखा हो, लेकिन जमीनी हालात को देखते हुए कोई भी स्वतंत्र राजनीतिक पर्यवेक्षक इतने बड़े दावे को स्वीकार करने को तैयार नहीं था. यहां तक कि प्रामाणिक चुनाव विश्लेषक भी हैरान रह गए थे जब प्रधानमंत्री ने 5 फरवरी को लोकसभा में एक बहस के दौरान यह बात कही. इसमें कोई संदेह नहीं कि जब जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार यू-टर्न लेकर एनडीए में फिर से शामिल हो गए तो भाजपा के लिए यह एक उपलब्धि थी, जिससे इंडिया गठबंधन को करारा झटका लगा.
अन्य छोटे दलों में भी एनडीए में शामिल होने के लिए लाइन लग गई. फिर भी यह पर्याप्त नहीं था. नेतृत्व को उस समय झटका लगा, जब आरएसएस ने देश की स्थिति पर किए गए एक गोपनीय देशव्यापी सर्वेक्षण को साझा किया. पिछले साल किए गए सर्वेक्षण में भाजपा को ग्रामीण भारत में बढ़ते दबाव और शहरों में बढ़ती बेरोजगारी के बारे में आगाह किया गया था जिससे कई लोग गांवों में वापस जाने के लिए मजबूर हो गए थे. इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से गरीबों को मदद मिली है लेकिन काम अभी भी शेष है.
अगर आरएसएस के करीबी सूत्रों की मानें तो उसने कहा कि भाजपा को मामूली बहुमत मिल सकता है. बताया जाता है कि इस रिपोर्ट के बाद ही बहुआयामी रणनीति बनाई गई. एक ‘खुले दरवाजे’ की नीति अपनाई गई, अन्य दलों से आए नए लोगों को टिकट दिए गए और विपक्षी नेताओं को बेनकाब करने के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पूर्ण अभियान शुरू किया गया. इस हताशा का एक संकेत ओडिशा में देखा गया जहां भाजपा सत्तारूढ़ बीजद को अपने पाले में लाना चाहती थी जो पहले से ही भगवा पार्टी का समर्थन कर रही थी.
टिकट से वंचितों पर दोहरी मार
जो लगभग सौ भाजपा सांसद पार्टी का टिकट नहीं मिलने से नाराज थे, उन्हें अब एक और झटका लगा है. हालांकि उनमें से कुछ ने अन्यत्र मौका पाने के लिए पार्टी छोड़ दी, उनमें से अधिकांश पार्टी में रहकर ही इंतजार कर रहे थे. पार्टी आलाकमान ने उनमें से कई से संपर्क किया और कहा कि उन्हें पार्टी के लिए काम करना है और टिकट नहीं मिलना उनके राजनीतिक करियर का अंत नहीं है.
उनसे कहा गया कि जिस उम्मीदवार को उस क्षेत्र से टिकट दिया गया है, उसके लिए कड़ी मेहनत करें. उनके चुनाव कर्तव्यों की एक विस्तृत योजना उन्हें बताई गई. उनसे कहा गया कि जब प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा उन निर्वाचन क्षेत्रों में रैलियों को संबोधित करें तो वे मंच पर मौजूद रहें.
निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा के चुनाव प्रभारी नियमित आधार पर उनके संपर्क में हैं और उन्हें पार्टी उम्मीदवार की जीत में योगदान देने के लिए सुविधाएं दी जा रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा की त्रिमूर्ति (मोदी, शाह और नड्डा) टिकट से वंचित लोगों को मंच पर पूरा सम्मान देने सहित उनसे हाथ मिलाकर दर्शकों को यह संकेत देती है कि भगवा परिवार में सब कुछ ठीक है. टिकट से वंचित किए गए अधिकांश मंत्रियों को विशिष्ट जिम्मेदारियां दी गई हैं और वे नए चेहरों के लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं. सचमुच यह एक कमाल की उपलब्धि है!
भाजपा ने साधा कई सीटों पर निशाना
भाजपा नेतृत्व ने 2024 के चुनावों में विपक्षी नेताओं की हार सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोकसभा सीटों को लक्षित किया है. 2019 में उसने राहुल गांधी और शिबू सोरेन की हार सुनिश्चित करने के लिए यूपी में अमेठी और झारखंड में दुमका को निशाना बनाया था. इस बार भाजपा नेतृत्व के रडार पर रायबरेली (यूपी), छिंदवाड़ा (एमपी), बेंगलुरु ग्रामीण (कर्नाटक), बारामती (महाराष्ट्र) और आसनसोल (पश्चिम बंगाल) हैं. पीएम मोदी के साथ दोस्ताना संबंध रखने वाले कमलनाथ की विरासत की हार सुनिश्चित करने के लिए भाजपा छिंदवाड़ा सीट अपनी झोली में डालना चाहती है.
इससे चुनाव के बाद नकुलनाथ की भाजपा में एंट्री का रास्ता साफ हो जाएगा. इसी तरह, भाजपा रायबरेली जीतना चाहती है. उसने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और इस इंतजार में है कि कांग्रेस इस सीट से प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारेगी. बेंगलुरु ग्रामीण में भाजपा उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश को हराना चाहती है.
बारामती में भाजपा शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को हराने और अजित पवार की पूरी मदद करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है. भाजपा नेतृत्व शत्रुघ्न सिन्हा की हार सुनिश्चित करने के लिए आसनसोल छीनना चाहता है. ऐसे संकेत हैं कि पार्टी कठिन सीटें जीतने के लिए जाने जाने वाले एसएस अहलूवालिया को मैदान में उतार सकती है. 16वीं लोकसभा में उन्होंने दार्जिलिंग जीता तो 2019 में बर्धमान दुर्गापुर से जीत हासिल की थी.
निर्मला की टिप्पणी से असहज स्थिति
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहकर भले ही कुछ प्रशंसा अर्जित की हो कि उन्होंने चुनाव लड़ने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि उनके पास लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आवश्यक धन नहीं है, लेकिन इस टिप्पणी ने पार्टी के कई नेताओं को परेशान कर दिया, जिन्हें लगा कि उन्होंने दूसरों को असहज स्थिति में डाल दिया है.
भाजपा में ऐसे कई नेता हैं जिनके पास चुनाव लड़ने लायक पैसे नहीं हैं. लेकिन इस पहलू पर फैसला लेना पार्टी का काम है. दूसरे, मोदी सरकार में ऐसे अन्य मंत्री भी हैं जिन्होंने विभिन्न कारणों से चुनाव लड़ने में अनिच्छा व्यक्त की थी. निर्मला की टिप्पणी ने उन्हें भी असहज स्थिति में डाल दिया है, भले ही उन्होंने यह सहज भाव से कहा हो.