अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ता देश
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 14, 2019 07:15 IST2019-06-14T07:15:54+5:302019-06-14T07:15:54+5:30
1960 के दशक में जिस तरह से दुनिया शीतयुद्ध की चपेट में आ गई थी, उसी तरह से दुनिया में अब एक नई स्पेस रेस शुरू हो चुकी है

अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में बढ़ता देश
1960 के दशक में जिस तरह से दुनिया शीतयुद्ध की चपेट में आ गई थी, उसी तरह से दुनिया में अब एक नई स्पेस रेस शुरू हो चुकी है. इस रेस में जो भी देश आगे रहेंगे, अंतरिक्ष के खनिज संसाधनों पर भविष्य में उन्हीं का कब्जा होगा, क्योंकि तकनीकी विकास के बूते पर इन संसाधनों का दोहन अब कोई दूर की कौड़ी नहीं रह गई है.
अगले महीने की 15 तारीख को चंद्रयान-2 को लांच करने की भारत की घोषणा भविष्य के इसी परिदृश्य के मद्देनजर की गई है. अमेरिका और रूस शीतयुद्ध के दिनों से ही अंतरिक्ष में अपना दबदबा स्थापित करने की कोशिश करते रहे हैं. इसके अलावा चीन जिस तरह से अड़ोस-पड़ोस के देशों और समुद्री क्षेत्रों तक पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, उसी तरह चंद्रमा पर भी प्रभुत्व कायम करने की महत्वाकांक्षा उसने अपने हालिया अभियानों के जरिये दिखा दी है. चीन ने घोषणा की है कि अगले दस साल में वह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना शोध केंद्र स्थापित करेगा.
वह चंद्रमा के टाइटेनियम, यूरेनियम, लोहे और पानी का इस्तेमाल रॉकेट निर्माण के लिए करना चाहता है. नासा ने भी 2028 तक चंद्रमा पर अपना एक अड्डा बनाने का इरादा जाहिर किया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जिस तरह से पांच स्थायी सदस्य देशों का शुरू से ही प्रभुत्व चला आ रहा है और आज के बदलते दौर में भी वे अपना वीटो पावर छोड़ने को तैयार नहीं हैं, उसी तरह से असंभव नहीं है कि अंतरिक्ष में जो चुनिंदा देश पहले अपना दबदबा कायम कर लें, वे बाद में बाकी देशों को वहां पैर पसारने ही न दें! इसलिए भारत के लिए जल्द से जल्द अंतरिक्ष महाशक्ति बनना जरूरी है.
वैसे भी अन्य देशों की तुलना में अत्यंत कम लागत में मंगल ग्रह पर अपना यान भेजकर भारत साबित कर चुका है कि सीमित संसाधनों के बल पर भी वह अपने दम पर अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की क्षमता रखता है. भारत की किफायती प्रणालियों का ही नतीजा है कि आज दुनिया के अधिकांश देश भारत के रॉकेटों के जरिये ही अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण कराते हैं. इसलिए भारत का दस साल बाद फिर से चांद की धरती पर कदम रखने का फैसला दूरदर्शितापूर्ण कदम है और उम्मीद की जा सकती है कि वह इससे अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में और आगे बढ़ेगा.