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कृपाशंकर चौबे का ब्लॉग: स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाया जाए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 1, 2019 05:48 IST

नई सरकार द्वारा नई स्वास्थ्य नीति को अंगीकार कर लक्ष्य का निर्धारण तभी सार्थक होगा जब पूरा देश स्वस्थ हो. अच्छे स्वास्थ्य का अभिप्राय समग्र स्वास्थ्य से है जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है.

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कृपाशंकर चौबे 

भारत के इतिहास में कदाचित पहली बार स्वास्थ्य संबंधी कारकों ने 17वीं लोकसभा के आम चुनाव को बहुत प्रभावित किया. स्वास्थ्य के क्षेत्न में किए गए कार्यो को चुनाव में जीत का मंत्न बनाया गया. उज्ज्वला योजना से होते हुए प्रधानमंत्नी भारतीय जनऔषधि परियोजना और उसी के रास्ते आयुष्मान भारत का मतदाताओं पर बहुत अनुकूल प्रभाव पड़ा. इसीलिए अब मोदी सरकार की दूसरी पारी से देश को पहले से अधिक उम्मीदें हैं. 

नई सरकार द्वारा नई स्वास्थ्य नीति को अंगीकार कर लक्ष्य का निर्धारण तभी सार्थक होगा जब पूरा देश स्वस्थ हो. अच्छे स्वास्थ्य का अभिप्राय समग्र स्वास्थ्य से है जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है. इसीलिए स्वास्थ्य का अर्थ केवल रोगमुक्त या कमजोरी मुक्त होना नहीं है, वरन् एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है.

स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के अनुसार अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं. अत: स्वस्थ होने का वास्तविक आशय अपने आप पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीवन जीने के स्वस्थ तरीकों को अपनाए जाने से है. हर नागरिक को स्वस्थ रहने का अधिकार है. इसीलिए मोदी सरकार और उसके स्वास्थ्य मंत्नी हर्षवर्धन से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वे स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किए जाने की तरफ आगे बढ़ें. नई सरकार से यह अपेक्षा भी स्वाभाविक है कि वह हर नागरिक को सस्ती दवा एवं सस्ता इलाज मुहैया कराए.

स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक तथा स्वस्थ भारत न्यास के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी को पत्न लिखकर दवाइयों की मूल्य निर्धारण की नीति को लेकर जांच की भी मांग की है, क्योंकि ड्रग-प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2012-13 के अनुसार दवाइयों की कीमतों को तय करने का मानक बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति को रखा गया है जबकि 2012 में भारत सरकार ने संसद में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि दवा कंपनियां 1100 फीसदी ज्यादा मुनाफा कमा रही हैं.

ऐसे में जब तक बाजार में उपलब्ध 1100 फीसदी की लिक्विडिटी को कम नहीं किया जाएगा, बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति इन कंपनियों को संगठित लूट की खुली छूट देती रहेगी. यह काम 2014 में मोदी सरकार आने के ठीक पहले बहुत ही चालाकी के साथ किया गया. इसीलिए स्वस्थ भारत अभियान ने इसकी जांच की मांग की है कि डीपीसीओ के ड्राफ्ट पर जो सुझाव आए थे, उन सुझावों में अधिकतर लोग बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति के खिलाफ थे, बावजूद इसके सरकार ने उनकी बात को बिना माने अपनी मर्जी से इसे लागू कैसे किया? वह कौन सी मजबूरी थी जिसके कारण सरकार ने स्टेक होल्डरों की बात को दरकिनार किया?

स्वस्थ भारत अभियान ने स्वास्थ्य शिक्षा की पढ़ाई एक विषय के रूप में शुरू करने, पैथी और बीमारी को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी हेतु एक सिंगल विंडो सूचना केंद्र बनाने का भी सुझाव दिया है. इन सुझावों की अनदेखी नहीं की जा सकती. ये सुझाव रचनात्मक हैं क्योंकि किसी भी देश की मजबूती में वहां की स्वास्थ्य एवं शिक्षा-नीति का अहम योगदान रहा है. अत: देश में प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ्य की पढ़ाई शुरू कर सामान्य ज्ञान के रूप में खुद को सेहतमंद बनाए रखने के लिए जो जरूरी है, उन तमाम बिंदुओं के बारे में छात्नों को शुरू से ही अवगत कराया जा सकता है.

बचावपरक स्वास्थ्य (प्रिवेंटिव हेल्थ) की ओर वह एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था अभी भी एलोपैथी के इर्द-गिर्द ही घूम रही है.  जबकि ऐसी तमाम बीमारियां हैं जिनका इलाज उन चिकित्सकों के पास नहीं होता. ऐसे में केंद्र सरकार को एक सूची जारी करनी चाहिए जिससे यह स्पष्ट हो कि किस बीमारी का इलाज आयुष में बेहतर है और किस बीमारी का इलाज एलोपैथी में बेहतर है. इससे देश की जनता में बीमारी और इलाज को लेकर जो भ्रम की स्थिति है, वह दूर हो सकेगी.

स्वास्थ्य को लेकर इतने विभाग, इतने संस्थान काम कर रहे हैं कि सही जानकारी प्राप्त करना एक आम इंसान के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में एक ऐसा सूचना तंत्न विकसित हो जो स्वास्थ्य संबंधित तमाम जानकारियों को एक प्लेटफॉर्म से उपलब्ध कराए.लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने हेतु प्रधानमंत्नी भारतीय जनऔषधि परियोजना को और विस्तारित करने की जरूरत है. इसके लिए पहले देश की प्रत्येक पंचायत में एक जनऔषधि केंद्र खुले. इसके लिए अगर उस पंचायत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है तो वहां और जहां नहीं है तो सरकारी स्कूल के प्रांगण में भी इस केंद्र को खोला जा सकता है. 

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