देश को आर्थिक मंदी के दौर से बाहर निकालना बहुत जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 11, 2019 07:56 AM2019-08-11T07:56:56+5:302019-08-11T07:56:56+5:30
हा ल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों के साथ वार्ता करके इस समय देश के सामने जो आर्थिक सुस्ती का दौर है उसकी राह निकालने की कवायद शुरू की है
(लेखक-जयंतीलाल भंडारी)
हा ल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों के साथ वार्ता करके इस समय देश के सामने जो आर्थिक सुस्ती का दौर है उसकी राह निकालने की कवायद शुरू की है. देश में पिछले एक वर्ष से आर्थिक सुस्ती का जो दौर चल रहा है उसमें और तेजी आती जा रही है और इसका देश की अर्थव्यवस्था की गतिशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. निश्चित रूप से वर्ष 2018 की विश्व बैंक रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था का पिछड़ना चिंताजनक है.
वर्ष 2018 में देश के आर्थिक परिदृश्य पर तेजी से बढ़ती हुई चार अहम आर्थिक चुनौतियां संपूर्ण अर्थव्यवस्था को चिंतित करते हुए दिखाई दीं. एक, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आर्थिक संकट को बढ़ाते हुए दिखाई दीं. दो, डॉलर की तुलना में रुपए की कीमत में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुई, रुपए की तुलना में अमेरिकी डॉलर का मूल्य 70 रुपए पर पहुंच गया. परिणामस्वरूप रुपए की घटती हुई कीमत और महंगाई बढ़ने से अर्थव्यवस्था की परेशानियां बढ़ीं. तीन, देश का राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ा और चार, आयात बढ़ने और निर्यात पर्याप्त नहीं बढ़ने से विदेशी मुद्रा कोष में कमी आई. ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भी स्थिति निराशाजनक रही. इन्हीं कारणों से अर्थव्यवस्था की गति सुस्त रही.
सचमुच यह विचारणीय है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट 2018 के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था आगे बढ़ने के बजाय पिछड़ कर सातवें स्थान पर आ गई है अतएव सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती अर्थव्यवस्था को तेजी देने की है, जिसकी चाल पिछले वर्ष 2018 से सुस्त सी पड़ गई है और अर्थव्यवस्था की यह सुस्ती अभी भी बनी हुई है. हाल ही में एक अगस्त को रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आर्थिक विकास दर का अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है. विकास दर में कमी के लिए क्रिसिल ने मानसून के पर्याप्त नहीं होने और वैश्विक मंदी को प्रमुख कारण बताया है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर सात फीसदी कर दिया है. इसी तरह भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वृद्धि दर अनुमान घटाकर सात फीसदी कर दिया है.
ऐसे में अब मोदी सरकार को आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाने के लिए नई रणनीति बनानी होगी. नई रणनीति के तहत आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाना होगा. वैश्विक कारोबार में वृद्धि करनी होगी. टैक्स के प्रति मित्रवत कानून को नई राह देनी होगी. जीएसटी को सरल तथा प्रभावी बनाना होगा. ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक सुनिश्चित करनी होगी.