संकट में पड़ती जीवन की विविधता
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 22, 2025 07:30 IST2025-05-22T07:29:25+5:302025-05-22T07:30:31+5:30
देश के पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मी क्षेत्र जैसे क्षेत्र ‘हॉटस्पॉट्स’ के रूप में चिन्हित किए गए हैं

संकट में पड़ती जीवन की विविधता
कुमार सिद्धार्थ
जैव विविधता केवल पौधों और जानवरों की गिनती भर नहीं है, यह धरती पर जीवन की विविधता और संतुलन की नींव है. आज जबकि जलवायु संकट, वनों की कटाई और मानवीय दखल प्राकृतिक तंत्र को अस्थिर कर रहे हैं, जैव विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. हालिया शोध यह भी संकेत दे रहे हैं कि जैव विविधता में हस्तक्षेप नए संक्रमणों का कारण बन सकता है.
हर वर्ष 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है, लेकिन क्या ये तारीखें और संकल्प धरातल पर असर डाल पा रहे हैं? 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी, तब वैज्ञानिकों ने चेताया कि वन्य क्षेत्रों में मानवीय दखल और जैव विविधता से छेड़छाड़ ही ऐसे संक्रमणों के फैलाव का बड़ा कारण है.
संयुक्त राष्ट्र ने 1993 में सतत विकास की दिशा में जो रणनीति बनाई थी, उसमें जैव विविधता के संरक्षण को केंद्र में रखा गया था. इस संकल्प का उद्देश्य था कि दुनिया भर के पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखते हुए आर्थिक विकास के नए अवसर तलाशे जाएं. लेकिन तमाम घोषणाओं व शिखर सम्मेलनों के बावजूद जैव विविधता का संकट गहराता गया है.
भारत विश्व के उन 17 देशों में है जहां सबसे अधिक जैव विविधता पाई जाती है. मात्र 2.4% भू-भाग वाले भारत में दुनिया की 8% प्रजातियां पाई जाती हैं. इसमें 45,000 से अधिक पादप और लगभग 91,000 जंतु प्रजातियां शामिल हैं. भारत की विविध जलवायु, भौगोलिक परिदृश्य, और सांस्कृतिक विविधता ने एक समृद्ध जैव विविधता को पनपने का अवसर दिया है.
भारत में 44% जमीन पर खेती होती है और 23% भूमि वनाच्छादित है. लेकिन तेजी से हो रहा शहरीकरण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन और जीवों के प्राकृतिक आवासों का ह्रास इस संपदा को नष्ट कर रहा है.
भारत में 900 से ज्यादा प्रजातियां संकटग्रस्त हैं और समुद्री पारिस्थितिकी में मौजूद लगभग 1,200 प्रजातियां तत्काल संरक्षण की मांग कर रही हैं. भारतीय वैज्ञानिकों के शोध भी यही कहते हैं कि जैव विविधता में असंतुलन, मानव-वन्यजीव संपर्क और भूमि उपयोग में बदलाव नए संक्रमणों का कारण बन सकते हैं. देश के पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मी क्षेत्र जैसे क्षेत्र ‘हॉटस्पॉट्स’ के रूप में चिन्हित किए गए हैं - ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां जैव विविधता अत्यधिक तो है, परंतु खतरे में भी है.
वर्ष 2030 तक के वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जैव विविधता का संरक्षण अनिवार्य है. हमें अपनी जीवनशैली, नीतियों और विकास के मॉडल को लेकर इस दिशा में पुनर्चिंतन करना होगा. जैव विविधता कोई दूरस्थ अवधारणा नहीं, बल्कि धरती पर जीवन के ताने-बाने का मूल आधार है – इसका संरक्षण हमारी साझी जिम्मेदारी है.