ब्लॉग: वैश्विक मत्स्य संपदा बचाने में ईमानदारी की कमी

By अश्विनी महाजन | Published: March 14, 2024 11:12 AM2024-03-14T11:12:16+5:302024-03-14T11:13:20+5:30

हमें समझना होगा कि जहां मछली पकड़ना छोटे मछुआरों की जीवनशैली है और जीविका का आधार है, वहीं बड़ी कंपनियों द्वारा बड़े-बड़े जहाजों की मदद से गहरे समुद्र में मछली पकड़ना केवल और केवल लाभ से प्रेरित है। 

Lack of honesty in saving global fisheries resources | ब्लॉग: वैश्विक मत्स्य संपदा बचाने में ईमानदारी की कमी

ब्लॉग: वैश्विक मत्स्य संपदा बचाने में ईमानदारी की कमी

आज दुनिया में बड़ी कंपनियों के ज्यादा लाभ कमाने के लालच में वैश्विक स्तर पर समुद्र में मछलियां और अन्य संसाधन धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ समुद्री तट पर रहने वाले लोगों के लिए मत्स्य आखेट रोजगार का एक प्रमुख साधन रहा है। भारत, जिसका समुद्री तट 7516 किमी का है, लगभग पूरे समुद्री तट पर हमारे परंपरागत मछुआरे मछली पकड़ अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

भारत समेत दुनिया भर में लगभग 50 करोड़ छोटे मछुआरे मत्स्यन के काम में लगे हैं और देश और दुनिया में मछली की आपूर्ति करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्यों में से एक लक्ष्य क्रमांक 14.6 में यह कहा गया है कि मत्स्यन आखेट में अतिरेक के कारण धारणक्षम विकास प्रभावित हो रहा है, इसलिए मत्स्यन को सीमित करना जरूरी है। यदि हम इस विषय में गंभीरता से विचार करें तो ध्यान में आता है कि यह बात सही है कि मछली और अन्य समुद्री संसाधनों की कमी से स्थाई आधार पर मानव जाति के लिए मछली की भविष्य में उपलब्धता खतरे में है, लेकिन प्रश्न यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

विश्व खाद्य संगठन (एफएओ) के अनुसार जहां वर्ष 1974 में धारणीय मत्स्यन से 10 प्रतिशत अधिक मछली पकड़ी जा रही थी, यह अतिरेक बढ़कर वर्ष 2019 तक आते-आते 35.4 प्रतिशत तक पहुंच गया। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र की मत्स्य संसाधनों को लेकर चिंता स्वभाविक ही है।

समझना होगा कि समुद्र में मछली कम होने से न केवल भविष्य में मानव जाति के लिए मछली की उपलब्धता में भारी कमी हो जाएगी, बल्कि दुनिया के 50 करोड़ मछुआरों की जीविका भी खतरे में पड़ जाएगी। यदि देखा जाए तो जहां आधी 50 करोड़ छोटे मछुआरे मछली पकड़ने के काम में लगे हैं, कुल मछली पकड़ने में उनका हिस्सा सिर्फ 40 प्रतिशत है, जबकि कुछ चुनिंदा कंपनियां दुनिया में समुद्री संसाधनों के दोहन में 60 प्रतिशत हिस्सा रखती हैं।

यानी समझा जा सकता है कि दुनिया में मछली पकड़ने के अतिरेक के लिए मानव सभ्यता के प्रारंभ से इस काम में जुड़े छोटे मछुआरे कतई जिम्मेदार नहीं हैं। यदि समुद्र में मछली की कमी के लिए कोई जिम्मेदार है तो वो दुनिया की बड़ी कंपनियां हैं, जो अपने-अपने देशों के आर्थिक क्षेत्र से आगे जाकर सुदूर समुद्र में मछली पकड़ती हैं।

चूंकि यह सब काम मशीनों से होता है और उनके पास अतिरिक्त साधन होते हैं, इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा मछली पकड़ पाते हैं और इस प्रकार दुनिया के बाजारों में उसे बेचकर खासा लाभ कमाते हैं। हमें समझना होगा कि जहां मछली पकड़ना छोटे मछुआरों की जीवनशैली है और जीविका का आधार है, वहीं बड़ी कंपनियों द्वारा बड़े-बड़े जहाजों की मदद से गहरे समुद्र में मछली पकड़ना केवल और केवल लाभ से प्रेरित है। 

Web Title: Lack of honesty in saving global fisheries resources

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