डॉ. सत्यवान सौरभ का ब्लॉगः बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित हो

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 4, 2020 12:50 PM2020-06-04T12:50:32+5:302020-06-04T12:50:32+5:30

 यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन  फ्रॉम  सेक्सुअल  ऑफेंसेस  एक्ट  (पॉक्सो) का संक्षिप्त नाम है. इस अधिनियम को 2012 में बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू किया गया था.

International Day of Innocent Children Victims of Aggression: Ensure accountability for violations of children's rights | डॉ. सत्यवान सौरभ का ब्लॉगः बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित हो

प्रतीकात्मक तस्वीर

डॉ. सत्यवान सौरभ

अंतरराष्ट्रीय दिवस जनता को चिंता के मुद्दों पर शिक्षित करने, वैश्विक समस्याओं को संबोधित करने, राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधन जुटाने, मानवता की उपलब्धियों को मनाने और सुदृढ़ करने के अवसर हैं. अंतरराष्ट्रीय दिनों का अस्तित्व संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से पहले है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें एक शक्तिशाली वकालत उपकरण के रूप में अपनाया है. 19 अगस्त 1982 को फिलिस्तीन के सवाल पर एक विशेष सत्र में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने प्रत्येक वर्ष 4 जून को ‘मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ मनाने का फैसला किया.  इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में बच्चों की पीड़ा  को स्वीकार करना है जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण का शिकार हैं. यह दिन बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. इसका कार्य बाल अधिकारों पर निर्देशित है.

वर्ष 2012 में भारत में  पॉक्सो के लागू होने के बाद भी बाल उत्पीड़न संबंधी अपराधों के मामलों में वृद्धि को देखते हुए वर्ष 2019 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधनों के साथ ऐसे अपराधों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है. इस अधिनियम में किए गए हालिया संशोधनों के तहत कठोर सजा के प्रावधानों के साथ अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायों पर विशेष ध्यान दिया गया है.     
 
 यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन  फ्रॉम  सेक्सुअल  ऑफेंसेस  एक्ट  (पॉक्सो) का संक्षिप्त नाम है. इस अधिनियम को 2012 में बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू किया गया था. इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है. इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव नहीं है.  

बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरूकता और क्षमता निर्माण के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिए आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए कहा गया है, जिससे उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक किया जा सके. इस संशोधन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है. नए नियमों के अनुसार, यदि कोई भी व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित कोई फाइल प्राप्त करता है या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के बारे में जानता है जिसके पास ऐसी फाइल हो या वह इन्हें अन्य लोगों को भेज रहा हो या भेज सकता है, उसके संबंध में विशेष किशोर पुलिस इकाई या साइबर क्राइम यूनिट  को सूचित करना चाहिए. 

नियम के अनुसार, ऐसे मामलों में जिस उपकरण (मोबाइल, कम्प्यूटर आदि) में पोर्नोग्राफिक फाइल रखी हो, जिस उपकरण से प्राप्त की गई हो और जिस आॅनलाइन प्लेटफार्म पर प्रदर्शित की गई हो सबकी विस्तृत जानकारी दी जाएगी. ‘बाल संरक्षण नीति’ के नए नियमों के तहत राज्य सरकारों को बाल उत्पीड़न के खिलाफ ‘शून्य-सहिष्णुता’ के सिद्धांत पर आधारित एक ‘बाल संरक्षण नीति’ तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं.

‘बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020’ देशभर में 9 मार्च, 2020 से लागू हो गया है. बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम के माध्यम से पहली बार ‘पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’, यौन हमला और यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया था. इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है जब अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो.

वर्ष 2019 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 के माध्यम से ‘गंभीर यौन प्रताड़ना’ के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया. हाल के वर्षों में, कई संघर्ष क्षेत्रों में, बच्चों के खिलाफ उल्लंघन की संख्या में वृद्धि हुई है. संघर्ष से प्रभावित देशों और क्षेत्रों में रहने वाले 250 मिलियन बच्चों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. हिंसक अतिवादियों द्वारा बच्चों को निशाना बनाने से बचाने, अंतरराष्ट्रीय मानवीय और मानव अधिकार कानून को बढ़ावा देने और बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने के और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए.

Web Title: International Day of Innocent Children Victims of Aggression: Ensure accountability for violations of children's rights

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