लोकमत संपादकीयः आम आदमी की पहुंच से बाहर होती चिकित्सा शिक्षा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 1, 2019 04:25 AM2019-02-01T04:25:05+5:302019-02-01T04:25:05+5:30
आम आदमी की स्वास्थ्य सुविधाओं के मद्देनजर सरकार को इस खर्च का कुछ हिस्सा वहन करना चाहिए. अभी हालत यह है कि हमारे देश में सरकार स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 1411 रु. खर्च करती है, जबकि चीन में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च प्रति व्यक्ति 15 हजार रु.
ऐसे समय में, जबकि देश में डॉक्टरों की पहले से ही कमी है, महाराष्ट्र में निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस में वृद्धि की खबर आम आदमी के लिहाज से अच्छी नहीं है. राज्य में निजी मेडिकल कॉलेजों को शुल्क नियंत्रण समिति (एफआरए) द्वारा औसतन 25 फीसदी तक शुल्क वृद्धि करने की अनुमति दिए जाने से मेडिकल की पढ़ाई और महंगी होना तय है, क्योंकि आगामी शैक्षणिक वर्ष से यह शुल्क वृद्धि लागू हो जाएगी.
नतीजतन न तो आम आदमी अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने के लिए सहजता से पैसे जुटा पाएगा और न ही उसके लिए बीमार पड़ने पर अपना इलाज करा पाना आसान रह जाएगा, क्योंकि जाहिर है, भारी-भरकम फीस अदा करके डॉक्टर बनने वाले छात्र मरीजों से तगड़ी फीस भी वसूलेंगे. देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में हालत इतनी खराब है कि लगभग 130 करोड़ की आबादी के लिए सिर्फ दस लाख एलोपैथिक डॉक्टर हैं, औसतन 1400 लोगों के लिए एक डॉक्टर.
इन दस लाख डॉक्टरों में से भी केवल एक लाख दस हजार डॉक्टर ही सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हैं. अर्थात देश के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले करीब 80 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे ही है, क्योंकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि निजी डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में जाना पसंद नहीं करते हैं. हालांकि इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मेडिकल की पढ़ाई के उद्देश्य से आधुनिक उपकरणों की खरीद के लिए संस्थाओं को पैसे की जरूरत पड़ती है, इसलिए फीस बढ़ाना उनकी मजबूरी भी है.
लेकिन आम आदमी की स्वास्थ्य सुविधाओं के मद्देनजर सरकार को इस खर्च का कुछ हिस्सा वहन करना चाहिए. अभी हालत यह है कि हमारे देश में सरकार स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 1411 रु. खर्च करती है, जबकि चीन में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च प्रति व्यक्ति 15 हजार रु. है. आधुनिक जीवन शैली का असर कहें या बदलते पर्यावरण का प्रभाव, आज बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं और आम आदमी के बजट का एक बड़ा हिस्सा इलाज में खर्च होता है. स्वास्थ्य सेवाओं के महंगा होने के कारण ही हर साल बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते हैं. इसलिए सरकार को आम आदमी के लिए मेडिकल की पढ़ाई और स्वास्थ्य सेवा, दोनों सुलभ बनाने की ओर ध्यान देना ही होगा.