अवधेश कुमार का ब्लॉगः महाबलीपुरम से ठोस नतीजों की उम्मीद थी!
By अवधेश कुमार | Published: October 15, 2019 02:42 PM2019-10-15T14:42:26+5:302019-10-15T14:42:26+5:30
भारत आने के पहले शी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान और सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को चर्चा के लिए बुलाया. वहां से जो बयान आया वह भारत को नागवार गुजरा और विदेश मंत्नालय ने उसका कड़ा प्रतिवाद किया. सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर पर चर्चा कराने की पहल से लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत विरोधी भाषण तक चीन ने आम भारतीय को नाराज किया है.
किसी को अगर यह उम्मीद थी कि चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्ना से संबंधों में नाटकीय बदलाव आ जाएगा तो उसे निश्चय ही महाबलीपुरम ने निराश किया होगा. जब प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदीचीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्नण पर पिछले वर्ष अनौपचारिक बैठक के लिए वुहान गए थे तब भी उनको पता था कि कोई ठोस अनुकूल परिणाम नहीं आनेवाला.
हालांकि डोकलाम तनाव के बाद वुहान तक कोई बड़ा विवाद दोनों देशों के बीच नहीं उभरा था. किंतु इस बार स्थिति बिल्कुल अलग थी. 5 अगस्त को भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद चीन ने जिस तरह पाकिस्तान के समर्थन में और भारत के विरुद्ध तेवर अपनाया है उससे पूरा वातावरण अविश्वास का है. भारत के आम लोगों में पाकिस्तान के साथ चीन के प्रति भी आक्रोश व्याप्त है.
भारत आने के पहले शी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी इमरान खान और सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को चर्चा के लिए बुलाया. वहां से जो बयान आया वह भारत को नागवार गुजरा और विदेश मंत्नालय ने उसका कड़ा प्रतिवाद किया. सुरक्षा परिषद में जम्मू-कश्मीर पर चर्चा कराने की पहल से लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत विरोधी भाषण तक चीन ने आम भारतीय को नाराज किया है.
बावजूद शी-मोदी की बैठक का इतने अच्छे वातावरण में संपन्न होना बताता है कि भारत ने इन कटु यथार्थो को स्वीकार कर लिया है कि चीन हमसे मतभेद रखेगा, हमारे खिलाफ जाएगा जिनका हमें हर स्तर पर सामना करना होगा, वह पाकिस्तान की मदद भी करेगा लेकिन इससे संवाद, संपर्क और अन्य अंत:क्रिया को बाधित करना कूटनीतिक चातुर्य नहीं है.
चीन के बारे में यथार्थवादी रुख अपनाने की आवश्यकता है और भारत सरकार ने अपनाया भी है. मौजूदा भारत कूटनीति या विदेश संबंधों में अतीत की हिचकिचाहट तथा अनावश्यक अतिशालीनता ओढ़ने से बाहर निकल चुका है. हम स्वागत खूब करते हैं पर बात हमेशा यथार्थ के स्तर पर और आवश्यकता पड़ने पर खरी-खरी भी.
चीन को भी समझ में आने लगा है कि अब एक मुखर और अपने हितों के प्रति अडिग भारत से उसका सामना है. वुहान के बाद उसने हमारी सीमा पर तीन बड़े युद्धाभ्यास किए तो हम भी अरुणाचल में सीमा के पास बड़ा युद्धाभ्यास कर रहे हैं. चीन ने इसका विरोध किया, पर शी की यात्ना के बीच भी यह जारी रहा. तिब्बत और दलाई लामा पर हमारा रुख पहले से ज्यादा मुखर और स्पष्ट है.
पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत खुलकर बात कर रहा है. एक चीन अधिकृत कश्मीर भी है. चीन को लगता है कि मौजूदा भारत की नजर उस ओर भी है. चीन के साथ संबंधों के निर्धारण में इन सारे पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए. सच यह है कि इस बैठक में भारत की किसी चिंता का समाधान चीन की ओर से नहीं किया गया और वह कर भी नहीं सकता.