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ब्लॉग: भारतीय सेना है विश्व की चौथी सबसे ताकतवर सेना

By योगेश कुमार गोयल | Updated: January 15, 2024 10:55 IST

भारतीय सेना की ताकत निरंतर भागीदारी बढ़ रही है तथा इसे और ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए सेना में लगातार अत्याधुनिक सैन्य साजो-सामान शामिल किए जा रहे हैं। चूंकि, दुनिया अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चौथी औद्योगिक क्रांति में प्रवेश कर चुकी है।

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ठळक मुद्देभारतीय सेना की ताकत निरंतर बढ़ रही हैग्लोबल फायरपावर द्वारा जारी की गई सूची में भारत को चौथे पायदान पर रखा गया हैइस लिस्ट में दूसरे पर रूस और तीसरे स्थान पर चीन है।

भारतीय सेना की ताकत निरंतर बढ़ रही है तथा इसे और ज्यादा ताकतवर बनाने के लिए सेना में लगातार अत्याधुनिक सैन्य साजो-सामान शामिल किए जा रहे हैं। चूंकि, दुनिया अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चौथी औद्योगिक क्रांति में प्रवेश कर चुकी है, इसलिए भारतीय थल सेना भी लगातार अपने हथियारों तथा उपकरणों को आधुनिक कर रही है और ऐसी योजनाएं भी बना रही है, जिससे सेना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी व्यापक उपयोग किया जा सके।

ग्लोबल फायरपावर द्वारा जारी की गई 2023 की दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं की सूची में भारत को चौथे पायदान पर रखा गया है, जबकि पहले पायदान पर अमेरिका, दूसरे पर रूस और तीसरे स्थान पर चीन है। पिछले साल भी भारत इस सूची में चौथे स्थान पर ही था।

ग्लोबल फायरपावर ने 'सैन्य ताकत सूची 2023' तैयार करने के लिए दुनियाभर की सेनाओं के 60 अहम पैमानों का आकलन किया और सैन्य इकाइयों की संख्या, वित्तीय हालात से लेकर रसद क्षमताओं और भूगोल तक की श्रेणियों के साथ प्रत्येक राष्ट्र का स्कोर निकाला। 

इस रिपोर्ट में 145 देशों को शामिल किया गया है। 2023 की सूची में 5वें पायदान पर यूके, छठे पर दक्षिण कोरिया, 7वें पर पाकिस्तान, 8वें पर जापान, 9वें पर फ्रांस और 10वें पायदान पर इटली है। ग्लोबल फायरपावर के मुताबिक, दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर भारतीय सेना के पास करीब 14.44 लाख सक्रिय सैन्यकर्मी, 538 लड़ाकू विमान, 10 स्क्वाड्रन हेलिकॉप्टर और 12800 तोपखाना भी हैं। मिसाइलों के मामले में भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है।

इस वर्ष 15 जनवरी को थल सेना के अदम्य साहस, जांबाज सैनिकों की वीरता, शौर्य और उनकी शहादत को याद करते हुए 76वां भारतीय सेना दिवस मना रहे हैं। प्रतिवर्ष 15 जनवरी को ही यह दिवस मनाए जाने का विशेष कारण यही है कि आज ही के दिन 1949 में लेफ्टिनेंट जनरल के.एम. करियप्पा भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ बने थे। उन्होंने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान संभाली थी। 

जनरल फ्रांसिस बुचर भारत के आखिरी ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ थे। करियप्पा को ही भारत-पाक आजादी के समय दोनों देशों की सेनाओं के बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 1947 में उन्होंने भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया था। दूसरे विश्व युद्ध में बर्मा में जापानियों को शिकस्त देने के लिए उन्हें प्रतिष्ठित सम्मान 'ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर' दिया गया था। 1953 में वे भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए और 94 वर्ष की आयु में 1993 में उनका निधन हुआ।

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