ब्लॉग: सांस्कृतिक लोक की पुस्तकों में बढ़ती प्रस्तुति

By प्रमोद भार्गव | Published: February 15, 2024 11:10 AM2024-02-15T11:10:24+5:302024-02-15T11:13:03+5:30

दिल्ली में इस साल विश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्कृति की बहुभाषी जीवंत धारा बहती दिखाई दे रही है। अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बड़ी संख्या में पुस्तकें भी राममय या सनातन संस्कृति को अभिव्यक्त कर रही हैं।

Increasing presentation of cultural folk in books | ब्लॉग: सांस्कृतिक लोक की पुस्तकों में बढ़ती प्रस्तुति

फाइल फोटो

Highlightsविश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्कृति की बहुभाषी जीवंत धारा बहती दिखाई दे रही हैइसका विषय भी ‘बहुभाषी भारत : एक जीवंत परंपरा’ रखा गया हैसनातन संस्कृति और भारत के साथ विश्व वैभव के प्रमाण पहली बार संस्कृत में लिखे ऋग्वेद में मिलते हैं

दिल्ली में  इस साल विश्व पुस्तक मेले में सनातन संस्कृति की बहुभाषी जीवंत धारा बहती दिखाई दे रही है। अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बड़ी संख्या में पुस्तकें भी राममय या सनातन संस्कृति को अभिव्यक्त कर रही हैं। चूंकि मेला राम मंदिर के उद्घाटन के बाद भरना था इसलिए इसका विषय भी ‘बहुभाषी भारत : एक जीवंत परंपरा’ रखा गया है।

सनातन संस्कृति और भारत के साथ विश्व वैभव के प्रमाण पहली बार संस्कृत में लिखे ऋग्वेद में मिलते हैं। ऋग्वेद ही भारत के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक वैभव और सभ्यता का मूल स्रोत है। इसकी अगली कड़ियों में वाल्मीकि रामायण, उपनिषद, महाभारत और पुराण आते हैं। पंचतंत्र और जातक कथाएं लोक की प्राचीन प्रस्तुतियां हैं।

भारतीय सांस्कृतिक इतिहास, भूगोल कथाओं एवं महाकाव्यों का एक आकर्षक बहुरूप दर्शक है, जिसमें प्रत्येक भारतीय भाषा के लोक-रंग जुड़े हुए हैं। मेले में बहुभाषी भारत की इसी जीवंत परंपरा का प्रदर्शन पांच मंडपों में किया गया है। 10 से 18 फरवरी तक चलने वाले इस मेले में देश-विदेश के बड़ी संख्या में प्रकाशन संस्थानों ने भागीदारी की हुई है।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास दिल्ली के प्रगति मैदान में इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष करता है। 1972 मेले की शुरुआत  हुई थी। तब से लेकर अब तक यह मेला दर्शक संख्या की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। 2023 में यह मेला 40000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में लगा था, जिसमें 35 से अधिक देशों की 18000 दुकानें लगी थीं। 12 लाख पुस्तक प्रेमियों ने शिरकत की थी।

इस बार मेले का क्षेत्रफल 50000 वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत कर दिया गया है। इसमें 40 से ज्यादा देशों के 2000 प्रकाशकों ने अपनी दुकानें लगाई हैं। बावजूद हिंदी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक कैसे पहुंचाया जाए, यह प्रश्न अपनी जगह मौजूद रहेगा। दरअसल बड़ी संख्या में हिंदीभाषी होने के बावजूद अधिकांश में पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं है।

इस दृष्टि से पुस्तक पाठक तक पहुंचाने और पढ़ने की संस्कृति विकसित करने की जरूरत है। हालांकि बदलते परिवेश में जहां ऑनलाइन माध्यम पुस्तक को पाठक के संज्ञान में लाने में सफल हुए हैं, वहीं ऑनलाइन बिक्री भी बढ़ी है। इसके इतर गीता प्रेस गोरखपुर ने दावा किया है कि उनकी प्रत्येक दिन करीब एक लाख पुस्तकें बिकती हैं।

इससे पता चलता है कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं की पुस्तकों के खरीदारों की कमी नहीं है, बशर्ते पुस्तकें धर्म और अध्यात्म से जुड़ी हों। यही वजह है कि इस समय देश में पौराणिक विषयों पर लिखी पुस्तकों की बिक्री में तेजी आई हुई है। सभी भाषाओं में ऋग्वेद, रामायण और महाभारत के पात्र और कथानकों पर हजारों साल से लिखा जा रहा है।

सच पूछा जाए तो यही वह कालजयी साहित्य है जो भारतवासियों के प्राणों में चेतना का संचार करते हुए जीवंत बना हुआ है। भारत में जितने भी नैतिक मूल्य और रिश्तों में भरोसा कायम है, उसका आधार इन्हीं ग्रंथों की मूल भावना है।

Web Title: Increasing presentation of cultural folk in books

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