कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: ऐसे में कैसे कर्तव्यनिष्ठ बनी रहे पुलिस?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 24, 2020 09:31 AM2020-07-24T09:31:18+5:302020-07-24T09:31:18+5:30
एक देश के तौर पर जब तक हम उसकी यह नियति नहीं बदलते, कैसे कह सकते हैं कि हमें अच्छा पुलिस तंत्न पाने का अधिकार है या कि हम उसके लिए डिजर्व करते हैं.
देश में पुलिस, वह राजधानी दिल्ली की हो या सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की, प्राय: अपनी करनी को लेकर आलोचना की शिकार होती रहती है.
पिछले दिनों इसकी मिसाल पहले उत्तरप्रदेश में कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्न के बिकरू गांव में दुर्दात विकास दुबे व उसके गुर्गो द्वारा आठ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या में नजर आई, फिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में तिलिस्म जैसी गिरफ्तारी के बाद रहस्यमय एनकाउंटर में उसके खुद के मारे जाने में.
पुलिस कर्मी मारे गए तो भी पुलिस की ही कमियां गिनाई गईं और उसने दुर्दात व उसके कई गुर्गो को मार डाला तो भी.
दूसरी ओर पुलिस कर्मियों को प्राय: शिकायत रहती है कि न उनकी कर्तव्यपरायणता की कदर की जाती है, न उन्हें संरक्षण दिया जाता है.
इसे गुजरात के सूरत शहर की महिला पुलिस सिपाही सुनीता यादव के मामले से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है, जिसे लॉकडाउन के तहत लगाए गए नाइट कर्फ्यू के दौरान राज्य के एक राज्यमंत्नी के बिना मास्क लगाए घूम रहे समर्थकों को रोकना खासा महंगा पड़ गया.
पहले मंत्नी के बेटे ने उस पर रौब झाड़ने की कोशिश की, फिर उसका साथी अभद्र व्यवहार पर उतर आया. राज्यमंत्नी से बात हुई तो उसने भी बेटे का ही पक्ष लिया, जबकि संबंधित पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर ने सुनीता को माफी मांग लेने और घर चली जाने का आदेश दे दिया.
उससे यह भी कहा गया कि उसकी ड्यूटी नाइट कफ्यरू तोड़ने वालों पर निगाह रखने के लिए नहीं बल्कि यह देखने के लिए लगाई गई थी कि कोई हीरा या टेक्सटाइल यूनिट न खुले.
भला हो सोशल मीडिया का कि उस पर मंत्नी के समर्थकों व बेटे से हुई सुनीता की बातचीत का आडियो वायरल होते ही लोग खुलकर उसे सपोर्ट करने लगे. तब मामले की जांच के आदेश दिए गए.
साफ है कि पुलिस की कर्तव्य परायणता के रास्ते की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि इस देश में इशारों पर नाचने का विरोध करने और महज कर्तव्यनिर्वहन में यकीन रखने वाली पुलिस किसी को भी अच्छी नहीं लगती. न पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारियों को, न सत्ताधीशों को और न ही उनकी नजदीकी का लाभ उठाने वाले प्रभुवर्गो को.
एक देश के तौर पर जब तक हम उसकी यह नियति नहीं बदलते, कैसे कह सकते हैं कि हमें अच्छा पुलिस तंत्न पाने का अधिकार है या कि हम उसके लिए डिजर्व करते हैं.