Kanhaiya Kumar: 'देशभक्त' छात्र से 'देशद्रोही' छात्रनेता बनने तक का सफ़र!
By मोहित सिंह | Updated: May 11, 2018 15:57 IST2018-04-30T13:00:00+5:302018-05-11T15:57:20+5:30
आज सुबह खबर आई कि CPI ने JNU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को राष्ट्रीय परिषद में जगह दे दी है और कन्हैया कुमार अब एक ऑफिसियल राजनीतिज्ञ बन गए हैं। इस समाचार को सुनकर बस याद आया JNU का वो विवाद।

Kanhaiya Kumar: Journey of a JNU student from a proud Indian to an Anti-National
2007 दिल्ली, यमुना नदी का किनारा, जमा थे बहुत सारे छात्र एक inter-university cultural meet के लिए। छात्रों को एक टॉपिक दिया गया I am proud to be an Indian, एक छात्र ने दिल से दिया वो भाषण और जीत लिया वहाँ आए सभी छात्रों का दिल, अफ़सोस वो जीता तो नहीं लेकिन छोड़ गया एक याद सबके दिलों पर। कोई और नहीं था वो देशभक्त छात्र, वो था आज का देशद्रोही कन्हैया कुमार।
आख़िर कौन है कन्हैया कुमार? क्या है इसका बैकग्राउंड और क्या ये सच में एक देशद्रोही है? ये अभी सिद्ध नहीं हुआ है और किसी को भी एक इंसान को बेरहमी से मारने का अधिकार क़ानून ने नहीं दिया है।
हम बात कर रहे थे कन्हैया की, कन्हैया के लिए देशप्रेमी से देशद्रोही तक का सफर थोड़ा लम्बा और संघर्ष से भरा हुआ है। क्या बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से गाँव बीहट के एक आगनवाड़ी सेविका मीना देवी और एक अपंग पिता जयशंकर सिंह का ये 28 साल का बेटा, अपने पढ़ाई का साधन जुटाने के अलावा देशद्रोह के बारे में सोच भी सकता है?
कन्हैया ने अपनी शुरुआती पढ़ाई RKC High School, Barauni से की और 2002 में पटना, बिहार में College of Commerce ज्वाइन कर लिया। उसकी अगली मंजिल JNU में एडमिशन था जो उसको मिला और उसका अच्छा वक़्त शुरू हुआ चाहे एक बहुत थोड़े समय के लिए ही सही।
बिहार से 1200 किमी की दूरी तय करके कन्हैया JNU से डॉक्टरेट करने आया था, किसी आतंकवादी संगठन में शामिल होने तो बिल्कुल नहीं। उसकी PhD का टॉपिक ‘Social transformation in South Africa’ था ‘आतंकवाद या भारत विरोध नहीं’ फिर कन्हैया पिछले साल JNUSU का president बना दिया गया, एक सिंपल सा लड़का जो लड़ रहा था अपनी गरीबी से बिना अपने भाग्य को कोसे, अपनी पसंदीदा हुनर ढपली बजाने और कुछ भोजपुरी गानों के साथ. रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन और दुष्यंत कुमार की कविताओं का शौकीन, ये छात्र सपने देख रहा था अपने दिन फिरने का।
अचानक 9 फ़रवरी 2016 को सब कुछ बदल गया, कन्हैया को अपने घर के हालत बदलने थे, अपनी किस्मत बदलनी थी, अपना संघर्ष बदलना था और वक़्त ने उसका भविष्य बदल दिया। JNU में छात्रों की अगुवाई करने वाला एक नेता, सलाखों के पीछे फेंक दिया गया। लोगों की घृणा, अत्याचार और गालियों को सहते हुए अब वो वास्तविक स्वतंत्रता के मायने खोज रहा है, शायद अकेले में अपना पसंदीदा गाना गाता हुआ...
“दिल का हाल सुने दिलवाला, सीधी सी बात ना मिर्च मसाला कह के रहेगा कहने वाला”