ब्लॉग: जनगणना में स्व-गणना की सुविधा का महत्व
By प्रमोद भार्गव | Published: March 29, 2022 02:35 PM2022-03-29T14:35:45+5:302022-03-29T14:35:45+5:30
हर दस साल में की जाने वाली जनसंख्या की गिनती में करीब 20 लाख कर्मचारी जुटते हैं. इसमें छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के दरवाजे पहु्ंचकर जनगणना का काम करना जटिल होता है.
जनगणना-2021 में नागरिकों को गणना में शामिल होने की एक बेहतर और अनूठी ऑनलाइन सुविधा दी गई है. भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को ऑनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए नियमों में परिवर्तन किए हैं. जनगणना (संशोधन)-2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से तो जनगणना घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी करेंगे ही, लेकिन अब नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकता है.
इसके लिए पूर्व नियमों में ‘इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म’ शब्द जोड़ा गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा दो की उप धारा (एक) के खंड आर में दिया गया है. इसके अंतर्गत मीडिया, मैग्नेटिक, कम्प्यूटर जनित माइक्रोचिप या इसी तरह के अन्य उपकरण में तैयार कर भेजी या संग्रहित की गई जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक फार्म में दी गई जानकारी माना जाएगा. यानी एंड्रॉयड मोबाइल से भी अपनी गिनती दर्ज की जा सकेगी, जो कि आजकल घर-घर में उपलब्ध है.
इस ऑनलाइन प्रविष्टि के अलावा घर-घर जाकर भी जनगणना की जाएगी. इसके लिए भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त द्वारा दस निदेशकों की नियुक्ति भी कर दी गई है. याद रहे यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते संभव नहीं हो पाई. अब इस ऑनलाइन गणना के साथ आगे बढ़ने की पहल की जा रही है, जिससे भारतीय नागरिकों की गिनती जल्द से जल्द हो सके. यदि यह प्रयोग सफल रहता है तो संभव है 2031 की गणना पूरी तरह ऑनलाइन हो.
इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑनलाइन प्रयोग अद्वितीय हैं. लेकिन देश की जनता के स्थायी और निंरतर गतिशील पंजीकरण के दृष्टिगत अब जरूरी है कि ग्राम पंचायत स्तर पर जनगणना की जवाबदेही सौंप दी जाए. गिनती के विकेंद्रीकरण का यह नवाचार जहां 10 साला जनगणना की बोझिल परंपरा से मुक्त होगा, वहीं देश के पास प्रतिमाह प्रत्येक पंचायत स्तर से जीवन और मृत्यु की गणना के सटीक व विश्वसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे. ॉ
इस लेख में प्रस्तुत की जाने वाली जनगणना की यह तरकीब अपनाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तेज भागती यांत्रिक व कम्प्यूटरीकृत जिदंगी में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक बदलाव के लिए सर्वमान्य जनसंख्या के आकार व संरचना का दस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता. वैसे भी भारतीय समाज में जिस तेजी से लंैगिक, रोजगारमूलक और जीवन स्तर में विषमता बढ़ रही है, उसकी बराबरी के प्रयासों के लिए भी जरूरी है कि जनगणना की परंपरा में आमूलचूल परिवर्तन लाएं.
हरेक दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब 20 लाख कर्मचारी जुटते हैं. छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है. यह काम तब और बोझिल हो जाता है जब किसी कर्मचारी-दल को उसके स्थानीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूरांचल गांव में भेज दिया जाता है. ऐसे हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर जाते हैं.
ऐसे लोगों में ज्यादातर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लोग होते हैं. बीते कुछ सालों में आधुनिक व आर्थिक विकास की अवधारणा के चलते इन्हीं जाति समूह के करीब चार करोड़ लोग विस्थापन के दायरे में हैं. इनसे रोशन गांव तो अब बेचिराग हैं, लेकिन इन विस्थापितों का जनगणना के समय स्थायी ठिकाना कहां है, जनगणना करने आए दल को यह पता लगाना मुशिकल होता है.
इसलिए जरूरी है कि जनगणना की प्रक्रि या के वर्तमान स्वरूप को बदला जाकर एक ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे. इसके लिए न भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है और न ही सरकारी अमले की. केवल गिनती की केंद्रीयकृत जटिल पद्धति को विकेंद्रीकृत करके सरल करना है. गिनती की यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी. देश की सबसे छोटी राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है. जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खंड व जिला स्तर तक है. हमें करना सिर्फ इतना है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी पंचायत कार्यालय में रखनी है.
इसी पंजी की प्रतिलिपि कम्प्यूटर में फीड जनसंख्या प्रारूप पर भी दर्ज हो. जिन ग्राम पंचायतों में बिजली व इंटरनेट की सुविधाएं हैं, वहां इसे जनसंख्या संबंधी वेबसाइट से जोड़कर इन आंकड़ों का पंजीयन सीधे अखिल भारतीय स्तर पर हो सकता है. जैसा कि अब ऑनलाइन माध्यमों से अपनी गिनती दर्ज करा सकेंगे.