नरेंद्र सिंह तोमर का ब्लॉग: गरीबों के लिए सार्वजनिक सेवाओं में सुधार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 15, 2019 06:07 AM2019-09-15T06:07:15+5:302019-09-15T06:07:15+5:30

पिछले कुछ वर्षो के दौरान ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाए गए ग्राम स्वराज अभियान जैसे कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी रहे हैं. हमारी यह यात्र जुलाई, 2015 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आंकड़ों  को अंतिम रूप दिए जाने के साथ शुरू हुई.

Improvement in public services for the poor | नरेंद्र सिंह तोमर का ब्लॉग: गरीबों के लिए सार्वजनिक सेवाओं में सुधार

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsप्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग से मकानों का निर्माण कार्य पूरा होने की वार्षिक दर में पांच गुना वृद्धि हुई है.इससे हमारा यह विश्वास मजबूत हुआ है कि सभी के लिए 2022 तक मकान का लक्ष्य प्राप्त करना पूरी तरह संभव है.

‘सबका साथ सबका विकास’ के व्यापक फ्रेमवर्क में ‘सभी के लिए आवास’, ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’, ‘सभी के लिए शिक्षा’, ‘सभी के लिए रोजगार’ जैसे  महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति और नए भारत का स्वप्न साकार करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं की पर्याप्त व्यवस्था बहुत जरूरी है. अखिल भारतीय स्तर पर इनके कार्यान्वयन और निगरानी के साथ उनमें समय-समय पर जरूरी बदलाव किया जाना आवश्यक है. इसके लिए अचूक सव्रेक्षण और संचालन तथा स्थानीय सरकारों से उस सव्रेक्षण की पुनरीक्षा कराना बहुत जरूरी है.

पिछले कुछ वर्षो के दौरान ग्रामीण विकास के क्षेत्र में चलाए गए ग्राम स्वराज अभियान जैसे कार्यक्रम पूरी तरह पारदर्शी रहे हैं. हमारी यह यात्र जुलाई, 2015 में सामाजिक-आर्थिक और जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आंकड़ों  को अंतिम रूप दिए जाने के साथ शुरू हुई. गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों की वर्ष 2002 में तैयार की गई बी.पी.एल. सूची ग्राम प्रधान का विशेषाधिकार बन चुकी थी. इससे गरीब अक्सर छूट जाते थे. एसईसीसी की रिपोर्ट के आधार पर जो रिपोर्ट बनी वह बहुत कारगर साबित हुई.

एलपीजी कनेक्शन के लिए उज्ज्वला, बिजली के नि:शुल्क कनेक्शन के लिए सौभाग्य, मकान की व्यवस्था के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) अस्पताल में चिकित्सीय सहायता के लिए आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों का चयन एसईसीसी के अभाव संबंधी मानदंडों के आधार पर किया गया. यह डाटाबेस धर्म, जाति और वर्ग से दूर है.

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत राज्यों के श्रम बजटों के निर्धारण तथा दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत महिला स्व-सहायता समूहों के गठन में सभी अभावग्रस्त परिवारों के समावेशन के लिए एसईसीसी के आंकड़ों का उपयोग किया गया. गरीबी के सटीक निर्धारण, आंकड़ों में सुधार और ग्राम सभाओं की भागीदारी से आधार, आईटी/डीबीटी, परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग, कार्यक्रमों के लिए राज्यों में एक नोडल खाते, सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) जैसे प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन सुधारों को अपनाया गया. इसके परिणाम स्वरूप लीकेज की स्थिति में बड़ा बदलाव आया. मनरेगा में ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी और सामग्री के 60:40 के अनुपात जैसे नियमों में बदलाव कर इसे जिला स्तर पर भी लागू किया गया. गरीबों के लिए स्वयं अपने मकान के निर्माण कार्य में 90/95 दिन के कार्य के लिए सहायता के रूप में व्यक्तिगत लाभार्थी योजना शुरू की गई.

ग्रामीण आवास कार्यक्रम में पिछले पांच वर्षो के दौरान डेढ़ करोड़ से अधिक मकान बनाए गए हैं. प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग से मकानों का निर्माण कार्य पूरा होने की वार्षिक दर में पांच गुना वृद्धि हुई है. इससे हमारा यह विश्वास मजबूत हुआ है कि सभी के लिए 2022 तक मकान का लक्ष्य प्राप्त करना पूरी तरह संभव है. इन मकानों को तालमेल  के जरिए स्वच्छ भारत शौचालय, सौभाग्य बिजली कनेक्शन, उज्ज्वला एलपीजी कनेक्शन और मनरेगा योजना के अंतर्गत 90 दिन का काम भी मिला है.

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत ग्रामीण सड़कों के लिए भी इसी प्रकार के प्रयास किए गए. इससे पिछले 1000 दिनों में प्रतिदिन 130-135 किमी लंबाई की सड़कों का निर्माण हुआ, जो प्रभावी निगरानी और राज्यों के साथ लगातार बातचीत के जरिए संभव हो पाया. ग्रामीण सड़क कार्यक्रम से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि पीएमजीएसवाई जैसा कार्यक्रम किस प्रकार निर्धारित समय सीमा के भीतर और उचित लागत पर सार्वजनिक सेवाएं प्रदान कर सकता है. इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम करने और विकास को स्थायी आधार देने के लिए रद्दी प्लास्टिक जैसी हरित प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए 30,000 किमी से अधिक सड़क मार्गो का निर्माण किया गया.

ग्रामीण कृषि बाजार (ग्राम), उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों, अस्पतालों को बस्तियों से जोड़ते हुए 1,25,000 किलोमीटर और प्रमुख ग्रामीण सड़कों के 80,250 करोड़ रुपए की लागत से समेकन कार्य की मंजूरी सरकार ने दे दी है. सभी राज्यों को दिशा-निर्देश भेज दिए गए हैं और परियोजनाओं की मंजूरी के लिए प्रारंभिक कार्य भी शुरू हो चुके हैं. यह सच है कि हम सार्वजनिक सेवा प्रणालियों की सफलता का जिक्र करने में भी कोई रुचि नहीं लेते क्योंकि हममें से ज्यादातर लोगों की धारणा सरकारों को निष्क्रिय तथा निजी क्षेत्र को कारगर स्वरूप में देखने की बन चुकी है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि निजी क्षेत्र ने कई शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन हमें इसके साथ-साथ इसे भी समझना जरूरी है कि सामाजिक क्षेत्र में गरीबों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम जैसी अनेक सार्वजनिक सेवाओं में अब भी समुदाय के नेतृत्व और स्वामित्व वाली एक ऐसी सार्वजनिक सेवा प्रदायगी व्यवस्था की जरूरत है जो परिणामों पर केंद्रित हो, गरीबों की जीवन दशा में सुधार तथा कल्याण ही उसका अंतिम लक्ष्य हो.

Web Title: Improvement in public services for the poor

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