लालबहादुर शास्त्री : छोटे कद से नापी बड़ी ऊंचाइयां 

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: January 11, 2025 06:47 AM2025-01-11T06:47:50+5:302025-01-11T06:47:55+5:30

उन दिनों देश खाद्यान्नों के गंभीर संकट से गुजर रहा था और आयात पर निर्भर था.

Lal Bahadur Shastri Great heights measured from small stature | लालबहादुर शास्त्री : छोटे कद से नापी बड़ी ऊंचाइयां 

लालबहादुर शास्त्री : छोटे कद से नापी बड़ी ऊंचाइयां 

सरल, शालीन, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, नैतिक, मितव्ययी, दृढ़निश्चयी और ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के मूर्तिमान प्रतीक. स्वतंत्रता संघर्ष की आंच से तपकर निकले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के लिए इस तरह के जितने विशेषण एक साथ इस्तेमाल किए जाते हैं, शायद ही किसी और विभूति के लिए किए जाते हों. यह भी कहा जाता है कि उनका कद भले ही थोड़ा छोटा था, उसमें धड़कने  वाला हृदय विशाल था. आंतरिक शक्ति और संकल्प के मामलों में भी कम -से-कम उनके समकालीनों में उनका कोई जोड़ न था.

देश ने तो खैर उनके इन गुणों को नौ जून, 1964 को उनके प्रधानमंत्री बनने के पहले ही परख रखा था. तभी, जब वे उत्तर प्रदेश की गोविंद वल्लभ पंत सरकार में मंत्री और उसके बाद केन्द्र में रेलमंत्री थे. लेकिन दुनिया ने तब देखा, जब 1965 में पड़ोसी पाकिस्तान ने उनके छोटे कद के भुलावे में यह सोचकर देश पर आक्रमण कर दिया कि अभी तो वह 1962 में चीन से हुई लड़ाई में उसे मिले जख्म भी नहीं भर पाया है. तिस पर  अब उसके पास पं. नेहरू जैसा बड़े कद का कोई नेता भी नहीं है और छोटे कद के लालबहादुर शास्त्री के लिए उसको रोकना कतई संभव नहीं होगा.

पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान तो शास्त्रीजी के कद को लेकर उनकी हंसी भी उड़ाते थे. उन्हें अपमानित करने के लिए उन्होंने पं. नेहरू के निधन के बाद अपनी पहले से निर्धारित भारत यात्रा पर आने से इंकार कर दिया था.
लेकिन युद्ध छिड़ा तो शास्त्रीजी ने जल्दी ही पाकिस्तान को घुटनों के बल लाकर और अयूब के इस्तकबाल के लिए लाहौर पहुंचकर उनकी सारी गलतफहमियां दूर कर दीं. उस कठिन परीक्षा की घड़ी से गुजरते हुए उन्होंने देश और उसकी सेनाओं दोनों को एकजुटता व आत्मविश्वास से भरे रखा.

इस दौरान उन्होंने न सिर्फ उनका मनोबल ऊंचा रखा बल्कि ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर दोनों को अटूट आत्मीय बंधन में बांध दिया. उन्होंने सैनिकों से प्राणप्रण से देश की रक्षा करने का आह्वान करते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि कृतज्ञ राष्ट्र उनके लिए कुछ उठा नहीं रखेगा, जबकि देशवासियों से कहा कि आजादी अथवा सीमाओं की रक्षा सिर्फ सैनिकों का काम नहीं, सारे देश का कर्तव्य है.

आज हम जिस खाद्यान्न आत्मनिर्भरता पर गर्व करते हैं, उसे पाने की दिशा में गंभीर प्रयास शास्त्रीजी के प्रधानमंत्रीकाल में ही शुरू हुए थे. दरअसल, उन दिनों देश खाद्यान्नों के गंभीर संकट से गुजर रहा था और आयात पर निर्भर था. पाकिस्तान से युद्ध के वक्त इस संकट के और विकट होने का अंदेशा हुआ तो शास्त्रीजी ने उसके समाधान के लिए किसी निर्यातक देश, साफ कहें तो अमेरिका, के समक्ष झुकना गवारा नहीं किया और देशवासियों से एक वक्त का भोजन छोड़ने को कहा. यह बताते हुए कि जब स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो, तो जैसे भी बने, पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्तव्य होता है।

Web Title: Lal Bahadur Shastri Great heights measured from small stature

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