गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: नकारात्मकता छोड़ सकारात्मक बनने से ही सार्थक होगा जीवन
By गिरीश्वर मिश्र | Published: November 21, 2022 01:04 PM2022-11-21T13:04:56+5:302022-11-21T13:07:19+5:30
आज के दौर में भौतिक संपदा पाने की बेइंतहा होती लालसा इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि लोग बेचैन हो कर उसे पाने के लिए उल्टा-सीधा कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
हिंदी साहित्य के रीति काल के दौर में हुए और अपने दोहों के लिए प्रसिद्ध प्रमुख कवि बिहारी लाल ने अपने एक लोकप्रिय दोहे में कनक यानी सोने (भौतिक संपदा) के अत्यंत प्रचंड वेग का आकलन करते हुए कभी कहा था कि एक कनक तो धतूरा है जिसके बीज खाने के बाद आदमी बौरा जाता है पर स्वर्ण वाला कनक तो सिर्फ पाने भर से आदमी को मदमत्त कर देता है।
फिर मतवाला होकर आदमी होशो-हवास खोने लगता है, उसका विवेक जाता रहता है और तब वह कुछ भी कर सकता है। आज के दौर में भौतिक संपदा पाने की बेइंतहा होती लालसा इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि लोग बेचैन हो कर उसे पाने के लिए उल्टा-सीधा कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इस प्रवृत्ति के चलते सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में बेईमानी और भ्रष्टाचार का कारोबार प्रकट और प्रच्छन्न तरीके से छल-छद्म के तमाम पैंतरों के साथ खूब फलने-फूलने लगा है।
छोटे तबके के लोगों से ले कर ऊंचे और जिम्मेदार पदों पर आसीन रसूखदार बड़े-बड़े लोग भी उसमें साझीदार होते पाए जा रहे हैं। अपराध, धन-बल और राजनीति की त्रयी का परस्पर संबंध प्रगाढ़ होता जा रहा है। ऊपर से भाई-भतीजावाद, वंशवाद, क्षेत्रवाद और जातिवाद के रोग के साथ सामाजिक रुग्णता एक संक्रामक रोग की तरह देश के हर क्षेत्र में तेजी से पनप रही है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश, बंगाल और फिर गुजरात में पुल टूटने की घटनाओं ने पीडब्ल्यूडी की पोल खोल दी है कि किस तरह नफा कमाने के चक्कर में जीवन की कुर्बानी दी जा रही है।
अरावली की पहाड़ियों समेत अनेक जगहों पर धनाढ्य और कई माननीय जनों द्वारा अवैध रूप से जमीन कब्जाने की घटनाएं सामने आईं। अब उनको ढहाने का उपक्रम चल रहा है। इस तरह समाज में मुफ्त या सस्ते की कमाई का आकर्षण दुर्निवार होता जा रहा है। सीवर में घुसकर काम करने वाले सफाई कर्मियों की मौत की खबरें अक्सर आती हैं। ये सभी घटनाएं यही दिखाती हैं कि किस तरह नियमों की अनदेखी करके गलत काम किया जा रहा है। सस्ते तरीकों को अपना कर ज्यादा पैसा बनाने के लिए उद्यत उद्योगों का आम जनों के जान-जहान से कुछ लेना-देना नहीं होता है।
दूध, खाद्यान्न, पेय-पदार्थ, बोतलबंद पानी और मिठाई की कौन कहे जीवनरक्षक दवा और इंजेक्शन तक में जिस तरह से बड़े पैमाने पर मिलावट सामने आ रही है, उससे जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बढ़ता जा रहा है। आज जब अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है और हम स्वदेशी और आत्मनिर्भर देश बनाने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं तो यह आवश्यक हो जाता है कि कार्य में कुशलता और ईमानदारी को महत्व दिया जाए। इसका कोई और विकल्प नहीं है।