लोकसभा चुनाव: राजनीति की गिरावट को रोक सकती है जनता

By विश्वनाथ सचदेव | Published: April 19, 2019 09:46 AM2019-04-19T09:46:11+5:302019-04-19T09:46:11+5:30

देश में लोकतंत्न का महापर्व मनाया जा रहा है. हर उत्तरदायी नागरिक अपने वोट से अपनी नई सरकार चुनेगा. लोकसभा के प्रत्याशी और राजनीतिक दल मतदाता को लुभाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं

lok sabha election 2019 Public can stop the decline of politics | लोकसभा चुनाव: राजनीति की गिरावट को रोक सकती है जनता

लोकसभा चुनाव: राजनीति की गिरावट को रोक सकती है जनता

देश में लोकतंत्न का महापर्व मनाया जा रहा है. हर उत्तरदायी नागरिक अपने वोट से अपनी नई सरकार चुनेगा. लोकसभा के प्रत्याशी और राजनीतिक दल मतदाता को लुभाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, और यह हमारे जनतंत्न की विशेषता है कि कुछ अपवादों को छोड़कर हर चुनाव में देश के मतदाता ने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ और परिपक्वता का बखूबी परिचय दिया है. लेकिन, इस दौरान देश की राजनीतिक पार्टियों और राजनीति के माध्यम से जनता की सेवा का दावा करने वालों के सोच और व्यवहार में आई फिसलन चिंता का विषय भी बनती रही है. जनतंत्न में विरोधी दुश्मन नहीं होता, पर हमारी राजनीति में विरोधी को दुश्मन मानने की परिपाटी-सी चल पड़ी है. यही नहीं, विरोधी को देश का दुश्मन निरूपित करने की जैसे एक परंपरा-सी बनती जा रही है. यह स्वस्थ राजनीति का संकेत नहीं है. 

इसके साथ ही राजनीतिक व्यवहार में और राजनेताओं की कथनी-करनी में भी लगातार गिरावट देखी जा रही है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्नता के नाम पर जिस तरह का उच्छृंखल व्यवहार हमारे राजनेता करने लगे हैं, वह चिंता का ही नहीं, शर्म का विषय भी बनता जा रहा है. देश की राजनीति में संभवत: पहली बार एक राज्य के मुख्यमंत्नी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं पर चुनाव आयोग ने सजा के रूप में एक निश्चित अवधि के लिए चुनाव-प्रचार पर रोक लगा दी. चिंता की बात यह भी है कि उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद चुनाव आयोग ने यह कार्रवाई की है. हालांकि आयोग ने यह भी कहा है कि इस संदर्भ में कोई कड़ी कार्रवाई करने का उसके पास अधिकार नहीं है, लेकिन विचारणीय है कि किसी नेता के चुनाव-प्रचार पर रोक लगाने का मतलब उसका दोषी घोषित किया जाना ही होता है. लेकिन हमारी विडंबना यह है कि ऐसे अपराधी यह मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है. ऐसे कई नेता हैं, जो विभिन्न अपराधों के लिए जेलों में बंद हैं, पर अपनी इस स्थिति पर उन्हें कोई शर्म नहीं है-वे अब भी यह मान रहे हैं कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. सच तो यह है कि हमारे ये नेता मानते हैं कि उनसे कोई अपराध हो ही नहीं सकता. जबकि हकीकत यह है कि उनके इन कथित गलत कामों में घूसखोरी से लेकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल तक के अपराध शामिल हैं. 

यह एक पीड़ादायक सच्चाई है कि चुनाव-दर-चुनाव हम अपने नेताओं के व्यवहार में गिरावट को बढ़ता हुआ देख रहे हैं. राजनीति आज भी सिद्धांतों और मूल्यों के नाम पर ही की जाती है, पर हमारी आज की राजनीति में सिद्धांतों या मूल्यों या आदर्शो के लिए कोई जगह बची नहीं है. रातोंरात दलीय निष्ठाएं बदल जाती हैं- न दल-बदल करने वालों को शर्म आती है और न ही दल-बदल करवाने वालों को. मालाएं पहनाकर अब तक के विरोधियों का अपने पाले में स्वागत किया जाता है. राजनीतिक दल खुलेआम इस आशय की घोषणाएं करते हैं कि उम्मीदवारों का चुनाव सिर्फ उनके जीतने की संभावनाओं पर होता है- फिर भले ही वह व्यक्ति कल तक हमें गालियां ही क्यों न दे रहा हो. 

और हद तो तब हो जाती है जब हम देखते हैं कि गाली देने वाला अपने शब्दों को गाली मानता ही नहीं. मेरा यह मतलब नहीं था अथवा मेरे कहे को गलत समझा गया है  जैसे वाक्य बिना किसी संकोच के बोले जा रहे हैं. हमारे राजनेता यह मान कर चल रहे हैं कि जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है-और वे यह भी मानते हैं जनता को मूर्ख बनाना कतई गलत नहीं है. 

सवाल उठता है, ऐसे में जनता क्या करे? इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर यह है कि जनता इन नेताओं का बहिष्कार करे. राजनीतिक दलों को भ्रष्ट व्यक्तियों को या आपराधिक तत्वों को अपना उम्मीदवार बनाने में शर्म नहीं आती तो जनता को कहना चाहिए कि उसे ऐसे व्यक्तियों को अपना समर्थन देने में शर्म आती है.  स्थिति की भयंकरता का इससे बड़ा और उदाहरण क्या हो सकता है कि सड़क पर ही नहीं, संसद में भी हम अस्वीकार्य आचरण के उदाहरण देखते हैं. क्या सचमुच हमारे नेता इस बात को नहीं समझते कि उनसे किस तरह के आचरण की अपेक्षा की जाती है? क्या सचमुच उन्हें नहीं पता कि चुनावों में जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगना अपराध है? क्या वे नहीं जानते कि जनतंत्न में सरकार का विरोध देश-द्रोह नहीं होता?

जनतांत्रिक व्यवस्था में आरोप-प्रत्यारोप स्वाभाविक हैं, पर यह सब एक सीमा में ही होना चाहिए. दुर्भाग्य से, आज हमारे राजनेता जिस तरह का आचरण कर रहे हैं, वह सभ्य समाज और कानून के शासन का मजाक करता दिख रहा है. यह सही है कि सभी राजनेता ऐसे नहीं हैं, पर राजनीति में लगातार आती गिरावट और बढ़ती फिसलन चिंता का विषय है. राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेतृत्व से हम अपेक्षा करते हैं कि वे अपने उदाहरण से अपने सहयोगियों को सही आचरण का संदेश देंगे, पर इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण संदेश जनता को देना है- जनता को अपनी करनी से अपने कथित नेतृत्व को यह बताना होगा कि वह राजनेताओं के अशोभनीय और अनुचित व्यवहार को स्वीकार नहीं करेगी. लोकतंत्न का महापर्व चल रहा है, इस पर्व का औचित्य सिद्ध करने का सही तरीका गलत लोगों को अस्वीकार करना है. आप तैयार हैं?

Web Title: lok sabha election 2019 Public can stop the decline of politics

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