अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: नेताओं की आवाजाही बढ़ी, मगर समस्याएं वहीं
By अमिताभ श्रीवास्तव | Published: September 17, 2019 05:04 AM2019-09-17T05:04:01+5:302019-09-17T05:04:01+5:30
पिछले पांच सालों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर अनेक नेताओं के मराठवाड़ा दौरे हुए. कई तरह के वादे हुए, हालांकि उनमें दोहराव से अधिक कुछ नहीं था. परिवर्तन के नाम पर दिखाने के लिए कुछ भी नहीं था.
राजनीतिक बदलाव की बयार का साक्षी मराठवाड़ा आज यानी 17 सितंबर 2019 को अपनी मुक्ति के 72वें साल में कदम बढ़ा रहा है. देश की आजादी के 13 माह बाद मुक्त हुए इस क्षेत्र को यूं तो हमेशा से ही संतों की धरती माना गया. इसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध जैसे धर्मो की विरासत के लिए जाना गया. यह क्षेत्र आधुनिक युग में भी देश के अनेक बड़े नेताओं की जन्म और कर्म स्थली रहा. कभी मुगलों को परास्त और कभी निजाम को घुटने टिका कर अपने अस्तित्व की बुलंदियों को बरकरार रखने वाला मराठवाड़ा, अब अपनी नई छवि को विकसित करने के लिए लालायित है. किंतु उसे अपनी ऊंचाइयों को पाने के लिए राजनीति की चालों में शह और मात के बीच लंबा संघर्ष करना पड़ रहा है.
लगातार कई सालों से पानी की समस्या से जूझने के बाद केंद्र सरकार की ओर से ‘वाटर ग्रिड’ बनाए जाने की योजना ने एक आशा की किरण दिखाई है. मगर लगातार सूखे के कारण आधारभूत संरचना में आई कमजोरी को दूर करने के लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा. पांच साल पहले राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ. नई सरकार ने भी लुभावने वादे किए. किंतु अब लगभग पांच साल पूरे होने के समय पर भी मराठवाड़ा प्रगति के मोर्चे पर कोई ठोस दावा करने की स्थिति में नहीं है.
उद्योग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंदी के साथ क्षेत्रीय उदासीनता के शिकार हैं. आधारभूत जरूरतों में बिजली शहरी क्षेत्रों में महंगी जरूर किंतु ठीक-ठाक है, लेकिन ग्रामीण भागों में परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रहीं. सड़कों का हाल, यदि कुछ इलाकों कोछोड़ दें तो शहर और गांव सभी जगह एक जैसा है. स्वास्थ्य, शिक्षा के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं अभी-भी लोगों को मुंबई, पुणो जाने से रोक नहीं पा रही हैं. बेरोजगारी औद्योगिक मंदी से तो है ही, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था नजर नहीं आ रही है. हवाई यातायात में हज यात्र में निरंतरता तो बनी हुई है, मगर औरंगाबाद जैसी औद्योगिक और पर्यटन राजधानी में हवाई सेवा खराब है.
नई सरकार ने समृद्धि मार्ग के साथ मराठवाड़ा के विकास के लंबे सपने दिखाए थे, उसमें भी वह जमीन अधिग्रहण के अलावा किसी मोड़ पर भविष्य का दावा करने की स्थिति में नहीं है. सवाल है कि किस उम्मीद पर मराठवाड़ा अपनी बढ़ती राह देखे?
पिछले पांच सालों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर अनेक नेताओं के मराठवाड़ा दौरे हुए. कई तरह के वादे हुए, हालांकि उनमें दोहराव से अधिक कुछ नहीं था. परिवर्तन के नाम पर दिखाने के लिए कुछ भी नहीं था. समस्याओं से निपटने के लिए कोई ठोस अभियान या निराकरण का उपाय न सामने था और न ही कहीं कुछ सिद्ध हो पाया था. साफ है कि विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा मराठवाड़ा एक बार फिर अपनी मुक्ति की सालगिरह मनाएगा. निजाम शासन से स्वतंत्र होकर अपनी ताकत को दिखाने के लिए इतराएगा. मगर समस्याओं से कैसे निजात पाएगा? शायद अभी-भी वक्त वादों को सुनने में ही बीता जाएगा.