प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: सुरक्षा परिषद में भारत को जगह मिलनी ही चाहिए

By प्रमोद भार्गव | Published: September 13, 2023 02:39 PM2023-09-13T14:39:36+5:302023-09-13T14:40:59+5:30

मोदी ने ‘एक भविष्य’ सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि यह प्रकृति का नियम है कि जो व्यक्ति और संस्था समय के साथ स्वयं में बदलाव नहीं लाते हैं, वह अपना वजूद खत्म कर देते हैं.

India must get a place in the Security Council | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: सुरक्षा परिषद में भारत को जगह मिलनी ही चाहिए

फाइल फोटो

Highlightsप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर जोर दिया.संयुक्त राष्ट्र को गंभीर आत्ममंथन की जरूरत के साथ पर्याप्त सुधारों की दरकार है.चीन के अलावा वीटो की हैसियत अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस रखते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ‘विश्व को बेहतर भविष्य की ओर ले जाने के लिए आवश्यक है कि दुनिया की व्यवस्थाएं वास्तविकताओं के अनुकूल होनी चाहिए.’ मोदी ने ‘एक भविष्य’ सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि यह प्रकृति का नियम है कि जो व्यक्ति और संस्था समय के साथ स्वयं में बदलाव नहीं लाते हैं, वह अपना वजूद खत्म कर देते हैं.

यह समय की मांग है कि प्रत्येक वैश्विक संस्था को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए समय के अनुरूप सुधार करना जरूरी है. इसी सोच के साथ हमने अफ्रीकन यूनियन को जी20 का स्थायी सदस्य बनाने की पहल की है. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय का विश्व आज बहुत बदल गया है. तब सिर्फ 51 संस्थापक सदस्य देश थे. लेकिन आज इसमें शामिल देशों की संख्या 200 हो चुकी है.

इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य देशों की संख्या उतनी ही है, जितनी इसकी स्थापना के समय थी. जबकि दुनिया बहुत बदल चुकी है. परिवहन, संचार, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे हर क्षेत्र का कायाकल्प हो चुका है. ये नई वास्तविकताएं हमारे नए वैश्विक ढांचे में दिखनी चाहिए.

इसलिए आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है? साफ है, संयुक्त राष्ट्र को गंभीर आत्ममंथन की जरूरत के साथ पर्याप्त सुधारों की दरकार है.

नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र की कार्य-संस्कृति पर प्रश्न-चिन्ह लगाकर नसीहत दी है कि यदि यह वैश्विक संस्था अपने भीतर समयानुकूल सुधार नहीं लाती है तो कालांतर में महत्वहीन होती चली जाएगी और फिर इसके सदस्य देशों को इसकी जरूरत ही नहीं रह जाएगी. परिषद में स्थायी सदस्यता पाने के लिए भारत के दावे को अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस व रूस समेत कई देश अपना समर्थन दे चुके हैं. लेकिन चीन के वीटो पावर के चलते भारत परिषद का स्थायी सदस्य नहीं बन पा रहा है.

चीन के अलावा वीटो की हैसियत अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस रखते हैं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की उम्र 75 वर्ष से अधिक हो चुकने के बावजूद इसके मानव कल्याण से जुड़े लक्ष्य अधूरे हैं. इसकी निष्पक्षता भी संदिग्ध है. इसीलिए वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापित करने और आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने में नाकाम रहा है.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद शांतिप्रिय देशों के संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का गठन हुआ था. इसका अहम मकसद भविष्य की पीढ़ियों को युद्ध की विभीषिका और आतंकवाद से सुरक्षित रखना था. इसके सदस्य देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन को स्थायी सदस्यता प्राप्त है.

याद रहे, चीन जवाहरलाल नेहरू की अनुकंपा से ही सुरक्षा परिषद का सदस्य बना था. जबकि उस समय अमेरिका ने सुझाया था कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में नहीं लिया जाए और भारत को सुरक्षा परिषद की सदस्यता दी जाए. लेकिन अपने उद्देश्य में परिषद को पूर्णतः सफलता नहीं मिली. भारत का दो बार पाकिस्तान और एक बार चीन से युद्ध हो चुका है.

अमेरिका और रूस के जबरन दखल के चलते इराक और अफगानिस्तान युद्ध की ऐसी विभीषिका के शिकार हुए कि आज तक उबर नहीं पाए हैं. इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध एक नहीं टूटने वाली कड़ी बन गया है.

रूस और यूक्रेन के बीच पिछले डेढ़ साल से युद्ध चल रहा है. लेकिन इस युद्ध को खत्म करने की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र की कोई प्रभावशाली भूमिका अबतक दिखाई नहीं दी है.

1945 में सुरक्षा परिषद के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक दुनिया बड़े परिवर्तनों की वाहक बन चुकी है. इसीलिए भारत लंबे समय से सुरक्षा परिषद के पुनर्गठन का प्रश्न परिषद की बैठकों में उठाता रहा है.

कालांतर में इसका प्रभाव यह पड़ा कि संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देश भी इस प्रश्न की कड़ी के साझेदार बनते चले गए. परिषद के स्थायी व वीटोधारी देशों में अमेरिका, रूस और ब्रिटेन भी अपना मौखिक समर्थन इस प्रश्न के पक्ष में देते रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के 200 सदस्य देशों में से दो तिहाई से भी अधिक देशों ने सुधार और विस्तार के लिखित प्रस्ताव को मंजूरी 2015 में दे दी है. इस मंजूरी के चलते अब यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे का अहम मुद्दा बन गया है.

नतीजतन अब यह मसला परिषद में सुधार की मांग करने वाले भारत जैसे चंद देशों का मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि महासभा के सदस्य देशों की सामूहिक कार्यसूची का प्रश्न बन गया है.

अमेरिका ने शायद इसी पुनर्गठन के मुद्दे का ध्यान रखते हुए सुरक्षा परिषद में नई पहल करने के संकेत दिए हैं. यदि पुनर्गठन होता है तो सुरक्षा परिषद के प्रतिनिधित्व को समतामूलक बनाए जाने की उम्मीद बढ़ जाएगी.

इस मकसद पूर्ति के लिए परिषद के सदस्य देशों में से नए स्थायी सदस्य देशों की संख्या बढ़ानी होगी. यह संख्या बढ़ती है तो सुरक्षा परिषद की असमानता दूर होने के साथ इसकी कार्य-संस्कृति में लोकतांत्रिक संभावनाएं स्वतः बढ़ जाएंगी.

Web Title: India must get a place in the Security Council

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