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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: कामराज योजना के नक्शेकदम पर मोदी!

By हरीश गुप्ता | Updated: September 23, 2021 11:33 IST

अनुभवी लोग बताते हैं कि 1963 में जवाहर लाल नेहरू ने जो किया और नरेंद्र मोदी ने पहले जो 2014 और बाद में 2021 में किया, उसमें बहुत बड़ा अंतर है. पद्धति, प्रक्रिया और शैली के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ‘कामराज योजना’ के नक्शेकदम पर ही चल रहे थे, जब उन्होंने 7 जुलाई को अपने मंत्रिमंडल से 12 केंद्रीय मंत्रियों को बाहर कर दिया और एक के बाद एक तीन भाजपा मुख्यमंत्रियों को भी पद से हटा दिया. 

मोदी द्वारा पार्टी के वरिष्ठों को दिया गया झटका पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपने उन सहयोगियों को दिए गए झटके से अलग नहीं था जो उनके साथ स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे. नेहरू पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 58 साल पहले 1963 में बड़ी राजनीतिक सर्जरी की थी. नेहरू ने अपनी सरकार के सभी वरिष्ठ मंत्रियों को मंत्री पद छोड़ने के लिए कहा था. 

लालबहादुर शास्त्री हों, जगजीवन राम हों या मोरारजी देसाई, सभी को दरवाजा दिखाया गया. नेहरू ने छह मुख्यमंत्रियों को पद से हटा दिया, जिनमें बीजू पटनायक (ओडिशा) जैसे शक्तिशाली सीएम भी शामिल थे. सत्ता में 16 साल से अधिक समय तक रहे नेहरू का करिश्मा विशेष रूप से 1962 के चीनी आक्रमण के बाद कम हो गया था. 

हालांकि वी.के. कृष्ण मेनन को भारत के रक्षा मंत्री के पद से हटा दिया गया था, लेकिन कांग्रेस को संसद में विपक्षी दलों के कई दिग्गजों के हाथों कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा था. इसी पृष्ठभूमि में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. कामराज ने नेहरू को एक योजना सौंपी और अपना पद छोड़ने की पेशकश की. वे चाहते थे कि सभी वरिष्ठ मंत्री और मुख्यमंत्री पद छोड़ दें और पार्टी के लिए काम करें. 

नेहरू ने कामराज योजना को स्वीकार किया. बाद में कामराज को पार्टी अध्यक्ष पद से नवाजा गया. कामराज ने नेहरू को लालबहादुर शास्त्री को कुछ समय बाद सरकार में वापस लाने के लिए राजी किया. शायद यह एक उत्तराधिकार योजना का हिस्सा था क्योंकि शास्त्री को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाया गया था, वस्तुत: वे उपप्रधानमंत्री के रूप में काम कर रहे थे. 

यह अलग बात है कि 1964 में प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री का असमय निधन हो गया. 1966 में इंदिरा गांधी ने के. कामराज के आशीर्वाद और समर्थन से पदभार संभाला. विडंबना यह है कि उन्हीं इंदिरा गांधी ने कामराज को बाहर का दरवाजा दिखाया क्योंकि वे उस ‘सिंडिकेट’ का हिस्सा बन गए थे जो घोर सत्ता संघर्ष के चलते उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए बनाया गया था.

दो सर्जरी के बीच का फर्क

अनुभवी लोग कहते हैं कि 1963 में नेहरू ने जो किया और मोदी ने पहले जो 2014 और बाद में 2021 में किया, उसमें बहुत बड़ा अंतर है. पद्धति, प्रक्रिया और शैली के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. यहां यह याद रखना चाहिए कि नेहरू ने जिन मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को बाहर का दरवाजा दिखाया, उनमें से कोई भी उनसे वरिष्ठ नहीं था. 

अगर नेहरू स्वतंत्रता संग्राम की उपज थे, तो मोदी भी सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़े हैं और घोर संघर्ष के बाद जीत हासिल की है. आरएसएस में उनका प्रारंभिक जीवन भी उनके त्यागों का प्रमाण है. हालांकि, नेहरू एक अलग स्तर पर थे, एक समृद्ध विरासत से आए थे और उन्होंने सब कुछ नफासत से किया. 

पुराने लोगों ने मुझे बताया है कि नेहरू ने खुद निकाले जाने वाले सभी मंत्रियों को फोन किया और बताया कि पार्टी के लिए उनकी सेवाओं की आवश्यकता क्यों है. इन सभी को पार्टी का काम भी दिया गया. वर्तमान मामले में, किसी भी केंद्रीय मंत्री को न तो पीएम का फोन आया और न ही केंद्रीय गृह मंत्री का. 

शपथ ग्रहण समारोह से मात्र कुछ घंटे पहले 12 केंद्रीय मंत्रियों को फोन करने का अप्रिय कार्य भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को दिया गया था. यह भी पता चला है कि नए मंत्रियों को फोन महासचिव (संगठन) बी. एल. संतोष ने किया. थावर चंद गहलोत के अलावा निकाले गए किसी भी केंद्रीय मंत्री को 45 दिन बाद भी कोई काम नहीं दिया गया. 

किसी भी केंद्रीय नेता ने उनमें से किसी से भी बात नहीं की है. उनमें से अधिकांश लोकसभा सांसद हैं और उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करते समय भारी शर्मिदगी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पार्टी कार्यकर्ता उनसे कठिन सवाल पूछते रहते हैं. 2014 की सर्जरी के दौरान कट ऑफ डेट 75 साल की थी. लेकिन 2021 की सर्जरी में कट-ऑफ उम्र 66 साल कर दी गई है. 

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र और राज्यों में नेतृत्व की एक नई टीम स्थापित करने की योजना बना रहे हैं. 17 सितंबर 2025 को मोदी खुद 75 साल के हो रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि मोदी ‘राजनीति में संत’ हैं और आश्चर्यचकित करने में सक्षम हैं. क्या 2021 की सर्जरी उत्तराधिकार योजना का हिस्सा है? कोई नहीं जानता.

कामराज बग का कांग्रेस पर भी असर

सोनिया गांधी 2010 में या 2012 में भी अवांछित और परेशानी पैदा करने वाले मंत्रियों को बाहर करने के लिए ‘कामराज योजना’ को लागू करने में विफल रहीं क्योंकि राहुल गांधी कुछ अनजाने कारणों से बागडोर संभालने को तैयार नहीं थे. उन्हें पी.वी. नरसिंह राव के अनुभव से चोट पहुंची थी और उन्होंने मनमोहन सिंह पर दांव लगाना जारी रखा. 

दस साल बाद, कामराज बग ने कांग्रेस को प्रभावित किया और सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर किया. जाहिर है, वे अपने बेटे के लिए मैदान साफ कर रही हैं जो अब फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी कर रहे हैं.

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