ब्लॉग: मोदी सरकार की नई टीम से क्यों हुए दिग्गज बाहर? अंदरखाने से आ रही अलग-अलग कहानी

By हरीश गुप्ता | Published: July 15, 2021 12:22 PM2021-07-15T12:22:11+5:302021-07-15T12:22:11+5:30

भाजपा में अब कई नये चेहरों को अगले दो दशक तक काम करने का मौका दिया जा रहा है. बताया जा रहा है कि अटल-आडवाणी युग के नेता अब 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले कुछ आराम कर लेंगे.

Harish Gupta Blog: Why big faces removed from New Modi govt team | ब्लॉग: मोदी सरकार की नई टीम से क्यों हुए दिग्गज बाहर? अंदरखाने से आ रही अलग-अलग कहानी

मोदी कैबिनेट से दिग्गजों की विदाई (फाइल फोटो)

प्रधानमंत्री ने जिन दर्जनभर मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया है, उनके लिए कोई भी आंसू बहाता नहीं दिखता. उनमें से थावरचंद गहलोत परिवार में निजी त्रासदी का सामना कर रहे थे, जबकि रमेश पोखरियाल (निशंक) कई कारणों से पहले ही छुट्टी होने की कगार पर थे. 

संतोष गंगवार को उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन और मेडिकल सुविधाओं की भारी कमी पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखना भारी पड़ा. सदानंद गौडा कर्नाटक में बी.एस. येदियुरप्पा को कमजोर करने या वोक्कालिगाओं का समर्थन हासिल करने में नाकामयाब रहे. 

चार मंत्रालय थामने वाले और मोदी के पसंदीदा माने जाने वाले प्रकाश जावड़ेकर, अब तक मंत्रिमंडल से निष्कासन के सदमे से उबर रहे हैं. कहा जाता है कि कई मंत्रियों को तो हटाए जाने की कोई पूर्व सूचना देने तक की जहमत नहीं उठायी गई थी. हवा में उड़ रहे रविशंकर प्रसाद को तो अभूतपूर्व तरीके से जमीन पर ला दिया गया. 

उल्लेखनीय है कि उन्होंने ही रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में ‘रामलला’ की ओर से पैरवी की थी, पटना में शत्रुघ्न सिन्हा को पटखनी दी थी और जनसंघ के संस्थापकों में से एक परिवार से ताल्लुक रखते थे. वह भी अभी तक सदमे और हैरानी के बीच झूल रहे हैं. 

भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा अब पार्टी महासचिव के तौर पर उनकी सेवाओं का भी पूरा लाभ नहीं उठा पाएंगे क्योंकि वह नड्डा से सीनियर हैं. कई लोग कहते हैं कि मंत्रिमंडल में फेरबदल भाजपा में पीढ़ीगत परिवर्तन का संकेत है. 

कई नये चेहरों को अगले दो दशक तक काम करने का मौका दिया जा रहा है. कहा जा रहा है कि अटल-आडवाणी युग के नेता अब 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले कुछ आराम कर लेंगे.

डॉ. हर्षवर्धन की रहस्यमय विदाई

सबसे चौंकाने वाला मामला है स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का जिन्होंने मोदी-1 में भी यह पद संभाला था और उन्हें गुजरात के एक शक्तिशाली व्यक्ति से भिड़ने के कारण सात माह में ही विदा होना पड़ा. हालांकि उन्होंने विशुद्ध ईमानदारी और निष्ठा के अलावा संघ के समर्थन से दोबारा मोदी का विश्वास जीता और स्वास्थ्य मंत्रालय में उनकी वापसी हुई. 

दूध के जले होने के कारण हर्षवर्धन ने दूसरे कार्यकाल में फूंक-फूंककर कदम रखे. 2020 की शुरुआत में जब कोविड महामारी का प्रसार शुरू हुआ था, मोदी ने इसे महामारी घोषित करते हुए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून (एनडीएमए) लागू करते हुए पूरा नियंत्रण खुद स्वीकार लिया था. 

गुजरात में मुख्यमंत्री के तौर पर 13 साल के दौरान एक के बाद एक कई आपदाओं का सामना कर चुके मोदी खुद को आपदा प्रबंधन में विश्व लीडर मानने लगे थे. लोगों ने भी ऐसा महसूस करना शुरू कर दिया इसलिए राहत की बात थी. 

डॉ. हर्षवर्धन कोविड-19 के खिलाफ जंग में शीर्ष नौकरशाहों और संस्थानों की शीर्ष महामंत्रालयीन समिति को संभाल रहे थे. लेकिन जहां तक कोविड पर नेशनल टास्क फोर्स बनाने की बात थी या फिर नीतिगत फैसलों का सवाल था, उनकी कोई भी भूमिका नहीं थी. हर्षवर्धन तो केवल संवाद का एक  माध्यम रह गए थे.

प्रधानमंत्री की 11 टास्क  फोर्स

मार्च 2020 में प्रधानमंत्री द्वारा बनाए गए 11 टास्क फोर्स को असली अधिकार हासिल थे. उन्हें ही महामारी के दौरान सरकार की प्रतिक्रिया और वैक्सीनेशन नीति तैयार करनी थी. प्रधानमंत्री ने इन 11 टास्क फोर्स में 75 पेशेवरों और नौकरशाहों की नियुक्ति की. 

इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक भी व्यक्ति नहीं था. रोग निगरानी और संबंधित मामलों के टास्क फोर्स में भी नेशनल सेंटर आॅफ डिसीज कंट्रोल (एनसीडीसी) का कोई भी प्रतिनिधि नहीं था. इसमें एम्स और आईसीएमआर के लोगों को प्राथमिकता दी गई थी, जिन्होंने फील्ड में कभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम नहीं किया था और जिन्हें महामारी से निपटने का कोई अनुभव नहीं था. 

हर टास्क फोर्स पर नजदीकी नजर रखने के लिए पीएमओ का एक नौकरशाह तैनात था. संचार और जनजागरण से जुड़े टास्क फोर्स में भी सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा कोई विशेषज्ञ नहीं था. इसके विपरीत इसमें पीएमओ के तीन विश्वासपात्र व्यक्ति थे.

प्रधानमंत्री हमेशा से ‘लूटियन्स’ की दिल्लीवालों के प्रखर आलोचक रहे हैं, लेकिन इन टास्क फोर्स के सभी 75 सदस्य इसी लूटियन्स की दिल्ली के ही थे. फिर बात डॉक्टर की हो, पेशेवरों या नौकरशाहों की. 

डब्ल्यूएचओ के पूर्व डीजी (निगरानी) और डॉ. वी.के. पॉल के नेतृत्व वाले नेशनल टास्क फोर्स के सलाहकार डॉ. सुभाष सालुंके प्रखर आलोचना करते हुए कहते हैं, ‘‘यह बड़ा सवाल है कि एनसीडीसी को कोविड महामारी से निपटने की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई. एनसीडीसी को एन1एच1 सहित महामारियों से निपटने का अनुभव है और यह पूरी दुनिया में निगरानी करती है. एनसीडीसी ने ही सरकार को सबसे पहले वुहान वायरस के बारे में चेतावनी दी थी. इसकी बजाय कोविड प्रबंधन एम्स और आईसीएमआर को और अधिकांशतया दिल्लीवालों को दे दिया गया.’’ 

डॉ. सालुंके  द्वारा मार्च 2021 में डॉ. पॉल के महाराष्ट्र के कई जिलों में वायरस के म्यूटेशन की चेतावनी की भी साफ अनदेखी कर दी गई.

Web Title: Harish Gupta Blog: Why big faces removed from New Modi govt team

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