आदर्श शिक्षक चुनने का सरकार का नया फॉर्मूला

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 31, 2018 05:04 AM2018-08-31T05:04:22+5:302018-08-31T05:04:22+5:30

मानव संसाधन मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हर राज्य की राजधानी में एक लुटियन्स जोन है और सारे अवार्ड इस जोन में रहने वाले लोगों के लिए आरक्षित रहते आए हैं।

Harish Gupta Opinion on HRD new formula, Atal in Jnu and J&K Governor | आदर्श शिक्षक चुनने का सरकार का नया फॉर्मूला

आदर्श शिक्षक चुनने का सरकार का नया फॉर्मूला

हरीश गुप्ता
लोकमत समूह के नेशनल एडिटर   

उच्चस्तरीय समिति 6 हजार आवेदनों में से 50 नाम तय करेगी, ऑनलाइन आवेदन मंगवाए

पद्म पुरस्कारों के बाद अब लुटियन की दिल्ली में  प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए शिक्षक सक्रिय हो गए हैं। आजाद भारत में पहली बार आदर्श शिक्षक पुरस्कार के लिए राज्यों से नाम नहीं मंगवाए गए हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने देशभर के शिक्षकों से इन पुरस्कारों के लिए सीधे ऑनलाइन आवेदन मंगवाने का फैसला किया है। शर्त सिर्फ एक है कि आवेदन करनेवाले शिक्षक ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ असाधारण या अभिनव कार्य किया हो। जावड़ेकर के इस फैसले का राज्य विरोध कर रहे हैं। राज्यों को लग रहा है कि उनके अधिकारों में कटौती कर दी गई है। जावड़ेकर का जवाब साफ है कि यदि राज्य चाहें तो निर्धारित मानदंडों के अनुरूप पात्र शिक्षकों के नामों की सिफारिश कर सकते हैं। शायद पुरस्कारों के चयन के लिए नई पद्धति अपनाने के पूर्व मानव संसाधन मंत्री ने प्रधानमंत्री से सलाह मशविरा किया हो। चूंकि पुरस्कारों के मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबर्दस्त दबाव का सामना किया, अत: वे नई प्रणाली अपनाने के विचार से सहमत हो गए। जावड़ेकर ने छह हजार शिक्षकों के आवेदनों में से 50 नामों का चयन करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन कर दिया है। इन चुने हुए 50 शिक्षकों को 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर विज्ञान भवन में सम्मानित किया जाएगा। मानव संसाधन मंत्रलय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हर राज्य की राजधानी में एक लुटियन्स जोन है और सारे अवार्ड इस जोन में रहने वाले लोगों के लिए  आरक्षित रहते आए हैं। प्रकाश जावड़ेकर ने इन लोगों को बाहर कर दिया है। अब बारी चिकित्सा क्षेत्र के पुरस्कारों की है। देखें आने वाले वर्षो में अन्य मंत्रलय क्या करते हैं!

अटलजी जेएनयू में

जब अटलबिहारी प्रधानमंत्री थे, तब वह चाहते थे कि वामपंथियों के गढ़ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भाजपा भी अपनी जड़ें जमाए। कुछ छिटपुट सफलताओं को छोड़कर संघ परिवार वामपंथियों के इस गढ़ में सेंध लगाने में विफल रहा। बहरहाल अटलजी का सपना गत सप्ताह बिना किसी शोर-शराबे के केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पूरा कर दिया। जावड़ेकर ने बड़ी संख्या में लोगों से मुलाकात की तथा उन्हें भरोसा दिलाया कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थान बनाने के लिए सरकार हरसंभव पहल करने को तैयार है। वह यहां प्रबंधन तथा इंजीनियरिंग स्कूल शुरू करने की अनुमति देना चाहती है। विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद भी इस राय से सहमत हो गई कि नए पाठय़क्रम शुरू करने से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी। इसके बाद यह अनुरोध सामने आया कि प्रबंधन पाठय़क्रम केंद्र का नाम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर हो। कार्यकारी परिषद ने प्रस्तावित केंद्र का नाम ‘अटल बिहारी वाजपेयी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप’ रखने का फैसला कर दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि अर्पित कर दी। इस तरह आखिरकार जेएनयू में ‘अटलजी की एंट्री’ हो गई।

वोरा की विदाई

दस वर्षो तक जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल पद संभालने के बाद एन.एन. वोरा ने नाराज होकर राजभवन छोड़ा। उन्हें सन् 2008 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया था। 2014 में सत्ता संभालने के बाद भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने इस अनुभवी नौकरशाह को राज्यपाल पद पर बरकरार रखने का फैसला किया था। मगर पिछले कुछ समय से वोरा समझ गए थे कि राज्यपाल के रूप में उनके दिन गिनती के बचे हैं। उन्होंने कुछ ऐसे मसलों को छेड़ना शुरू कर दिया था जो उनसे संबंधित नहीं थे। इससे सेना तथा केंद्र सरकार के साथ उनके संबंध खराब होने लगे। राज भवन के सूत्रों के मुताबिक पिछले दस वर्षो  में वोरा के सेना के साथ मधुर संबंध रहे। राज्य में ‘कथित निर्दोष’ लोगों की हत्या  पर भी उनके बीच खटास पैदा नहीं हुई मगर अचानक सेना की कार्रवाई से वोरा व्यथित रहने लगे। वरिष्ठ सैन्य अफसरों से अपनी नाराजगी का इजहार करना शुरू कर दिया था। वोरा का यह रवैया केंद्र को पसंद नहीं आया।  वोरा अनुच्छेद 35ए से भी किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं चाहते थे। इससे प्रधानमंत्री मोदी सरकार इतनी नाराज हो गई कि उसने आनन-फानन में सतपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का नया राज्यपाल नियुक्त कर दिया। वोरा ने भी मलिक के श्रीनगर पहुंचने का इंतजार नहीं किया और सुबह ही श्रीनगर छोड़ने का फैसला कर लिया। 23 अगस्त को नए राज्यपाल के शपथ ग्रहण समारोह में वोरा रहस्यमय ढंग से अनुपस्थित रहे। इससे राजनीतिक पर्यवेक्षकों को भी आश्चर्य हुआ क्योंकि वोरा राज शिष्टाचार का गंभीरता से पालन करते रहे हैं। 

मलिक ने बाजी मारी
 
भाजपा के कई दिग्गज बिहार का राज्यपाल बनने के लिए उत्सुक थे। मगर फिलहाल मोदी सरकार ने लालजी टंडन को वहां भेज दिया है। बिहार के राजभवन को ‘पारस पत्थर’ समझा जाता है जो  नेता बिहार का राज्यपाल बना, वह तेजी से सफलता की सीढ़ी चढ़ता गया। रामनाथ कोविंद बिहार के राजभवन से राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। सतपाल मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल नियुक्त होकर सुर्खियों में आ गए। कोविंद तथा मलिक  दोनों ही बिहार के नहीं हैं। दोनों उत्तर प्रदेश के हैं तथा मूलत: भाजपाई नहीं हैं परंतु वह भाजपा का अभिन्न अंग बन गए। प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों को महत्वपूर्ण ओहदों के लिए चुना जबकि कोविंद व मलिक से उनका व्यक्तिगत संपर्क नाममात्र  का रहा है। कोविंद बेहद विनम्र तथा प्रचार से दूर रहनेवाले दिग्गज हैं जबकि मलिक राजनीतिक मोर्चे पर सतत सक्रिय रहे हैं। मोरारजी देसाई की सरकार को गिराने तक कांग्रेस की मदद से चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने में मलिक की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जब कुछ महीनों बाद ही समर्थन वापस लेकर कांग्रेस ने चौधरी साहब की सरकार गिरा दी, तब मलिक ने चरण सिंह का साथ छोड़ दिया। वह कांग्रेस में शामिल होकर राज्यसभा के सदस्य बन गए। कांग्रेस ने उन्हें 1980 तथा 1986 में राज्यसभा में भेजा। बाद में उन्होंने राजीव गांधी से भी नाता तोड़कर विश्वनाथ प्रताप सिंह से हाथ मिला लिया एवं उनकी सरकार में मंत्री बन गए। वी.पी. सिंह का साथ छोड़ने के बाद मलिक समाजवादी पार्टी में आ गए और अब भाजपा में हैं। वी.पी. सिंह की सरकार में गृहमंत्री रहे। पीडीपी नेता मुफ्ती मुहम्मद सईद के वह काफी करीब थे। इसीलिए मोदी ने उन्हें राज्यपाल बनाकर श्रीनगर भेज दिया। मलिक से मुफ्ती की पुत्री तथा राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती से भी अच्छे संबंध हैं। मलिक उन्हें अपनी पुत्री जैसी समझते हैं। ऐसा लगता है कि मलिक के सहारे मोदी एक बार फिर पीडीपी को साधना चाहते हैं। 

Web Title: Harish Gupta Opinion on HRD new formula, Atal in Jnu and J&K Governor

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