अमित शाह का ब्लॉग: भारत अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 14, 2019 08:01 AM2019-11-14T08:01:32+5:302019-11-14T08:01:32+5:30

यह विडंबना ही है कि अंतर्राष्ट्रीय संधियों से निपटने के ऐसे अस्थिर इतिहास वाली कांग्रेस आरसीईपी से दूर रहने के प्रधानमंत्री के फैसले का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है.

India determined to protect its interests: amit Shah | अमित शाह का ब्लॉग: भारत अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित

अमित शाह का ब्लॉग: भारत अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित

भारत के इतिहास में 4 नवंबर 2019 का दिन क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से अलग रहने के साहसिक निर्णय के लिए जाना जाएगा. इस निर्णय से साबित हुआ है कि भारत न केवल अपने हितों की रक्षा के लिए, बल्कि उस पर दबाव डालने के प्रयत्न को विफल करने के लिए भी दृढ़ संकल्पित है. इससे दुनिया में उसकी छवि मजबूत हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ओजस्वी नेतृत्व में आज का भारत नये आत्मविश्वास को दर्शाता है.

आरसीईपी में शामिल नहीं होने के ऐतिहासिक निर्णय को प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अच्छी तरह से व्यक्त किया है : ‘आरसीईपी समझौते को मैं भारत के हितों के दृष्टिकोण से मापता हूं तो मुझको सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है; न तो आत्मनिर्भरता की गांधीजी की नीति और न मेरा विवेक मुझको आरसीईपी में शामिल होने की इजाजत देते हैं.’

जो बात इस निर्णय को महत्वपूर्ण बनाती है, वह यह है कि प्रधानमंत्री मोदी किसानों, छोटे और मझोले उद्यमों, वस्त्र उद्योग, डेयरी व्यवसाय, औषधि, इस्पात और रसायन उद्योग के हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. चूंकि यह समझौता भारत की चिंताओं को समायोजित करता दिखाई नहीं देता, इसलिए उन्होंने इस समझौते में शामिल होने से इंकार कर दिया. मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत को ऐसे किसी भी करार में शामिल नहीं होना चाहिए.

हम सब जानते हैं कि कैसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार भारत के हितों की रक्षा करने में विफल रही और 2007 में ही उसने चीन के साथ रीजनल ट्रेड एग्रीमेंट (आरटीए) पर विचार शुरू कर दिया था. इसी वजह से संप्रग के काल में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 23 गुना हो गया. वर्ष 2005 में चीन के साथ जो व्यापार घाटा 1.9 बिलियन डॉलर था वह 2014 में 44.8 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. इससे हम कल्पना कर सकते हैं कि स्वदेशी उद्योगों को कितना नुकसान हुआ है.

वास्तव में किसानों और उद्योगों के हितों के साथ समझौता करने का कांग्रेस का इतिहास रहा है और इसी का एक उदाहरण 2013 का बाली समझौता है. तब तत्कालीन वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में विश्व व्यापार संगठन के सम्मेलन में भाग लिया था और कृषि सब्सिडी तथा किसानों को समर्थन मूल्य के प्रावधानों पर भारत के रुख को कमजोर किया था. इससे भारतीय किसानों को भारी नुकसान हो सकता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2014 में समय पर हस्तक्षेप किया और तत्कालीन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के माध्यम से संबंधित प्रस्ताव को निरस्त करवाया.

 यह विडंबना ही है कि अंतर्राष्ट्रीय संधियों से निपटने के ऐसे अस्थिर इतिहास वाली कांग्रेस आरसीईपी से दूर रहने के प्रधानमंत्री के फैसले का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है. वास्तव में, इसके उलट इतिहास साक्षी है कि कांग्रेस में दूरदर्शिता के अभाव के कारण ही भारत करार करने वाले राष्ट्रों के समूह में शामिल हुआ था. अपने मूल रूप में, दस देशों वाले आसियान के अलावा केवल चीन, जापान और द. कोरिया ही आरसीईपी में शामिल थे. लेकिन कांग्रेस की अदूरदर्शिता के कारण लघु उद्यमियों तथा किसानों को होने वाले नुकसान की अनदेखी करते हुए संप्रग सरकार इस समूह में शामिल हुई. यह शुरू से ही स्पष्ट था कि इससे चीनी वस्तुओं की भारत में बाढ़ आने के लिए दरवाजे खुल सकते हैं. भारत ने समूह के अन्य देशों के साथ भी व्यापार में अपने अनुकूल शर्तो को समझौते में शामिल नहीं कराया.

कांग्रेस ने आसियान मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) में भी भारत के हितों को तिलांजलि दी. यहां तक कि इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों ने भी भारत के लिए अपनी बाजार हिस्सेदारी का केवल 50 प्रतिशत और 69 प्रतिशत ही खोलने का फैसला किया, जबकि भारत ने अपने 74 प्रतिशत उत्पादों को व्यापार के लिए खोलने का फैसला किया. इस तरह के अविवेकपूर्ण फैसलों से  भारत का आरसीईपी में शामिल देशों के साथ व्यापार घाटा 2004 के सात बिलियन डॉलर से बढ़कर 2014 में 78 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया.  

2014 के बाद से, मोदी सरकार लगातार कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार की गलतियों को दुरुस्त करने का काम कर रही है. तब से आरसीईपी राष्ट्रों की बैठकों में भारत ने हमेशा अपने हितों की आक्रामक रूप से रक्षा की है और सदस्य देशों के साथ अपने अनुकूल शर्तो पर ही सहमति जताई है.

आरसीईपी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ मिलकर किसानों, लघु और मध्यम उद्यमों तथा विनिर्माण उद्योग के हितों को आगे बढ़ाया और उन संशोधनों पर जोर दिया जो भारत के हित के लिए महत्वपूर्ण थे. बैठक के दौरान चर्चा के जो 70 विषय थे, उनमें से 50 भारत से संबंधित थे.

हम जापान, अमेरिका, यूरोपीय संघ के देशों और अन्य विकसित राष्ट्रों के साथ व्यापार संबंधों पर काम कर रहे हैं जिससे हमें भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर बनाने का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी. इसका अत्यधिक लाभ हमारे किसानों, लघु एवं मझोले उद्यमों तथा विनिर्माण क्षेत्र को होगा. हमें लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के बढ़ते कद को देखते हुए आरसीईपी के सदस्य लंबे समय तक हमें नजरंदाज नहीं कर सकते हैं और हमारी शर्तो पर वे सहमत हो जाएंगे. इस बीच, हमने एफटीए के माध्यम से आसियान देशों के साथ अपने सफल आर्थिक संबंधों को बनाए रखा है. आरसीईपी को खारिज करके हमने अपने उद्यमों को चीन के किसी भी प्रतिकूल प्रभाव से दृढ़तापूर्वक बचाया है. हमारे लिए भारत सर्वोपरि है.

Web Title: India determined to protect its interests: amit Shah

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे