Lok Sabha Elections: 2024 चुनाव में 51 प्रतिशत वोट और 400 लोकसभा सीटें पाने का लक्ष्य, कई भाजपा सांसद चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं?, दक्षिण भारत से चुनाव लड़ सकते हैं पीएम मोदी!
By हरीश गुप्ता | Published: January 4, 2024 11:07 AM2024-01-04T11:07:25+5:302024-01-04T11:09:26+5:30
Lok Sabha Elections 2024: मौजूदा 303 भाजपा सांसदों में से अनेक अन्य पार्टियां या अपना पेशा छोड़कर आए थे, जिनका अपने कार्यक्षेत्र में नाम या प्रसिद्धि थी.
Lok Sabha Elections 2024: भाजपा नेतृत्व 2024 के चुनावों में 51 प्रतिशत वोट और 400 लोकसभा सीटें पाने का लक्ष्य बना रहा है. भाजपा नेतृत्व का लक्ष्य 100 से अधिक मौजूदा लोकसभा सांसदों को टिकट देने से इनकार करना है. लेकिन अपनी सांसें थामिए क्योंकि कहानी का दूसरा पहलू भी है.
यह अविश्वसनीय भी लग सकता है लेकिन सच है और नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं. पता चला है कि कई मौजूदा सांसदों ने 2024 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने और टिकट नहीं मांगने का फैसला किया है. ये वे लोग नहीं हैं जो अपनी उम्र के सातवें या छठवें दशक में हैं और उन्होंने अच्छा प्रदर्शन करके दिखाया है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि मौजूदा 303 भाजपा सांसदों में से अनेक अन्य पार्टियां या अपना पेशा छोड़कर आए थे, जिनका अपने कार्यक्षेत्र में नाम या प्रसिद्धि थी. इनमें से कुछ सांसद भाजपा के कट्टर वफादार रहे हैं और उन्होंने लंबे समय तक काम किया है. लेकिन उन्हें पार्टी की नई कार्यशैली से कठिनाई हो रही है और वे इसका सामना करने में असमर्थ हैं.
उन्हें लगता है कि वे अब इंसान नहीं बल्कि मशीनें हैं जो मालिक के आदेश के अनुसार काम करती हैं. उनका अपना कोई जीवन नहीं है और उन्हें सातों दिन चौबीसों घंटे पार्टी के लिए काम करना है. अगर वे शीर्ष नेताओं के ट्वीट को रीट्वीट नहीं करते हैं तो उन्हें फोन आएगा; यदि वे दिन के दौरान या अपने निर्वाचन क्षेत्रों में किए गए कार्यों की तस्वीरें अपलोड नहीं करते हैं, तो उन्हें अच्छा नहीं समझा जाएगा.
यदि वे सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे के बीच संसद भवन में अपनी सीटों से गायब पाए जाते हैं, तो उन्हें एक लिखित नोट मिलेगा; अगर वे पार्टी के किसी आयोजन में शामिल नहीं होंगे तो उन्हें फोन आएगा. उन्हें अपने परिवार के साथ समय बिताना बेहद मुश्किल लगता है और उन्हें ऊपर से एक रूखा संदेश मिलना निश्चित है.
नई ‘कार्य संस्कृति’ उन पर मानसिक रूप से भारी असर डाल रही है. वे हमेशा परेशान रहते हैं और उन्होंने इसे बंद करने का फैसला किया है. उनमें से कई ने दोबारा नामांकन नहीं भरने का फैसला किया है. इसके लिए आने वाले हफ्तों का इंतजार करना होगा.
विकसित भारत या इंडिया शाइनिंग पार्ट-2
50 करोड़ से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाने वाली सरकार की व्यापक कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रव्यापी विकसित भारत यात्रा को हर नुक्कड़ और कोने तक पहुंचाने को अद्वितीय कदम मान कर इसका स्वागत किया जा रहा है. सरकार की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए 2500 से अधिक अत्याधुनिक बसें लगाई गई हैं.
लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में काम करने वालों का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भी रथों पर इंडिया शाइनिंग यात्रा शुरू की थी, जो 2003 में तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह के दिमाग की उपज थी. एक विज्ञापन फर्म ग्रे वर्ल्डवाइड ने 2003 में इस अभियान को संभाला था और सरकार ने ‘इंडिया शाइनिंग’ नारे के प्रचार पर अनुमानित तौर पर 20 मिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च किया था.
2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के हार जाने के कारण अभियान फ्लॉप हो गया. हो सकता है कि मोदी ने रथों के संबंध में वाजपेयी का अनुसरण किया हो, लेकिन वह इसे अलग तरीके से संभाल रहे हैं क्योंकि बसें केवल प्रचार के लिए नहीं हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा बनाई गई सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत एक लगभग निष्क्रिय पड़ी मैदानी प्रचार इकाई की खोज की. उन्होंने लाभार्थियों या छूटे हुए लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए बसों के साथ शीर्ष अधिकारियों की एक टीम भी भेजी.
पूर्ण राजनीतिक लाभ लेने के लिए, भाजपा नेतृत्व ने अपने सांसदों और कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित लाभार्थियों की सूची बनाने और उनकी समस्याओं को हल करने में मदद करने का निर्देश दिया. मौके पर मदद के लिए भाजपा की टीमें हर जिले के कॉल सेंटर से जुड़ी हुई हैं.
संसदीय समितियों को राहुल की ना
लोकसभा सीट भले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बहाल कर दी गई हो, लेकिन उन्होंने विदेशी मामले या रक्षा सहित किसी भी स्थायी संसदीय समिति का सदस्य नहीं बनने का फैसला किया है. उनके करीबी सूत्रों ने इसका कोई कारण नहीं बताया है, जो कहते हैं कि उन्होंने अपने तुगलक लेन बंगले पर भी कब्जा वापस नहीं लिया है. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी अपनी भारत न्याय यात्रा सहित राजनीति को पूरा समय देना चाहते हैं क्योंकि वह 2024 के चुनाव को भाजपा के साथ ‘करो या मरो’ की लड़ाई मानते हैं.
दक्षिण से चुनाव लड़ सकते हैं मोदी!
ऐसी अटकलें हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 में किसी दक्षिणी राज्य से चुनाव लड़ने की संभावना तलाश सकते हैं. ऐसा सोचने के प्रमुख कारणों में से एक यह है कि अगर मोदी चार दक्षिणी राज्यों में से किसी एक से चुनाव लड़ते हैं, तो यह पूरे क्षेत्र में पार्टी और मतदाताओं को प्रेरित करेगा. 2014 में मोदी ने गुजरात की सुरक्षित सीट के बजाय वाराणसी सीट चुनी जो उनके लिए बिल्कुल नई थी.
इस कदम से पार्टी को यूपी से रिकॉर्ड संख्या में लोकसभा सीटें जीतने में काफी फायदा हुआ. मोदी का तमिलनाडु में बार-बार जाना, राज्य के विकास के लिए धन देना और काशी में तमिल संगमम का प्रचार करना संकेत देता है कि कुछ पक रहा है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ये महज अटकलें हैं क्योंकि किसी को इसकी कोई भनक नहीं है.
हालांकि एक बात स्पष्ट है, मोदी दो सीटों से चुनाव नहीं लड़ेंगे इसलिए ऐसे किसी प्रयोग की संभावना कम है. दूसरी ओर, इंडिया के सहयोगी भी वाराणसी से मोदी के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार खड़ा करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. इस प्रस्ताव पर इंडिया के सहयोगियों की एक बैठक में चर्चा हुई थी.
2019 में ऐसी चर्चा थी कि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं. हालांकि, कांग्रेस ने अजय राय और समाजवादी पार्टी ने शालिनी यादव को मैदान में उतारा था. मोदी ने 60 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर चुनाव जीता. लेकिन इस बार, यह स्पष्ट है कि इंडिया एक साझा उम्मीदवार खड़ा करेगा. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यूपी से चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. उन्होंने ऐलान किया था कि वह वाराणसी में रैली करेंगे लेकिन इजाजत नहीं मिली.