कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: एक वोट से भी बहुत कुछ होता है देश में हैं इसकी कई मिसालें
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 7, 2019 07:19 AM2019-04-07T07:19:50+5:302019-04-07T07:19:50+5:30
1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्नी अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार अपने विश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में हुई वोटिंग में महज एक वोट से हारकर सत्ता से बाहर हो गई थी.
अब लोकसभा चुनाव एकदम सिर पर आ गए हैं तो मतदाता जागरूकता अभियानों की झड़ी-सी लग गई है. इन अभियानों में ऐसे लोग और संगठन भी ‘सक्रिय’ हैं जो अन्य दिनों में आमतौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों व चेतनाओं को लेकर कतई गंभीर नहीं रहते.
लेकिन उनकी ‘सक्रियता’ में पर्याप्त गंभीरता का अभाव है, जमीन पर उनके अभियानों का वांछित असर नहीं दिख रहा और कई उदासीन मतदाता पिछले चुनावों की ही तरह इस बार भी पूछ रहे हैं कि जब इतने लोग वोट दे ही रहे हैं तो उनके एक वोट देने या न देने से कौन-सा आसमान फट पड़ना है?
वे भूल जा रहे हैं कि 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्नी अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार अपने विश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में हुई वोटिंग में महज एक वोट से हारकर सत्ता से बाहर हो गई थी. दरअसल हुआ यह था कि तेजी से चले राजनीतिक घटनाक्र मों के बीच उसके सहयोगी दल अन्नाद्रमुक ने, जिसका नेतृत्व उन दिनों जयललिता के हाथों में था, अचानक समर्थन वापस ले लिया.
इसके बाद बहुमत परीक्षण के लिए लोकसभा में विश्वास का प्रस्ताव आया तो सरकार के प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 वोट पड़े.
देश के आम चुनावों में भी एक वोट से हार-जीत के कई वाकये घटित हो चुके हैं. 2004 में कर्नाटक की संथेरामहल्ली विधानसभा सीट के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी ध्रुवनारायण अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता दल (सेक्युलर) के ए. आर. कृष्णमूर्ति से केवल एक वोट से चुनाव जीते थे.
इस चुनाव में ध्रुवनारायण को 40,752 और कृष्णमूर्ति को 40,751 वोट मिले थे. उन दिनों आई खबरों के अनुसार मतदान के दिन कृष्णमूर्ति के ड्राइवर ने उनसे मतदान करने जाने की मोहलत मांगी, तो उन्होंने ङिाड़कते हुए उसे मना कर दिया था. जाहिर है कि वे इसके अफसोस से लंबे वक्त तक नहीं उबर पाए होंगे.
एक वोट से हार-जीत की दूसरी मिसाल राजस्थान विधानसभा के 2008 के चुनाव में उसकी नाथद्वारा सीट पर बनी, जब वहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सी. पी. जोशी भाजपा के कल्याण सिंह चौहान से एक वोट से हार गए. जोशी उन दिनों राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तो थे ही, राज्य के मुख्यमंत्नी पद के दावेदार भी थे.
मतगणना में चौहान को 62,216 मतदाताओं का समर्थन मिला जबकि जोशी को उनसे एक कम यानी 62,215 का. जोशी के लिए यह इस अर्थ में भी हाथ मलने वाली बात थी कि उनकी हार के साथ ही मुख्यमंत्नी पद की उनकी दावेदारी भी जाती रही.