लोकसभा चुनाव विश्लेषणः हरियाणा में बीजेपी ने सटीक प्लान और माइक्रो मैनेजमेंट से लिखी जीत की इबारत

By बद्री नाथ | Published: June 15, 2019 01:03 PM2019-06-15T13:03:25+5:302019-06-15T13:03:25+5:30

Haryana Lok Sabha Elections 2019 Complete Analysis: हरियाणा लोकसभा चुनाव में बीजेपी रणनीतिक स्तर पर कई मामलों में विपक्षी पार्टियों से आगे रही है।

Haryana Lok Sabha Elections complete Analysis in Hindi: BJP's definite plan and micro-management congress | लोकसभा चुनाव विश्लेषणः हरियाणा में बीजेपी ने सटीक प्लान और माइक्रो मैनेजमेंट से लिखी जीत की इबारत

लोकसभा चुनाव विश्लेषणः हरियाणा में बीजेपी ने सटीक प्लान और माइक्रो मैनेजमेंट से लिखी जीत की इबारत

Highlightsभारत में आम चुनाव में 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में संपन्न हुए।23 मई को घोषित हुए नतीजे कई मायने में ऐतिहासिक साबित हुए।

36 बिरादरी के राज्य हरियाणा की राजनीति काफी दिलचस्प रही है। गठबंधन की राजनीति से दूर चला आया हरियाणा पिछले कई चुनावों से किसी दल के पक्ष में बहुमत दे रहा है। गठबंधन के प्रयोग हर बार या तो ज्यादा दिन तक चलते नहीं हैं या फिर असफल साबित होते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे में बीजेपी ने जहाँ 10 की 10 सीटें जीती वहीं वोट प्रतिशत में भी बीजेपी ने बड़ी बढ़त हासिल की है। पिछले लोकसभा चुनाव में 38% वोट के साथ 7 सीटें और 52 विधानसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने इस चुनाव में सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। इसके अलावा 79 विधानसभा सीटों पर भी जीत हासिल करते हुए 58 मत हासिल किये हैं।

बीजेपी ने कैसे की थी तैयारी

बीजेपी ने पहला कदम गठबंधन को तोड़ने और अपने दम पर हरियाणा की राजनीति में स्थापित करने का उठाया था।  चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी ने पिछला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से ही काफी आक्रामक तैयारी की थी। बीजेपी ने चुनाव से काफी पहले हरियाणा चुनाव प्रभारी की नियुक्ति की थी। अनिल जैन ने हरियाणा की हर एक गतिविधियों पर नजर रखी मोदी और शाह भी निरंतर हरियाणा के दौरे पर जाते रहे। 

बीजेपी पिछले चुनाव में हारी हुई रोहतक सिरसा और हिसार में आंतरिक तौर पर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को तैयार करती रही थी। सुनीता दुग्गल पिछली बार गठबंधन की वजह से सिरसा से चुनाव नहीं लड़ पाई थीं लेकिन वहां होने वाली हर गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुई थीं। सिरसा की समस्याओं को हर समय एड्रेस करने से लेकर दूसरे दलों के नेताओं को करारा जबाब देने की रणनीति पर कार्य किया। इस वजह से इन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने में मदद मिली।

बड़े पैमाने पर देखें तो बीजेपी ने 35 बनाम 1 की राजनीति की और सफलता हासिल की। इसी का नतीजा था कि हरियाणा के रोहतक जैसी जाट बाहुल्य सीट पर करनाल के पूर्व एम् पी नॉन जाट ब्राह्मण नेता जो कि सोनीपत से भी एमपी रह चुके हैं, को मैदान में उतारा। इसी के तहत बीजेपी द्वारा जहां नॉन जाट मतदाताओं में अहम जगह बनाया गया वहीं जाटों को भी मैनेज किया गया। जाट वोटों को साधनें के लिए बीजेपी नें सर छोटू राम की प्रतिमा तो बनाई ही साथ ही साथ हिसार में जाट उम्मीदवार (पूर्व आई ए एस अधिकारी ब्रिजेन्द्र सिंह देकर) इस समुदाय को भी अपनी तरफ आकर्षित किया।

खट्टर का व्यक्तित्व और मुख्यमंत्रित्व

सरकार बनाने के बाद बीजेपी के शुरुआती 3 साल काफी चुनौतीपूर्ण रहे थे। खट्टर प्रशासनिक दृष्टि से काफी असफल प्रशासक माने जाते रहे थे लेकिन इन्होंने जमीन पर काफी सक्रियता दिखाई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद खट्टर ने पूरे हरियाणा का दौरा किया था इस दौरान ये हर विधानसभाओं में गए। खट्टर काफी कूटनीतिक मुख्यमंत्री के रूप में बनकर उभरे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट से जीते फरीदाबाद के एनआईटी विधायक नागेन्द्र भढ़ाना हों या फिर सफीदों के इंडिपेंडेंट एमएलए जसवीर, सबको अपने पक्ष में किया। नौकरियों में पारदर्शिता हो या फिर ग्रुप डी की नियुक्ति में लाई गई नीति ने काफी लोकप्रियता हासिल की इन सभी चीजों में खट्टर को काफी मजबूत और योग्य नेता के रूप में उभारा।

गठबंधन की राजनीति से दूर जाता हरियाणा

हरियाणा में हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही बंशीलाल हो या फिर भजनलाल, जो भी कांग्रेस से अलग हुए बीजेपी उनकी बैशाखी बनी पर सरकारें नहीं चली। बीजेपी ने लगभग सभी चुनावों में कांग्रेस विरोधी दलों (इंडियन नेशनल लोकदल, एचजेसी) से गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और सफलता पाई थी। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने कुलदीप बिश्नोई का साथ छोड़कर अकेले विधान सभा चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। अकेले चुनाव लड़ने में बीजेपी को 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। 

2019 चुनाव के पहले भी एक गठबंधन यूनाइटेड इंडियन नेशनल लोकदल और बसपा के बीच हुआ था लेकिन जींद उपचुनाव के बाद यह गठबंधन टूट गया क्योंकि जींद उपचुनाव में इस गठबंधन ने कोई कमाल नहीं दिखाया। बसपा ने पुराने गठबंधन के विकल्प के रूप में सैनी की लोकतान्त्रिक सुरक्षा मंच को चुना लेकिन वो भी असफल रहा। अंत में कांग्रेस के साथ पंजाब हरियाणा और दिल्ली में गठबंधन की आस में बैठी आम आदमी पार्टी ने असफल होने पर दुष्यंत के जननायक जनता दल के साथ गठबंधन किया। लेकिन कम समय में इन दोनों दलों के कार्यकर्ता और नेता जुड़कर काम करने का माहौल नहीं बना पाए अंततः वो भी फेल रहे।

 इस पुरे प्रकरण में बीजेपी ने गठबंधन तो नहीं किया लेकिन गठबंधन के सम्भावनाओं को समाप्त करते हुए सभी पहलुओं को अपने पक्ष में किया। शिरोमणि अकाली दल ने एक प्रेस कांफेरेंस में यहाँ तक कहा कि आने वाले समय में बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस आस पर सिक्ख समुदाय के लोग भी ज्यदेतर बीजेपी के पक्ष में आये।

मुद्दों की लड़ाई में बीजेपी ने कैसे पछाड़ा

बीजेपी ने अपने इलाके में केंद्र सरकार की नीतियों (उज्जवला, शौचालय, आवास ) का प्रचार किया इसके बाद एमएमएलए और एमपी के कार्यों को भी प्रचारित किया। सभी विधायकों को यह निर्देश दिया गया था कि वो अपने अपने विधान सभाओं में जीत सुनिश्चित करें। यही उनके टिकट पाने का आधार बनेगा। पार्टी के सभी विधायक जमीन पर उतर कर प्रचार करते दिखे।

कांग्रेस ने जींद विधान सभा में हुए उपचुनाव में सुरजेवाला के हारने से कोई सबक नहीं लिया। तब बीजेपी और जेजेपी ने इसी आधार पर सुरजेवाला को वोट न देने की अपील की थी कि प्रदेश एक उपचुनाव के बाद दुसरे उपचुनाव में पहुंच जाएगा। कांग्रेस और नव निर्मित जेजेपी का प्रादेशिक ढांचा बिलकुल चरमराया हुआ था इसीलिए इन दोनों दलों का जनता से कोई सीधा सम्पर्क  नहीं देखा गया। नतीजतन इनके दलों के घोषणापत्र की कई बातें ऊपर ऊपर ही तैरती रहीं। 

हरियाणा के ज्यादातर लोग फ़ौज और खेल से जुड़े हुए हैं इसीलिए राष्ट्रवाद के मुद्दे में भी बीजेपी ने अन्य दलों को मात दे दी। कांग्रेस के सभी बड़े नेता चुनाव मैदान में थे (तंवर, शैलजा, हुड्डा ) और एक ही चरण में सभी के सीटों पर चुनाव होना था इसीलिए ये लोग अपने सीटों के अलावा कही फोकस नहीं किया। बगल के राज्य पंजाब में जैसे चुनाव कैप्टन बनाम मोदी का हो गया था जिसमे कैप्टन क्षेत्रीय नेताओं पर भारी पड़े। यहाँ पर कोई ऐसा चेहरा मोदी के सामने नहीं खड़ा किया गया या फिर हुड्डा बनाम मोदी चुनाव बनाने की रणनीति पर भी कार्य नहीं किया गया।

भविष्य के आसार

कांग्रेस ने लोक सभा चुनाव पूर्व सभी नेताओं की उपस्थिति में एक प्रदेश व्यापी बस यात्रा निकाली थी जिससे एकजुटता दिखानें में मदद मिली थी। हुड्डा को को-ओरडीनेशन समिति का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने कुछ गुटबाजी कम करने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस के द्वारा दिया गया  यह पद सांकेतिक और सम्मान का प्रतीक बनकर ही रह गया। अब तक जिले और ब्लाक संगठन के पद कांग्रेस के द्वारा नहीं भरे जा सके हैं। संगठन के स्तर पर काफी कमजोर कांग्रेस को मात्र कांग्रेस की भावनात्मक अपील का सहारा बचा है। चुनावी हार के बाद ग़ुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में हुई समीक्षा बैठक में कांग्रेस के सभी नेता आपस में लड़ पड़े थे। 

इसी बीच ओपी चौटाला के द्वारा रोहतक में दीपेंदर की हार पर जताया गया खेद भी नए राजनितिक समीकरण की और इशारा कर रहा है। दुष्यंत को रोकने और जाट वोटों को एकजुट करने के लिए इन दोनों के बीच ऐसे समझौते की एक गुंजाइश है। अगर इनेलो हुड्डा को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करे तो 35 बनाम 1 की लड़ाई एक विकल्प बन सकता है। कांग्रेस आलाकमान ने यह कह दिया है कि प्रदेश में विधान सभा चुनाव में तंवर ही अध्यक्ष बने रहेंगे। हालांकि इस बात का विरोध गीता भुक्कल, कुलदीप शर्मा समेत कुल 13 विधायक, 5 पूर्व एमपी और 80 से ज्यादा पूर्व एमएलए किये थे। 

अशोक तंवर ने भी अपने समर्थकों के साथ गुड़गाव में बैठक की है। इन सभी वजहों से कांग्रेस में सुलह और एकजुटता के आसार दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। वहीं एकजुट बीजेपी लोकसभा चुनाव में 79 विधान सभा सीटों पर विजय प्राप्त करके अति आत्मविश्वास से लबरेज है। किसानों के लिए प्रदेश सरकार की तरफ से पेंशन की घोषणा के लिए कार्य किए जा रहे हैं। साथ ही बीजेपी लोकसभा में कांग्रेस से हारी गई 11 विधान सभाओं के लिए मिशन 11 पर कार्य करना शुरू कर दिया है। रणनीतिक और ग्राउंड पर हो रहे कार्यों की वजह से बीजेपी अन्य दलों के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में है।

Web Title: Haryana Lok Sabha Elections complete Analysis in Hindi: BJP's definite plan and micro-management congress



Get the latest Election News, Key Candidates, Key Constituencies live updates and Election Schedule for Lok Sabha Elections 2019 on www.lokmatnews.in/elections/lok-sabha-elections. Keep yourself updated with updates on Haryana Loksabha Elections 2019, phases, constituencies, candidates on www.lokmatnews.in/elections/lok-sabha-elections/haryana.