डॉ. राजेंद्र सिंह का ब्लॉग: भारतीयों का साझा भविष्य और पर्यावरण की रक्षा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 6, 2019 07:36 IST2019-04-06T07:36:10+5:302019-04-06T07:36:10+5:30
2018 के चुनाव में किसान कर्ज मुक्ति नहीं बल्किकर्ज माफी मुद्दा बना रहा. 2019 का चुनाव भी ऐसा ही होगा. पर्यावरण बिगाड़ने वाले वोट खरीदेंगे. पानी व हवा को दूषित करने वाले वोट खरीदने वाले का काम करेंगे

प्रतीकात्मक तस्वीर
राजनीतिक दल राज्य सत्ता हथियाने में जुटे हैं. किसी भी राजनीतिक दल का घोषणापत्न पानी, पर्यावरण या जलवायु परिवर्तन के संकट पर कुछ भी नहीं बोलता है. यह केवल वोट जुटाने की तिगड़म लगाते रहते हैं.
2018 के चुनाव में किसान कर्ज मुक्ति नहीं बल्किकर्ज माफी मुद्दा बना रहा. 2019 का चुनाव भी ऐसा ही होगा. पर्यावरण बिगाड़ने वाले वोट खरीदेंगे. पानी व हवा को दूषित करने वाले वोट खरीदने वाले का काम करेंगे. जलवायु बिगड़ने से बेमौसम बरसात से मिट्टी कटकर बहती रहेगी. यही प्रभाव हमारी धरती पर बाढ़-सुखाड़ लेकर आता रहेगा. बाढ़-अकाल-राहत के नाम पर भारत का खजाना खाली होता रहेगा.
राजनेताओं के चहेते राहतकोष, जलप्रबंधन व जलवायु प्रबंधन योजना बनाने के काम नाम पर अपनी जेब भरते रहेंगे. ‘नमामि गंगे’ जैसी प्रदूषण नियंत्नण योजनाएं बनाते रहेंगे. राजनीतिक दलों के घोषणापत्न दिखावा करके वोट लेने वाला भ्रमजाल फैलाते रहेंगे. जो जितना ज्यादा झूठ सफाई से बोलेगा वह उतने ही वोटों की कमाई अपने लिए कर लेगा.
किसी भी राजनीतिक दल में भविष्य रक्षा हेतु पर्यावरण की चिंता नहीं है. भारतीय आस्था-संस्कृति और प्रकृति रक्षा की दुहाई देने वाले दल ने तो हमारी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, एकता-अखंडता का जाप करने वाले तीन संत जो कि धर्म व संस्कृति की रक्षा में जुटे थे, गंगाजी की अविरलता हेतु गंगा सत्याग्रह कर रहे थे, उन्हें जान से मरवा दिया. एक को गुम करवा दिया है. एक 67 दिन से आमरण उपवास पर है. उनकी गुहार सुनी नहीं जा रही है. विपक्ष ने भी गंगाजी पर मौन धारण कर रखा है. पर्यावरण रक्षा के लिए ऐतिहासिक विरासत वाली पार्टी भी चुनाव में पर्यावरणीय चेतना से अपनी जीत का रास्ता नहीं खोलती है.
कर्जदार बनकर ‘घी पीना’ भारत में अच्छा नहीं मानते थे. आज कर्ज लेकर घी पीने के हम आदी बन रहे हैं. अब इससे मुक्ति का विचार करने वाला दल ही राजकर्ता बना है. भारत का किसान कर्जदार नहीं बने ऐसी प्रणाली बनाएं.
राजनीतिक दलों को भारतीय आस्था बचाए रखना संवैधानिक तौर पर जरूरी लगता हो तो भी साङो भविष्य के शुभ (पर्यावरण रक्षा) के बिना यह सब नहीं करना चाहिए. भारतीय आस्था पर्यावरण हेतु शुभ की चेतना जगाती है. आज के राजनीतिक दल केवल लाभ की रणनीति बनाते हैं और चुनावी राजनीति करते हैं. इसीलिए इनके एजेंडे में लालची विकास के नारे हैं. स्थायी विकास कहीं नहीं दिखता. भारत में लालची विकास ने विस्थापन और प्रकृति का विनाश ही किया है. विकास और समृद्धि के बीच अंतर है. यह इन्हें समझ नहीं आता है. लालची सपनों का भारत बनाने में जुटे हैं. परिणामस्वरूप प्रदूषण रात-दिन बढ़ रहा है. हमारे प्रांतों की सभी राजधानियां इस विकास के विनाश की शिकार हैं.
देश की राजनीतिक राजधानी अब धुएं से दूषित हो गई है. आर्थिक राजधानी की सभी नदियां नाला बन गई हैं. ज्ञान की राजधानी काशी में भारत की पहली पहचान गंगा को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया है. कहते माई हैं, लेकिन मैला ढोने वाली खच्चर गाड़ी में बदल दिया है. अब हमारी माई को भी राजनेताओं ने कमाई का साधन बना लिया है.
पटना, पुणो, मुंबई, चेन्नई सभी बाढ़ की चपेट में आ गए हैं. जम्मू में ङोलम ने पहाड़ पर बाढ़ ला कर हमें डरा दिया है. राजनेताओं ने झूठ से डरा कर भ्रमित करके अपना उल्लू सीधा करना सीख लिया है.
प्रतिदिन नए राजनीतिक दल बन रहे हैं. नए राजनेता उभर रहे हैं. नए अखाड़े और नए योद्धा तो हम प्रतिदिन पैदा कर रहे हैं लेकिन पुराने दलों में पड़कर कोई सुधार की सूची बनाता नहीं दिखता है, क्योंकि राजनीतिक दलों को राजनेता अपनी जागीर मानते हैं. भारत का लोक वोट तो देता है लेकिन यह सत्ता उसे झूठ की परख नहीं होने देती है. जब तक झूठ का पता चलता है तब तक राजा अपना राजकाल पूरा चला लेता है. न्याय प्रणाली से आस्था डगमगा रही है. यह भी राजनेताओं ने ही कराया है. मैं राजनीतिक दलों पर दोष नहीं मढ़ रहा हूं. आज तो हमारे नेता और दल ऐसा करके गौरव पा रहे हैं. भय और असत्य का राज है. इससे मुक्ति का कोई उपाय नहीं सोचता है. हथियार से मारने के मुकाबले आज प्रदूषण से मारने वाले के खिलाफ सामान्य मुकदमे कर उन्हें माफ कराने का काम राजनेता कर रहे हैं.
हमें ऐसे लोगों को राज चलाने की जिम्मेदारी देनी चाहिए जिनका जीवन साझा है, जो साझा भविष्य का शुभ काम करने में जीवन लगा रहे हैं. ऐसे दलों को ही अब आगे लाना जरूरी है. अब नए दल बनना बंद हो. जो जलवायु अनुकूलन के काम करे बस उसी को वोट देना चाहिए. चुनाव से पहले जो गंगा जैसा स्वयं पवित्न बनने का संकल्प सुनाता हो, अविरलता की दुहाई देता हो, लेकिन नेता बनने के बाद गंगा मां की अविरलता-निर्मलता के लिए काम करवाने वालों को मारता हो, वैसे को नेता न बनाएं.