कपिल सिब्बल का ब्लॉग: हर हाल में बचाए रखनी होगी आजादी, आज के दौर में चुप्पी विकल्प नहीं

By कपील सिब्बल | Published: February 1, 2023 10:12 AM2023-02-01T10:12:23+5:302023-02-01T10:14:36+5:30

भारत के लोगों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए. आज मैं अपने लाखों लोगों की खामोशी देख रहा हूं, एक ऐसी खामोशी जो मुझे परेशान करती है.

Kapil Sibal's blog: India and its institutions freedom has to be preserved at all costs | कपिल सिब्बल का ब्लॉग: हर हाल में बचाए रखनी होगी आजादी, आज के दौर में चुप्पी विकल्प नहीं

कपिल सिब्बल का ब्लॉग: हर हाल में बचाए रखनी होगी आजादी, आज के दौर में चुप्पी विकल्प नहीं

अपने गणतंत्र के 74वें वर्ष का जश्न मनाते समय हमें उन लोगों की याद को संजोना चाहिए जिन्होंने हमें कठिन संघर्ष करके आजादी दिलाई. हमें अपने गणतंत्र के संविधान को भी संजोना चाहिए, जिसे यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी से तैयार किया गया है कि हमारी संस्थाएं शासक वर्ग के अनुचित हस्तक्षेप से हमारी रक्षा करें. 

अंतत: तो स्वतंत्रता पुरुषों और महिलाओं के दिलों में बसती है, जिसके बारे में अमेरिका में एक न्यायाधीश ने कहा था कि अगर यह पुरुषों और महिलाओं के दिलों में मर जाए, तो कोई भी संविधान, कोई कानून इसे नहीं बचा सकता है.

इसलिए, भारत के लोगों को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए. आज मैं अपने लाखों लोगों की खामोशी देख रहा हूं, एक ऐसी खामोशी जो मुझे परेशान करती है. अधिकांश लोग इसलिए चुप हैं क्योंकि उनके पास असली आवाज नहीं है. दूसरे लोग चुप हैं क्योंकि वे डरे हुए हैं. मध्यम वर्ग चुप है क्योंकि वह चुप रहना पसंद करता है. 

मध्यम वर्ग का बड़ा तबका अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए अनिच्छुक है क्योंकि यथास्थिति उसके लिए तब तक अधिक आरामदायक विकल्प है जब तक उसकी शांति भंग नहीं होती है.

जहां तक हमारी संस्थाओं का संबंध है, उनके लिए संवैधानिक रूप से राजनीतिक वर्ग के हस्तक्षेप से दूर रहना अनिवार्य है. हालांकि, ये संस्थाएं भी खामोश नजर आ रही हैं. वास्तव में उनमें से कुछ शासक वर्ग को खुश करने के लिए झुक जाती हैं. चुनाव आयोग, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना जिसका संवैधानिक दायित्व है, सरकार के सहयोगी के रूप में नजर आता है. 

आज, इसकी संस्थागत अखंडता संदिग्ध है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में इसकी अक्षमता, सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी से संबंधित लोगों से निपटने में इसकी हिचकिचाहट (जो चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का खुले तौर पर उल्लंघन करते हैं) चुनावी अनियमितताओं से निपटने के दौरान तटस्थ रूप से कार्य करने की उसकी अनिच्छा का प्रमाण है. जिस तरह से यह हाल ही में मुफ्त की रेवड़ी पर बहस को आगे बढ़ाने के लिए सहमत हुआ- राजनीतिक दलों से अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए कहा- वह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इसके रुख के विपरीत था. 

एक हलफनामे में, उसने कहा कि चुनाव के दौरान ‘मुफ्त उपहार’ से संबंधित वादों के मुद्दों से निपटने में इसे संवैधानिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह इन मुद्दों से निपटने के लिए उपयुक्त मंच नहीं है लेकिन जब शासक वर्ग के हितों की रक्षा करने की बात आती है तो इसका समझौतावादी रवैया गंभीर चिंता का विषय है.

हमारे जांच अधिकारियों की स्वतंत्रता, चाहे वह प्रवर्तन निदेशालय हो, केंद्रीय जांच ब्यूरो या राष्ट्रीय जांच एजेंसी, अक्सर उन लोगों द्वारा बाधित की जाती है जो इन एजेंसियों के प्रमुख हैं, खासकर उन मामलों में जहां शासक वर्ग के हित दांव पर हैं. केवल एक स्वतंत्र जांच एजेंसी ही यह सुनिश्चित कर सकती है कि उसकी मशीनरी का उपयोग न्याय के लिए किया जाए, न कि सरकार के हित के लिए. पत्रकारों, आम नागरिकों, छात्रों, शिक्षकों, राजनीतिक विरोधियों, नौकरशाहों और उन लोगों को जिन्हें सत्ता पक्ष की विचारधारा से जुड़ा हुआ नहीं माना जाता, उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया जाता है और उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल किया जाता है. जांच चुनिंदा रूप से शुरू की जाती है और सत्तारूढ़ दल से संबंधित लोगों के खिलाफ सबूत उपलब्ध होने के बावजूद उन्हें बचाया जाता है.

राज्यपाल शासक वर्ग के प्रवक्ता बन गए हैं. हमने राज्यपालों को बड़े पैमाने पर दलबदलुओं को शपथ दिलाते देखा है जिनके खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं लंबित हैं. हमने राज्यपालों को संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करते देखा है, जिसके परिणामस्वरूप अदालत ने उन्हें उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में उनके कार्यों के लिए फटकार लगाई.

हम अपने शिक्षण संस्थानों को धीरे-धीरे शासक वर्ग की विचारधारा से संचालित होते देख रहे हैं. यह उन लोगों की चुनिंदा नियुक्तियों का सहारा लेकर किया जा रहा है जो किसी विशेष विचारधारा की वकालत करते हैं या उस विचारधारा के प्रति आत्मीयता रखते हैं.

स्वतंत्रता के अंतिम गढ़, अर्थात न्यायपालिका पर हमला हो रहा है. जब शासक वर्ग ने अन्य सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है, अगर कोई हमारी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है तो वह न्यायपालिका है.

एक बार जब ये संस्थान उन लोगों द्वारा नष्ट या संकुचित कर दिए जाएंगे जो उन्हें संचालित करते हैं, तो स्वतंत्रता खो जाएगी. हम ऐसा नहीं होने दे सकते. हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जिन लोगों ने हमारी आजादी के लिए कड़ा संघर्ष किया, उनका वह संघर्ष व्यर्थ नहीं गया. जब हम अपना गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, तो यह कहने की नौबत न आए कि हम नागरिकों ने गणतंत्र को विफल कर दिया. हम इसे वहन नहीं कर सकते. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, एक ऐसी दुनिया जिसमें आजादी पहले से ही खतरे में है.

Web Title: Kapil Sibal's blog: India and its institutions freedom has to be preserved at all costs

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