लोकमत संपादकीयः खत्म होने की दिशा में बढ़ता नक्सलवाद

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 9, 2019 13:16 IST2019-02-09T13:16:02+5:302019-02-09T13:16:02+5:30

स्थानीय निवासियों के हक में संघर्ष का दावा करने वाले नक्सलवाद ने कभी लोगों के समर्थन के बल पर ही दुर्गम क्षेत्रों में अपनी जड़ें जमाई थीं और देश के 11 राज्यों के सैकड़ों जिलों में फैल गया.

Lokmat editorial: increasing naxalism towards end | लोकमत संपादकीयः खत्म होने की दिशा में बढ़ता नक्सलवाद

लोकमत संपादकीयः खत्म होने की दिशा में बढ़ता नक्सलवाद

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षाबलों द्वारा 15 नक्सलियों को ढेर किया जाना देश को नक्सलवाद से मुक्त करने के प्रयास की दिशा में एक और कदम है. दरअसल नक्सली जिस तरह से ग्रामीणों को भय के साये में जीने को मजबूर कर रहे हैं, उसने उनके खात्मे की प्रक्रिया तेज कर दी है. नक्सलियों द्वारा लोगों में फैलाए जाने वाले खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में पिछले 15 दिनों में नक्सली आठ ग्रामीणों की जान ले चुके हैं.

स्थानीय निवासियों के हक में संघर्ष का दावा करने वाले नक्सलवाद ने कभी लोगों के समर्थन के बल पर ही दुर्गम क्षेत्रों में अपनी जड़ें जमाई थीं और देश के 11 राज्यों के सैकड़ों जिलों में फैल गया. लेकिन नक्सलवादी आज वंचितों के हितों के लिए संघर्ष के नाम पर लूट-खसोट मचा रहे हैं और लोगों की भलाई के बजाय सिर्फ अपनी सुख-सुविधा देख रहे हैं. यही कारण है कि उनके प्रति स्थानीय जनसमर्थन घटता जा रहा है. फलस्वरूप नक्सली खौफ पैदा करके उन्हें अपने कब्जे में रखने के लिए मजबूर हो रहे हैं. दरअसल समय के साथ निरंतर साबित हुआ है कि दुनिया की सभी शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है. 

अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया जैसे देशों में आतंकवादियों का हश्र हम देख चुके हैं. आतंकवाद भस्मासुर है जो इसे फैलाने वाले का सर्वनाश करता है और दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है. नक्सलवाद के बारे में भी यही बात कही जा सकती है. नक्सलियों को समझना होगा कि जिस जनता की भलाई के नाम पर वे लड़ रहे हैं, उसके भीतर ही खौफ पैदा करके वे किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते. हकीकत यही है कि नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष में हर समय आम नागरिक ही पिसता है.

सुरक्षाबलों पर जहां कुछ लोगों ने यह आरोप लगाए हैं कि उन्होंने नक्सली कहकर आम लोगों को निशाना बनाया है, वहीं नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर कहकर बड़ी संख्या में आम लोगों को मौत के घाट उतारा है. इसलिए नक्सली अगर सचमुच दुर्गम क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों का भला चाहते हैं तो उन्हें हथियार छोड़कर लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी. इसी में सबकी भलाई निहित है.

Web Title: Lokmat editorial: increasing naxalism towards end

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